Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Jan, 2018 06:23 PM
देशभर में मोदी के नाम का डंका बज रहा है और लोकप्रियता के मामले में बतौर प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी व अटल बिहारी वाज....
अमृतसर(जिया): देशभर में मोदी के नाम का डंका बज रहा है और लोकप्रियता के मामले में बतौर प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी व अटल बिहारी वाजपेयी को पीछे छोड़ चुके नरेन्द्र मोदी की स्थिति इस समय यह है कि देश ही नहीं अपितु विदेशों के दिग्गज शासनाध्यक्ष जो कभी भारत से आंखें तरेर कर बर्ताव करते थे मोदी उनसे आज आंखों में आंखें डालकर बात कर रहे हैं। पूरे देश की तरह यदि भाजपा मोदी मॉडल को पंजाब में भी कैश करना चाहती है तो पार्टी हाईकमान कोप्रदेश संबंधी नीतियों में भारी बदलाव करना होगा जिसके लिए जरूरी है कि वह गठबंधन की जंजीरों से स्वयं को मुक्त कर अपने दम पर जनता के बीच जाए।
कांग्रेस से मोह भंग, आप भी टायं-टायं फिस्स
आज स्थिति यह है कि पंजाब की जनता से मन लुभावने वायदों की बैसाखियों के सहारे राज्य में सत्तासीन हुई कांग्रेस के प्रति आम जनता का मोह भंग हो चुका है। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी जो विधानसभा चुनावों में दूसरे दल के रूप में उभरी थी उसकी स्थिति भी टायं-टायं फिस्स हो चुकी है।
अकाली दल के प्रति उपजे आक्रोश का खमियाजा भुगत रही भाजपा
अकाली दल के प्रति पंजाब की जनता में पैदा आक्रोश विशेषत: शहरी क्षेत्रों में, अभी थमने का नाम नहीं ले रहा जिसका खमियाजा पूरी तरह से भाजपा को भुगतना पड़ रहा है। मोदी की प्रभावशाली नीतियों के चलते पंजाबवासी एक विकल्प के तौर पर भाजपा की तरफ देख रहे हैं लेकिन अकाली दल के साथ गठबन्धन के कारण जनता की विश्वसनीयता हासिल करने में भाजपा असफल है। देशव्यापी चल रही केन्द्र सरकार की योजनाओं व जनकल्याणकारी नीतियों को पंजाबवासी भी भली भांति समझ रहे हैं और सबका साथ सबका विकास की कड़ी में भी पंजाब के लोग स्वयं को शामिल करना चाहते हैं।
मजबूत सेनापति की कमी से टूट रहा वर्करों का मनोबल
अब समय आ गया है कि आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय भाजपा नेतृत्व को गठबंधन की जंजीरों से बाहर निकलते हुए अपने दम पर पंजाब की राजनीति में कदम बढ़ाने होंगे। भारतीय जनता पार्टी शुरू से ही कै डर पार्टी रही है। निरन्तर खराब प्रदर्शन व हार की वजह से वर्करों का जो मनोबल टूट चुका है, उसे पुन: गतिशील करने के लिए संगठन की मजबूती पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। पार्टी वर्कर तो पूर्व की भांति पूरे जुनून के साथ मैदान में डटने को तैयार है लेकिन राज्य इकाई में मजबूत सेनापति के न होने कारण कार्यकत्र्ता की स्थिति जाएं तो जाएं कहां जैसी बनी हुई है।
मजबूत संगठन के कारण जीते जा सके महाराष्ट्र व हरियाणा
हाईकमान को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए मजबूत संगठन के कारण ही पार्टी ने महाराष्ट्र मे शिवसेना की परवाह अथवा धमकियां न सहते हुए अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ा था जिसके परिणामस्वरूप पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर सत्तासीन हुई व हरियाणा में पहली बार अकेले चुनाव लड़कर सत्ता सिहांसन पर पहुंची। यदि इन 2 राज्यों में पार्टी अपने दम पर सरकार बना सकती है तो पंजाब में क्यों नहीं। केन्द्र में बैठे भाजपा नेताओं को इस बारे गहन मंथन करना होगा जिससे पंजाब के खेत-खलिहानो में अपने दम पर कमल खिलाया जा सके।