Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Aug, 2017 09:05 AM
इन दिनों पूरे देश में हर तरफ गणेश महोत्सव की धूम मची है। मुंबई से चलकर गणेश महोत्सव अब देश के कोने-कोने तक पहुंच चुका है।
होशियारपुर (अमरेन्द्र): इन दिनों पूरे देश में हर तरफ गणेश महोत्सव की धूम मची है। मुंबई से चलकर गणेश महोत्सव अब देश के कोने-कोने तक पहुंच चुका है। होशियारपुर में भी अब श्रद्धालु गणेश महोत्सव को धूमधाम से मनाने लगे हैं और गणेश जी को अपने घरों में विराजमान करने लगे हैं। जैसे-जैसे गणेश महोत्सव लोकप्रिय होता जा रहा है वैसे-वैसे नदी-नहरों के पानी में प्रदूषण भी हो रहा है।
मूर्तियां प्लास्टर ऑफ पैरिस की बनाई जाती रही हैं, जिन्हें विसर्जन करने पर नदियों के पानी में अचानक टी.डी.एस. स्तर बढ़ जाता है लेकिन अब गणेश की मूर्तियां बनाने वाले कारीगरों ने पी.ओ.पी. की बजाय राजस्थानी खडिय़ा मिट्टी से मूर्तियां बनानी शुरू कर दीं। मूर्तिकारों का दावा है कि राजस्थानी खडिय़ा मिट्टी व जूट से बनी मूर्तियां ईको फ्रैंडली हैं और वे विसर्जित करने पर पानी को प्रदूषित नहीं करेंगी। खास बात यह है कि इन मूर्तियां की कीमत में भी ज्यादा अंतर नहीं है।
खडिय़ा मिट्टी से नहीं बढ़ेगा पानी में प्रदूषण
इस संबंध में पर्यावरण विशेषज्ञों जतिन्द्र तिवारी व राकेश कुमार शर्मा से पूछा तो उन्होंने बताया कि पी.ओ.पी. में सल्फेट भी होता है। अगर इसे पानी में घोला जाता है तो इससे पानी का टी.डी.एस. स्तर बढ़ जाता है। उन्होंने बताया कि खडिय़ा मिट्टी में सिलिका और कैल्शियम की होता है जो कि पानी में घुलते ही नीचे बैठ जाते हैं। इससे पानी प्रदूषित नहीं होता है। यही नहीं पी.ओ.पी. से बनी मूर्तियां जहां पानी में घुलने में 10 दिन से ज्यादा का वक्त लेती हैं, वहीं ये मूर्तियां 2 से 3 दिन में पानी में घुल जाएंगी।
चिकनी मिट्टी से तैयार मूॢतयां सूखने से हो जाती हैं खराब
जालंधर रोड व चंडीगढ़ रोड पर मूर्तियां बना रहे राजस्थानी मूर्तिकारों का कहना है कि पहले पी.ओ.पी. की मूर्तियों को लेकर लोगों में काफी असमंजस रहा है। लोग चिकनी मिट्टी की मूर्तिचाहते थे लेकिन चिकनी मिट्टी की मूर्तिबनाना और उसे 10 दिन तक संरक्षित रखना संभव नहीं है।
मिट्टी की मूर्ति एक तो दोगुने रेट में तैयार होती है दूसरा जैसे-जैसे चिकनी मिट्टी सूखने लगती है वैसे वह फटने लगती है। इसकी वजह से मूर्ति खंडित हो जाती है, जिसे शुभ नहीं माना जाता। जब वह राजस्थान गए तो वहां की खडिय़ा मिट्टी और जूट से मूर्तियां बनानी शुरू कीं जिसके अच्छे रिजल्ट सामने आए। इस बार उन्होंने खडिय़ा मिट्टी और जूट से ही मूर्तियां का निर्माण किया है। पी.ओ.पी. को सिर्फ फिनिशिंग के लिए उपयोग किया जाता है।