भाजपा को घेरने के लिए चल रहा है सपा-बसपा फार्मूले पर काम

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Aug, 2017 09:18 AM

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2019 में देश में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं तथा सभी राजनीतिक दल अपने स्तर पर राजनीतिक बिसात बिछाने में लगे हैं।

जालंधर (पाहवा): 2019 में देश में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं तथा सभी राजनीतिक दल अपने स्तर पर राजनीतिक बिसात बिछाने में लगे हैं। सबसे बड़ी दिक्कत विपक्ष को इस समय यह आ रही है कि उसे नरेंद्र्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी का मुकाबला करने के लिए कुछ नहीं मिल रहा है। कुल मिलाकर विपक्ष के पास इस समय सपा व बसपा के बीच समझौता ही एक विकल्प दिख रहा है। कारण यह कि विपक्ष का एक अन्य विकल्प नीतीश कुमार पहले ही राजग के साथ जा मिले हैं। 
जानकारी के अनुसार नीतीश के बाहर होने के बाद विपक्ष में अब एक बार फिर से सपा तथा बसपा को मिलाने के लिए कोशिशें चल रही हैं। सोच यह है कि अगर कट्टर विरोधी रहे नीतीश कुमार और लालू यादव मिलकर भाजपा को बिहार में हार दे सकते हैं तो मायावती और मुलायम सिंह यादव भी मिलकर भाजपा को शिकस्त दे सकते हैं। 


विपक्ष के पास विकल्प: सपा-बसपा गठजोड़
विपक्ष को 2019 के लोकसभा चुनावों में मैदान में उतरने के लिए बड़ी ताकत चाहिए जो उसके पास फिलहाल नहीं है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह का मुकाबला करने के लिए बसपा-सपा का गठजोड़ करवाने के लिए कई बड़े नेता लगे हुए हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2014 में उत्तर प्रदेश में भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल को कुल 80 में से 73 लोकसभा सीटें मिली थीं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा को भारी बहुमत मिल गया लेकिन अब भी राजनीतिक जानकार यह मान रहे हैं कि अगर सपा और बसपा एक हो गए तो भाजपा के लिए 2014 वाला प्रदर्शन दोहरा पाना बेहद मुश्किल हो जाएगा। 


विपक्ष चाहता है लालू-नीतीश फार्मूला चले
विपक्ष की कोशिश है कि भाजपा को पटखनी देने के लिए लालू-नीतीश की तरह कट्टर विरोधी मायावती-मुलायम मिल जाएं जिससे कि भाजपा के लिए दोबारा 73 का आंकड़ा दोहरा पाना मुश्किल हो जाएगा। सीधा सा हिसाब है अगर भाजपा को सपा-बसपा मिलकर 73 के आंकड़े से दूर कर देते हैं तो फिर केंद्र में सत्ता वापस हासिल करना भाजपा के लिए इतना भी आसान नहीं रह जाएगा। ऐसे में संभव है कि भाजपा को पूर्ण बहुमत न मिले तथा उसे सहयोगी दलों पर निर्भर रहना पड़े। 

लेकिन बहुत हैं मुश्किलें
वैसे सपा, बसपा और कांग्रेस सहित कुछ अन्य छोटे राजनीतिक दलों के गठबंधन की उत्तर प्रदेश में कोशिशें जरूर चल रही हैं लेकिन यह सब इतना भी आसान नहीं है। सबसे मुश्किल काम है सपा और बसपा को साथ लाना। दिलचस्प बात है कि गैस्टाहाऊस कांड के समय सपा के वर्करों ने मायावती पर हमला किया था जिसे मायावती भूल नहीं पा रही हैं। जब भी करीबता बढ़ती है, गैस्टाहाऊस कांड का जिन्न मायावती के सामने आ खड़ा होता है।


भाजपा की किलाबंदी

उत्तर प्रदेश में मायावती पर कई तरह के आरोप हैं तथा कुछ मामले भी चल रहे हैं। बसपा को लगता है कि अगर मायावती सपा के साथ गई तो केंद्र की मोदी सरकार उनके मामलों को खोल कर भारी नुक्सान कर सकती है। भाजपा की इस किलाबंदी का तोड़ विपक्ष को नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में साफ है कि बसपा-सपा जोड़ी बनी तो कई नेताओं को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। उधर अखिलेश के करीबी माने जाने वाले उनके चाचा रामगोपाल यादव के संसदीय जीवन के 25 साल पूरे होने पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जाना साफ इशारा करता है कि यादव परिवार के कुछ लोग भाजपा के इशारों पर काम कर रहे हैं। यह एक इशारा बसपा-सपा गठबंधन की धज्जियां उड़ा सकता है लेकिन इसकी संभावना बहुत कम है। 

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