पंजाब में 15 वर्ष पीछे खिसक गई भाजपा

Edited By Updated: 12 Mar, 2017 02:00 PM

bjp lost 15 years back in punjab

पंजाब में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों के आने के बाद जो राजनीतिक दल सबसे बुरी हालत में सामने आया है वह है भाजपा। पार्टी ने 23 में से केवल 3 सीटों पर ही विजयश्री हासिल की जबकि पार्टी के 20 उम्मीदवार हार गए।

जालंधर(पाहवा): पंजाब में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों के आने के बाद जो राजनीतिक दल सबसे बुरी हालत में सामने आया है वह है भाजपा। पार्टी ने 23 में से केवल 3 सीटों पर ही विजयश्री हासिल की जबकि पार्टी के 20 उम्मीदवार हार गए। भाजपा की यह हार इसलिए अधिक चुभने वाली है क्योंकि यू.पी. में जहां उसने बहुत बेहतर प्रदर्शन किया है।  वहीं उत्तराखंड तथा मणिपुर में भी पार्टी की स्थिति बेहतर रही। 5 राज्यों के चुनावों में से अगर कहीं भाजपा को सबसे अधिक चोट पहुंची है तो वह पंजाब है। 
वर्कर की वर्षों की मेहनत गई पानी में 
पंजाब में भाजपा की इस बुरी हार के चलते पार्टी पंजाब में 15 वर्ष पीछे खिसक गई है। वर्ष 2002 में पार्टी को 3 सीटें मिली थीं और वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को 3 सीटें ही हासिल हुईं। पार्टी ने इन 15 वर्षों में प्रदेश में खुद को स्थापित करने के लिए जो भी काम किया, उस सब पर एक बार फिर से पानी फिर गया है जिस कारण पार्टी एक बेहतर मुकाम से खिसक कर जमीन पर आ गई है। पंजाब में भाजपा ने वर्ष 2007 में खुद को काफी स्थापित किया तथा तत्कालीन विधानसभा चुनावों में पार्टी को 23 में से 19 सीटें मिलीं। पंजाब में भाजपा की ये अब तक की सबसे अधिक सीटें थीं। इसके बाद पार्टी का ग्राफ लगातार नीचे की ओर ही लुढ़कता जा रहा है।अपनों की बजाय अकाली दल पर मोहित रहे भाजपा नेता
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में भाजपा 19 सीटों से 12 पर लुढ़क गई। बेशक प्रदेश में भाजपा की तरफ से चलाए गए सदस्यता अभियान में 23 लाख नए सदस्य जोडऩे का दावा किया गया लेकिन पार्टी की यह जोर-आजमाइश किसी काम नहीं आई। पार्टी 19 से 12 और अब 12 से 3 पर सिमट गई। इन 15 वर्षों में जो भी मेहनत पार्टी के वर्कर ने की उस पर पानी फेरने में भाजपा के ही लोगों का बहुत बड़ा हाथ है। भाजपा के लोग अपने वर्कर तथा अपने वोट बैंक की बात सुनने की बजाय अपने गठबंधन में अकाली दल की बातों में उलझे रहे। बड़े भाई, छोटे भाई की कहानी लेकर अक्सर मंचों से बड़े-बड़े भाषण भाजपा के ये नेता देते रहे हैं लेकिन इसी आड़ में भाजपा का वर्कर तथा भाजपा का वोटर पार्टी से विमुख हो गया जिसे संभालने का पार्टी के किसी नेता के पास वक्त नहीं था।

वोट प्रतिशत में लुढ़क रही भाजपा
पंजाब में भाजपा का वोट प्रतिशत पिछले कुछ समय से काफी ऊपर-नीचे हो रहा है। वर्ष 1997 में भाजपा ने पंजाब में 18 सीटें हासिल कीं और उसका वोट प्रतिशत 8.33 प्रतिशत था। वर्ष 2002 में पार्टी ने मात्र 3 सीटें जीतीं और उसका वोट प्रतिशत 3.67 रह गया। वर्ष 2007 के चुनावों में सीटें बढ़ीं और 19 सीटों के साथ भाजपा का वोट प्रतिशत भी 8.28 तक पहुंच गया। 2012 में एक बार फिर से भाजपा को 6 सीटों का नुक्सान हुआ और पार्टी 12 सीटों के साथ 7.13 वोट प्रतिशत पर आ गई। इस वर्ष के चुनावों में भाजपा ने 23 में से मात्र 3 सीटें जीतीं और भाजपा को वोट प्रतिशत 5.2 हो गया। प्रतिशत में उतार-चढ़ाव साफ जाहिर करता है कि पार्टी अपने वोट बैंक को सुरक्षित रख पाने में सफल नहीं साबित हो रही।

आला नेता भी नहीं दिखा पाए जादू
इस बार के विधानसभा चुनावों में भाजपा के केंद्रीय नेताओं से लेकर पंजाब तक के नेताओं ने जालंधर या लुधियाना में डेरा डाले रखा। इनमें पार्टी के वरिष्ठ नेता व सांसद नरेंद्र तोमर पार्टी के पंजाब प्रभारी प्रभात झा जैसे लोग भी शामिल थे जो वर्कर के बीच जाने की बजाय आलीशान होटलों के कमरों में बैठ कर पार्टी की स्थिति को आंकते रहे जिसका परिणाम यह हुआ कि पार्टी पंजाब में सबसे बुरी हालत में पहुंच गई है।   
 

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