Edited By Updated: 12 Mar, 2017 01:45 AM
पंजाब में भाजपा ने 4 फरवरी को हुए विधानसभा चुनावों ...
जालंधर(पाहवा): पंजाब में भाजपा ने 4 फरवरी को हुए विधानसभा चुनावों में हिस्सा तो लिया लेकिन पार्टी पंजाब में ‘द मोस्ट कन्फ्यूज्ड पार्टी’ के तौर पर मैदान में उतरी। पार्टी के नेताओं ने पंजाब में न तो अधिक रुचि दिखाई तथा न ही जीत के लिए कोई ज्यादा हाथ-पैर मारे। पहले तो पार्टी ने उम्मीदवारों की घोषणा में ही काफी देर लगा दी, जब उम्मीदवार घोषित किए गए तो उसके बाद तेज-तर्रार नेताओं की पंजाब में प्रचार की कमी खलती रही जिस कारण पार्टी सफलता से कोसों दूर रह गई।
पंजाब भाजपा में रही रणनीति की कमी
पार्टी ने उत्तर प्रदेश में जिस तरह से सत्ता हासिल करने के लिए जोर-आजमाइश की, वही जोर-आजमाइश अगर पंजाब में की होती तो पार्टी के लिए जीत हासिल करना कोई इतना भी मुश्किल नहीं था। पंजाब भाजपा के रणबांकुरों में रणनीति की कमी रही। अव्यवस्थित पार्टी की तरह पंजाब में भाजपा ने चुनाव लड़ा। अंत में जब पंजाब में चुनावों को कुछ दिन ही बचे थे और पार्टी को अपनी जमीन नजर आने लग गई थी तो पार्टी के आला नेताओं ने एकाएक अपना रंग बदल लिया।
कांग्रेस को भूलकर आप पर ‘सीरियस’ रही भाजपा
रंग बदलने में माहिर भाजपा के नेताओं ने अपना पूरा ध्यान कांग्रेस से हटा कर आम आदमी पार्टी की ओर कर दिया। पार्टी के नेता पत्रकार वार्ता से लेकर पार्टी की बैठकों तक में यही संदेश देते रहे कि ‘आप’ को वोट न दिया जाए। आम आदमी पार्टी को ही महाभ्रष्ट और देश विरोधी पार्टी करार देने में भाजपा लगी रही।
संगठन की कई बैठकों में तो कई नेता यह कहते भी सुने गए कि अगर भाजपा या अकाली दल को वोट नहीं देना तो आम आदमी पार्टी को भी वोट न दिया जाए। इन लोगों की यही इच्छा थी कि वोट खराब करने की बजाय कांग्रेस के पक्ष में डाल दिया जाए। पार्टी व संगठन की इस रणनीति से यह बात साफ थी कि पंजाब में कांग्रेस को सत्ता हासिल करवाने में अन्य ताकतों के साथ-साथ भाजपा के लोगों का भी बहुत बड़ा हाथ है।