सट्टा बन रहा जान का दुश्मन

Edited By Updated: 18 Jan, 2017 03:24 PM

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रातों-रात अमीर बनने की लालसा से वशीभूत होकर लोगों में सट्टा खेलकर धन उपार्जन करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।

जलालाबाद (गुलशन): रातों-रात अमीर बनने की लालसा से वशीभूत होकर लोगों में सट्टा खेलकर धन उपार्जन करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। सट्टा लोगों की जान का दुश्मन बनता जा रहा है। इसका सबसे अधिक शिकार श्रमिक व युवा वर्ग हो रहा है। सट्टे की लत शराब व अफीम से भी बुरी है जो एक बार लग गई तो इसका पता तब चलता है जब व्यक्ति बर्बाद हो जाता है और इससे छुटकारा पाने के लिए या तो अपनी जिंदगी समाप्त करनी पड़ती है या इज्जत बचाने के लिए अपनी सम्पत्ति बेचनी पड़ती या नीलाम हो जाती है। 

 

हाईटैक हो गया यह खेल
सट्टेबाजों ने इस खेल को हाईटैक बना दिया है। दिन में 4 बार खेले जाने वाले इस खेल को पहले मोबाइल पर नम्बर बोलकर लिखवाया जाता था, फिर कागज पर नम्बर लिखकर फोटो खींचकर व्हाट्सएप पर भेजा जाने लगा लेकिन अब केवल मैसेज से ही इस खेल को स्वीकार किया जाता है। एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सभी परिणाम निर्धारित समय पर ही घोषित होते हैं और इसका परिणाम नैट पर भी देखा जा सकता है। परिणाम आने के बाद जिस व्यक्ति का नम्बर लगता है तो उसे भुगतान कर दिया जाता है। क्रिकेट में आई.पी.एल. टैस्ट व एक दिवसीय मैच के साथ भारत-पाकिस्तान के मैच पर प्रति ओवर प्रति बाल कौन-सा खिलाड़ी शतक बनाएगा या कितने रन बनाएगा पर सट्टा लगाया जाता है और यह सट्टा लाखों रुपए में लगाया जाता है जिसकी कोई लिमिट नहीं है। दूसरी ओर नम्बर लिखवाकर खेले जाने वाला सट्टा दिन में 4 बार खेला जा सकता है। उन्होंने बताया कि सट्टे की पहली गेम सत्यम है जिसका परिणाम दोपहर 12 बजे आता है। गाजियाबाद का परिणाम सायं साढ़े 7 बजे आता है। रात्रि साढ़े 11 बजे गली सट्टे का परिणम आता है। इसका परिणाम आने के बाद दिल्ली की गेम लिखी जाती है जिसका नाम दिसावर है। इसका परिणाम अगले दिन प्रात: 6 बजे आता है। ये सभी परिणाम इंटरनैट पर आते हैं और नैट पर ही ओ.के. होते हैं।  

 

पुलिस को शिकायतें न मिलने से इस पर रोक लगाना हो रहा मुश्किल  
सट्टे का कारोबार फैलता जा रहा है और सट्टेबाजों द्वारा इस खेल को हाईटैक बनाने व पुलिस को शिकायतें न मिलने के कारण इस पर रोक लगाना मुश्किल प्रतीत हो रहा है। जानकारी के अनुसार आज का युवा व धनाढ्य परिवारों के बच्चे क्रिकेट के शौकीन हैं और पैसा लगाकर अमीर बनने की चाह उन्हें इस बुरे काम की ओर धकेल देती है। कभी-कभी सट्टा खिलाने वाला भी लुट जाता है। सट्टे की लत आमतौर पर गरीब परिवारों में पाई जाती है लेकिन अब इसमें युवा व अमीर घरों के लोग भी जुड़ते जा रहे हैं। दूसरी ओर श्रमिक वर्ग नंबर सट्टे के मकडज़ाल में फंसे हैं।   जानकारी के अनुसार विभिन्न कम्पनियां दिन में 4 बार सट्टा खिलाती हैं। एक व्यक्ति यदि 100 रुपए एक नम्बर पर लगाता है तो उसे सट्टा निकलने पर 8 से 9 हजार रुपए तक की राशि प्रदान की जाती है। सट्टा खिलाने वालों ने अपने कारिंदे छोड़े हुए हैं जो समय-समय पर ग्राहकों से सम्पर्क करते हैं और नम्बर लिखकर पैसे ले जाते हैं। ईनाम निकलने पर वही व्यक्ति उन्हें ईनाम राशि घर या दुकान पर पहुंचा देता है। 
 

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