सहारा देकर टांग खींचने वाले दलों के भरोसे नई सरकार के आसार!

Edited By Updated: 12 Feb, 2017 12:37 PM

by supporting the new government is expected to pull down

पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर जारी तरह-तरह की अटकलों के बीच एक चर्चा यह भी सुनने को मिल रही है कि अगर अकाली दल व भाजपा की जगह नए गठबंधन की नौबत आई तो क्या होगा?

जालंधरः पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर जारी तरह-तरह की अटकलों के बीच एक चर्चा यह भी सुनने को मिल रही है कि अगर अकाली दल व भाजपा की जगह नए गठबंधन की नौबत आई तो क्या होगा? अगर वोटिंग से पहले की बात करें तो कांग्रेस या आम आदमी पार्टी (आप) में से किसी एक की सरकार बनने के कयास लगाए जा रहे थे।  इस बारे में कई तरह के सर्वे भी सामने आए जिससे साफ  हो गया कि मौजूदा सरकार द्वारा किए जा रहे विकास के दावे व सुविधाएं मुहैया करवाने बारे पेश किए गए रिपोर्ट कार्ड को किसी ने नहीं सुना और इस सब पर सरकार की शह पर नशा, रेत, केबल, ट्रांसपोर्ट माफिया का शोर भारी पड़ गया। 

इसके अलावा अकाली दल द्वारा मौजूदा विधायकों का ‘पत्ता काटने’ व बड़े नेताओं को ‘टिकट न’ देने कारण हुए विद्रोह ने पार्टी को कमजोर किया। सरकार विरोधी माहौल की तस्वीर उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल के काफिले पर ‘पत्थरबाजी’ व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल पर ‘जूता फैंके’ जाने से भी साफ  हो गई। इस हालात को बादल भी भांप चुके थे जिन्होंने अपना आखिरी चुनाव होने की बात कहने के साथ ही यह भी दलील दी कि अगर अकाली दल फिर से न जीता तो लोगों को मिल रही सुविधाएं बंद हो जाएंगी। 

अकाली दल द्वारा कांग्रेस के खिलाफ  पंथक कार्ड खेलने के साथ-साथ ‘आप’ को मिल रहे गर्म दलों के समर्थन के तोड़ के रूप में बादलों के मुंह से पहली बार आतंकवाद के खिलाफ  बात सुनने को मिली। अकाली दल ने अपने स्टैंड के उलट जाकर डेरा सच्चा सौदा से समर्थन लिया जिससे उसे जीत की आस है लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि डेरे की मदद लेने से अकाली दल को उसके कट्टर वोट बैंक से भी नुक्सान होगा जिसके लिए विरोधियों ने अकाल तख्त का फर्जी हुक्मनामा तक सोशल मीडिया पर वायरल किया जिसकी सफाई आने का कितना असर हुआ यह तो चुनाव परिणाम से ही साफ  होगा, जबकि कांग्रेस व ‘आप’ दोनों को आस है कि वे सरकार के खिलाफ  बने माहौल को कैश करने में कामयाब हो जाएंगी। जिस तरह दोनों
पार्टियों ने नशा खत्म करने का दावा किया है उसी तरह उन्होंने लोगों को पुरानी समस्याओं से निजात दिलाकर नई सुविधाएं देने के सपने भी दिखाए हैं जिस कारण लोगों में कांग्रेस या ‘आप’ में से किसी एक की सरकार बनने की चर्चा चल रही है। वहीं सर्वे आदि में भी यही बात सामने आई है और सट्टेबाजों का रुख पहले पूरी तरह ‘आप’ के हक में रहने के बाद अब कांग्रेस के लिए कुछ राहत की खबर लेकर आया है।  
ये दल खींचते रहे एक-दूसरे की टांगें?
पंजाब में सबसे पहली सरकार की नींव ही गठबंधन पर टिकी थी और यह सरकार अकाली दल की तरफ से समर्थन वापस लेने के कारण गिर गई थी।   यह सरकार अपने पांच साल पूरे नहीं कर पाई थी। आतंकवाद के दौर में कांग्रेस सहारा देकर टांग खींचती रही और सरकारें गिरती रहीं।  ऐसे में नई सरकार के गठन पर भी सियासी विशेषज्ञ कुछ ऐसा ही सोच रहे हैं।  दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर ऐसी खबरें भी जोरों पर हैं कि शायद किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिले। इस स्थिति में नया गठबंधन बनाने की जरूरत पडऩे के चलते पैदा होने वाले हालात को लेकर सियासी विश्लेषक परेशान हैं क्योंकि अगर कांग्रेस या ‘आप’ को सरकार बनाने के लिए किसी के सहयोग की जरूरत पड़ी तो दोनों ही एक-दूसरे से कन्नी काटते नजर आएंगे क्योंकि चुनाव में उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ  जमकर जहर उगला है और दिल्ली में गठबंधन का अनुभव भी काफी कड़वा रहा है। यह भी हो सकता है कि अगर ‘आप’ के पास कम सीटें हुईं तो वह अपने व कांग्रेस के दुश्मन मोदी को झटका देने के लिए कांग्रेस के साथ जा सकती है।

अगर ‘आप’ के पास थोड़ी सीटों की कमी हुई तो वह दिल्ली की तरह दोबारा चुनाव करवाने को पहल देगी। सबसे रोचक पहलू यह है कि अगर किसी को अकाली दल की मदद की जरूरत पड़ी तो क्या होगा? इस दौर में यह तो साफ  है कि अकाली दल व ‘आप’ किसी कीमत पर एक-दूसरे की मदद नहीं करेंगे क्योंकि ‘आप’ का पंजाब में जन्म ही अकाली दल के खिलाफ  बने माहौल को कैश करने के लिए एक विकल्प के रूप में हुआ है तथा ‘आप’ बादल व मजीठिया को जेल में डालने की बात कह कर ही एन.आर.आइज की मदद लेने में कामयाब हो पाई है और उसे आगे पंजाब में मजबूत जमीन नजर आ रही है। अकाली दल भी आतंकियों व गर्म दलों से मिलीभगत के आरोप लगाने के बाद किसी कीमत पर ‘आप’ के साथ नहीं चलेगा। अकाली दल से मदद लेने के मामले में कांग्रेस के लिए भी ‘आप’ जैसे ही हालात हैं। 

रि-पोलिंग: बदला पंजाब में वोट प्रतिशत
मजीठा, मोगा, मुक्तसर, मानसा और संगरूर के 48 पोङ्क्षलग बूथों पर री-पोङ्क्षलग होने के बाद पंजाब चुनाव आयोग ने पंजाब मतदान की अंतिम फिगर जारी कर दी है। पंजाब अपना पिछला रिकार्ड नहीं तोड़ पाया है। 2012 में 78.57 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बार 77.36 प्रतिशत मतदान हुआ है। सबसे अधिक मतदान भटिंडा में दर्ज किया गया है। वहीं मतदान में मालवा ने बाजी मारी है। 
 

 

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