Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Dec, 2017 11:02 AM
मालवा क्षेत्र में किसानों ने तैयार पड़ी गेहूं की फसल को आवारा पशुओं की मार से बचाने के लिए खेतों में पहरा देना शुरू कर दिया है। किसान मजबूरी वश जहां सर्द रातों में खेतों में जागकर रातें काट रहे हैं, वहीं रात के समय एक से दूसरे गांव में पशुओं को...
मोगा(पवन ग्रोवर): मालवा क्षेत्र में किसानों ने तैयार पड़ी गेहूं की फसल को आवारा पशुओं की मार से बचाने के लिए खेतों में पहरा देना शुरू कर दिया है। किसान मजबूरी वश जहां सर्द रातों में खेतों में जागकर रातें काट रहे हैं, वहीं रात के समय एक से दूसरे गांव में पशुओं को दाखिल करने को लेकर कई स्थानों पर किसान ‘आमने-सामने’ भी होने लगे हैं। हैरानी की बात है कि वर्षों पुरानी आवारा पशुओं की समस्या के समाधान के लिए अब तक सरकार व प्रशासन अधिकारी कोई प्रभावी कदम नहीं उठा पाए हैं, जिससे आवारा पशुओं की संख्या बढ़ती जा रही है।
आवारा पशुओं की वजह से किसानों को आर्थिक नुक्सान भी हो रहा है। ‘पंजाब केसरी’ द्वारा एकत्रित किए गए तथ्य में सामने आया है कि यह समस्या किसी एक गांव की नहीं, बल्कि समूचे गांवों के किसानों के हालात लगभग एक जैसे ही हैं। मोगा जिले के कई गांवों में तो किसानों की यह समस्या इतनी बढ़ गई है कि किसानों ने अपने स्तर पर पैसे खर्च कर फसलों को बचाने के लिए निजी स्तर पर पहरेदार भी रख लिए हैं।
सूत्रों का कहना है कि मालवा क्षेत्र के किसानों ने गत समय दौरान घोड़े की सवारी द्वारा भी फसलों की रक्षा करवाई थी, लेकिन किसानों का यह फैसला काफी महंगा साबित होने पर किसानों ने पुन: अब ‘लाठियों’ से फसलों की रखवाली करने वाले ‘पहरेदार’ रखना ही बेहतर समझा।
वहीं गांव राऊंके कलां के किसान व सहकारी सभा के सदस्य भूपेन्द्र सिंह राऊंके का कहना है कि फसलों को पशुओं की मार से बचाना बेहद कठिन कार्य है। चाहे किसानों द्वारा आधी रात तक खेतों के चक्कर लगाए जाते हैं, लेकिन फिर भी पशु फसलों का नुक्सान कर ही जाते हैं। ठंड में पशुओं की मार से फसलों को बचाते-बचाते किसान खुद बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।