नम्बरों की गेम में लाइफ की बाजी हार रहे बच्चे

Edited By Punjab Kesari,Updated: 30 May, 2017 04:43 AM

children losing their life in the game of numbers

पिछले कुछ वर्षों की तरह इस वर्ष भी परीक्षाओं के परिणाम घोषित होने के साथ ही....

जालंधर(सुमित दुग्गल): पिछले कुछ वर्षों की तरह इस वर्ष भी परीक्षाओं के परिणाम घोषित होने के साथ ही स्टूडैंट्स द्वारा सुसाइड की घटनाएं सामने आने लगी हैं। सुसाइड करने वालों में फेल होने वाले स्टूडैंट्स के अलावा कम अंक प्राप्त करने वाले स्टूडैंट्स भी हैं। 

इससे एक बात तो स्पष्ट है कि कहीं न कहीं बज्जे नम्बरों की इस गेम में जिंदगी की बाजी हार रहे हैं। अगर देखा जाए तो पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के परिणाम इस बार कुछ खास नहीं रहे हैं और 10वीं व 12वीं कक्षा के करीब-करीब आधे विद्यार्थी ही पास हो सके हैं जिसके बाद से ही पंजाब के विभिन्न शहरों से असफल रहे स्टूडैंट्स द्वारा सुसाइड की खबरें आनी शुरू हो गईं। ऐसा ही अन्य राज्यों में भी हो रहा है, जोकि गंभीर चिंता का विषय है। दूसरी तरफ अगर सी.बी.एस.ई. की बात करें तो सी.बी.एस.ई. का 12वीं का परिणाम इस बार भी मॉडरेशन पॉलिसी के तहत ही निकाला गया है जिससे बच्चों का प्रदर्शन ठीक ही रहा है। अभी आगे 10वीं का परिणाम आना है और उसके साथ ही कई प्रतियोगी परीक्षाओं का परिणाम भी आना है जिसको लेकर अक्सर विद्यार्थी दबाव में रहते हैं। 

बच्चों पर क्यों बढ़ता है मानसिक दबाव
अक्सर माता-पिता की तमन्ना रहती है कि उनका बच्चा उनसे भी बेहतर बने या फिर जिंदगी में जो कुछ वह हासिल नहीं कर पाए वह उनका बच्चा जरूर हासिल करे परन्तु माता-पिता की बच्चों से ऐसी हद से ज्यादा उम्मीदें ही कई बार बच्चों पर मानसिक दबाव बढ़ा देती हैं जिसे असफल रहने वाले कई बच्चे झेल नहीं पाते। इसके अलावा कई बार बच्चे या अभिभावक कोर्स के चयन में भी गलती कर जाते हैं इससे भी बच्चे पर मानसिक दबाव बढ़ जाता है। वहीं कई बार पेरैंट्स बच्चों से उम्मीदें तो बहुत लगा लेते हैं परन्तु घर में पढ़ाई का माहौल भी उपलब्ध नहीं करवा पाते। 

पेरैंट्स को संभालनी होगी कमान
सफलता और असफलता जिंदगी के ही अलग-अलग पहलू हैं और जिंदगी में इन दोनों से ही सामना होता है। यह बात बच्चों को पेरैंट्स ही सबसे बेहतर समझा सकते हैं। अगर लगातार बढ़ रही स्टूडैंट्स द्वारा सुसाइड की घटनाओं पर अंकुश लगाना है तो पेरैंट्स को इसके लिए कमान संभालनी होगी। असफल रहने वाले स्टूडैंट्स को डांटने की बजाय पेरैंट्स उसका कारण ढूंढें और बच्चे को समझाएं। ऐसे वक्त में बच्चे को अकेला बिल्कुल नहीं छोडऩा चाहिए। 

चौंकाने वाले हैं स्टूडैंट्स सुसाइड के आंकड़े
असफलता हाथ लगने पर सुसाइड करने वाले स्टूडैंट्स से संबंधित आंकड़े सचमुच चौंकाने वाले हैं। अगर बीते वर्षों की बात करें तो 2015 में 8934 स्टूडैंट्स द्वारा सुसाइड किया गया जबकि कइयों की तो रिपोर्ट ही नहीं होती। इससे यह नम्बर और भी हाई हो सकता है। वहीं अगर 2015 तक पांच वर्ष के आंकड़ों पर ध्यान दें तो 39,775 स्टूडैंट्स द्वारा सुसाइड की गई है। ये आंकड़े एन.सी.आर.बी. की रिपोर्ट पर आधारित हैं। इन आंकड़ों को मानें तो भारत में हर घंटे एक स्टूडैंट सुसाइड करता है।  

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