Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Nov, 2017 03:21 PM
आज देश में सरकार तथा स्वास्थ्य विभाग की ओर से राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस द्वारा लोगों को कैंसर से बचने की स्कीमें बताई जा रही हैं लेकिन कैंसर की असल जड़ को उखाडऩे के लिए न तो सरकार तथा न ही स्वास्थ्य विभाग ने कोई प्रयास किया। यदि हलका निहाल सिंह...
निहाल सिंह वाला/बिलासपुर (बावा/जगसीर): आज देश में सरकार तथा स्वास्थ्य विभाग की ओर से राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस द्वारा लोगों को कैंसर से बचने की स्कीमें बताई जा रही हैं लेकिन कैंसर की असल जड़ को उखाडऩे के लिए न तो सरकार तथा न ही स्वास्थ्य विभाग ने कोई प्रयास किया। यदि हलका निहाल सिंह वाला की बात करें तो इस हलके में कैंसर की महामारी सैंकड़ों लोगों को अपना शिकार बना चुकी है। हलके के सैंकड़ों कैंसर पीड़ित आज भी महंगे मूल्य का इलाज करवाने को मजबूर हैं तथा जिंदगी व मौत की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस बीमारी ने पूरे मालवा इलाके को अपने खूनी पंजों की जकड़ में लिया हुआ है तथा यह महामारी बहुत ही तेजी से मानवीय जानों का खात्मा कर रही है।
इस भयानक बीमारी की मार से अमीर लोग तो बड़े-बड़े अस्पतालों में या विदेशों में जाकर अपना इलाज करवाकर बच जाते हैं लेकिन आम लोगों व गरीबों के लिए महंगे अस्पतालों में जाकर इलाज करवाना असंभव ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है। इस बीमारी के इलाज के लिए आम लोगों को बीकानेर, चंडीगढ़, मुम्बई, दिल्ली आदि दूर-दूर जाने को मजबूर होना पड़ता है। पंजाब के लिए कितनी नमोशी की बात है कि पंजाब से बीकानेर जाने वाली एक ट्रेन में पंजाब के कैंसर पीड़ितों की गिनती ज्यादा होने के कारण इसका नाम ही कैंसर एक्सप्रैस रखा जा चुका है।
पंजाब में 87 हजार कैंसर पीड़ित
विश्व में प्रत्येक वर्ष 80 लाख तथा भारत में 28 लाख लोग कैंसर से दुनिया को अलविदा कह जाते हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों अनुसार पंजाब में 87 हजार कैंसर के संदिग्ध मरीज हैं, जिनमें से 25 हजार इलाज करवा रहे हैं तथा 35 हजार कैंसर के मरीजों की मौत हो चुकी है। यही नहीं, पंजाब में रोजाना 18 व्यक्ति कैंसर की भेंट चढ़ रहे हैं लेकिन सूत्रों के अनुसार गैर-सरकारी आंकड़े इनसे कहीं ज्यादा हैं।
छप्पड़ व ड्रेन के नाले दे रहे कैंसर को निमंत्रण
पंजाब के गांवों के छप्पड़ तथा ड्रेन के नाले, जो किसी समय बरसाती पानी से बचाव के लिए कार्य करते थे तथा ये छप्पड़ गांवों की विरासत हुआ करते थे। गांवों के लोग इन छप्पड़ों में अपने पालतू पशु छोड़ा करते थे तथा इनका पानी भी पूरी तरह से शुद्ध होता था। हलके के गांव माछीके, कुस्सा, भागीके, हिम्मतपुरा, रौंता, पत्तो, खोटे आदि में किसी समय के विरासती छप्पड़, अब गंदगी के कारण लोगों को कैंसर बांट रहे हैं। अलग-अलग गांवों के लोगों ने सरकार तथा प्रशासन को हजारों बार गुहार लगाई कि इन छप्पड़ों का योग्य हल किया जाए लेकिन इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। इन गांवों के भारी संख्या में लोग कैंसर तथा काला पीलिया की बीमारी की गिरफ्त में भी कई बार आ चुके हैं लेकिन सरकार तथा प्रशासन के कान पर जूं नहीं सरकी।
स्वास्थ्य विभाग ने नहीं करवाया 2012 के बाद कोई सर्वे
कैंसर की भयानक बीमारी से सरकार व स्वास्थ्य विभाग कितना सचेत है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2012 के बाद विभाग ने कैंसर संबंधी कोई सर्वे नहीं करवाया। स्वास्थ्य विभाग मोगा के पास जिले में कैंसर के मौजूदा मरीजों की संख्या का कोई रिकार्ड मौजूद नहीं है। वर्ष 2012 के सर्वे अनुसार मोगा जिले में कैंसर पीड़ित मरीजों की संख्या 319 थी लेकिन वर्ष 2014 में गांव माड़ी मुस्तफा में 160 कैंसर के मरीजों की पुष्टि हुई थी, जिनमें एक बच्चे समेत 20 मरीजों की एक महीने में मौत हो गई थी। जिसमें एक 10 वर्ष का बच्चा भी शामिल था।
क्या कहना है गण्यमान्यों का
इस संबंधी प्रसिद्ध साहित्यिकार डा. राजविन्द्र रौंता ने कहा कि आज जब कैंसर, काला पीलिया, डेंगू आदि से मनुष्यों को भारी खतरा है तो सरकारों का फर्ज बनता है कि गांवों के विरासती छप्पड़ों को साफ रखने के लिए कोई ट्रीटमैंट प्लांट लगाए जाएं ताकि गांवों की विरासत तथा लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न हो सके। सरपंच बलदेव सिंह कुस्सा, डा. गुरमेल सिंह माछीके, जीवन सिंह बिलासपुर ने कहा कि छप्पड़ों के हल के लिए कई बार संबंधित अधिकारियों के ध्यान में लाने पर भी मसले का कोई हल नहीं हुआ।