Edited By Updated: 18 Jan, 2017 10:03 AM
भटिंडा की एक जिंदगी ने 111 जिंदगियों को ‘जीवनदान’ देकर मिसाल कायम की है। आसरा वैल्फेयर सोसायटी के सलाहकार व स्टार ब्लड डोनर अब तक 111
भटिंडा: भटिंडा की एक जिंदगी ने 111 जिंदगियों को ‘जीवनदान’ देकर मिसाल कायम की है। आसरा वैल्फेयर सोसायटी के सलाहकार व स्टार ब्लड डोनर अब तक 111 बार रक्तदान करके मौत के मुंह में जा रही अनमोल जिंदगियों को नया जीवन दे चुके हैं। वह महज साढ़े 17 वर्ष की आयु से रक्तदान करते आ रहे हैं और उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य रक्तदान मुहिम के प्रसार-प्रचार हेतु काम करना और 65 वर्ष तक की आयु तक निरंतर रक्तदान करते रहना है।
ताया जी की प्रेरणा से बने रक्तदानी
पेशे से प्रॉपर्टी एडवाइजर विनोद बांसल (52) भटिंडा में रक्तदान मुहिम के संस्थापक हजारी लाल बांसल रामपुरा वालों की प्रेरणा से रक्तदानी बनें। हजारी लाल ने 1 अक्तूबर 1978 को राष्ट्रीय रक्तदान दिवस पर भटिंडा में रक्तदान मुहिम की शुरूआत की थी। उनसे प्रेरणा पाकर विनोद ने 11 जुलाई 1982 को गांव सिवियां में लगे एन.एस.एस. कैंप दौरान पहली बार रक्तदान किया। पिछले 34 वर्षों से वह निरंतर रक्तदान करते आ रहे हैं और वह अधिकांश एमरजैंसी हालातों में ही रक्तदान करने को प्राथमिकता देते हैं, ताकि जरूरतमंदों की जिंदगी बचाई जा सके।
स्टेट अवार्ड सहित मिले कई अवार्ड
विनोद बांसल को सराहनीय रक्तदान सेवाओं के चलते अब तक स्टेट अवार्ड सहित असंख्य सम्मान मिल चुके हैं। 15 अगस्त 2006 को पटियाला में हुए विशेष समागम दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री पंजाब कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने उन्हें स्टेट अवार्ड से नवाजा। इसके अलावा उन्हें कालेज व यूनिवर्सिटी स्तर पर कई अवार्ड मिले और विभिन्न
समाजसेवी व धार्मिक संस्थाओं द्वारा भी समय-समय पर सम्मान से नवाजा गया।
पत्नी, बेटा व भाई भी हैं रक्तदानी
विनोद बांसल न सिर्फ खुद रक्तदानी हैं बल्कि उनकी पत्नी, बेटा व 2 भाई भी रक्तदान मुहिम से जुड़े हुए हैं। उनकी पत्नी मीना बांसल 7 बार रक्तदान कर चुकी हैं जबकि उनके बेटे अक्षय बांसल (22) ने अब तक 9 बार रक्तदान किया है। उनके भाई रमेश बांसल 49 बार व राकेश बांसल 25 बार रक्तदान करके अनमोल जिंदगियों को ‘मौत के मुंह’ में जाने से बचा चुके हैं।