Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Oct, 2017 12:21 PM
जिले के पास अपना खुद का सिविल कंट्रोल रूम होना एक स्वप्न बनकर ही रह गया है, क्योंकि इसके प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाला चुका है।
जालंधर(अमित) : जिले के पास अपना खुद का सिविल कंट्रोल रूम होना एक स्वप्न बनकर ही रह गया है, क्योंकि इसके प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाला चुका है। तत्कालीन डी.सी. कमल किशोर यादव ने लगभग एक साल पहले इसको लेकर काम आरंभ करवाया था और इसके लिए तैयारियां शुरू की जा चुकी थीं मगर उनके तबादले के उपरांत प्रशासनिक अधिकारियों की तरफ से इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया गया, जिसकी वजह से जिले को अपना सिविल कंट्रोल रूम नसीब ही नहीं हो पाया है।
क्यों बनना था सिविल कंट्रोल रूम?
डिजास्टर मैनेजमैंट को लेकर सरकार का रुख काफी गंभीर है। जिले में किसी प्रकार की आपदा से निपटने के लिए हर संभव तैयारी करने का प्रयास बेहद जरूरी है, क्योंकि जालंधर को सिसमिक जोन 4 की श्रेणी में रखा गया है और यहां की जनता बारूद के ढेर पर बैठी हुई है, जो किसी भी समय फट सकता है। काफी देर से इस बात की जरूरत महसूस की जा रही थी कि जिले के पास अपना खुद का सिविल कंट्रोल रूम अवश्य होना चाहिए, जिससे किसी भी प्राकृतिक या गैर-प्राकृतिक आपदा की स्थिति में पूरे जिले से संबंधित अधिकारी आपस में तालमेल बैठाकर स्थिति पर तुरंत काबू पा सकें। आपदा की स्थिति के दौरान तुरंत कार्रवाई तो अनिवार्य है मगर इसके साथ ही आपदा के बाद वाली स्थिति में भी कंट्रोल रूम की एहमियत उस समय और बढ़ जाती है, जब आपदा वाली परिस्थितियों से गुजरने वाले लोगों को मानसिक और शारीरिक तौर पर सहायता की आवश्यकता होती है।
सिर्फ 1.5 लाख रुपए में आपदा के दौरान स्थिति पर रखी जा सकती है पैनी नजर
इसे बनाने के लिए 1.50 लाख रुपए का खर्च आएगा और प्रशासन द्वारा ओ. एंड एम. सोसायटी के फंड से इसका सारा खर्च उठाया जाना है, जिसके बाद आपदा के दौरान किसी भी स्थिति पर पैनी निगाह रखना संभव हो सकेगा।
कहां बनना था सिविल कंट्रोल रूम?
डी.ए.सी. में सिविल कंट्रोल रूम को स्थापित करने के लिए एक कमरे की पहचान की गई थी। इस कमरे में इंटरनैट कनैक्शन युक्त कम्प्यूटर सिस्टम, दो अलग-अलग कंपनियों के लैंड लाइन फोन नंबर, फैक्स मशीन, वायरलैस सिस्टम, मोबाइल फोन नंबर का प्रस्ताव बनाया गया था ताकि आपदा की स्थिति में संचार साधनों की कमी न आने पाए। इसके अलावा कमरे में पोस्टरों द्वारा इस बात की पूरी जानकारी प्रदान की जानी थी कि आपदा वाली स्थिति में किस विभाग के अधिकारियों को संपर्क किया जाना चाहिए और कैसे नुक्सान को कम किया जा सकता है। कंट्रोल रूम में जिले के सारे संबंधित अधिकारियों के फोन नंबर भी डिस्पले किए जाने थे। इसके अलावा सिविल डिफैंस का वार्निंग सिस्टम जो डी.ए.सी. में लगाया गया है, उसे भी इसी कंट्रोल रूम में शिफ्ट किया जाना था। इस कंट्रोल रूम में ही माइनिंग और फ्लड कंट्रोल रूम का काम भी देखा जाना था। इस कंट्रोल रूम के नोडल अफसर भी डी.आर.ओ. को ही बनाया जाना था। यह कंट्रोल रूम सप्ताह के सारे दिन 24 घंटे काम करने वाला था। यहां पर नियुक्त किए जाने वाले कर्मचारियों की सुविधा का पूर्णतया ख्याल रखे जाने के लिए कहा गया था। कंट्रोल रूम में खास तौर पर इस बात का इंतजाम करने के लिए कहा गया था कि रात के समय ड्यूटी करने वाले कर्मचारियों के लिए कुछ देर लेटने का भी प्रबंध किया जाए ताकि उनकी सेहत पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े।