नोटबंदी के नैगेटिव प्रभाव से उम्मीदवारों में घबराहट

Edited By Updated: 23 Jan, 2017 11:43 PM

among the negative effects of anxiety notbandi

भाजपा नोटबंदी को जितना चाहे सफल बताए, लेकिन पंजाब विधानसभा चुनावों में भाजपा उम्मी

अमृतसर(इलैक्शन डैस्क)(महेन्द्र): भाजपा नोटबंदी को जितना चाहे सफल बताए, लेकिन पंजाब विधानसभा चुनावों में भाजपा उम्मीदवारों को नोटबंदी के कहीं न कहीं नैगेटिव प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। इससे उनमें काफी घबराहट है। ऐसा हलका नॉर्थ से तीसरी बार लगातार भाजपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे स्थानीय निकाय मंत्री अनिल जोशी द्वारा मैडीकल एंक्लेव में एक जनसभा में दिए बयान से देखने को मिला। उनकी नोटबंदी पर की गई बयानबाजी से भाजपा में मानों एक तरह से हड़कंप  मच गया है। 


चुनाव प्रचार के दौरान नोटबंदी के मुद्दे पर चाहे भाजपा नेताओं के सामने लोग खुलकर नहीं बोल रहे, लेकिन अंदर ही अंदर इस फैसले को कोस रहे हैं, इसकी भाजपा उम्मीदवारों को भी जानकारी मिल रही है। हलका नॉर्थ से भाजपा उम्मीदवार अनिल जोशी जो अपने हलके में खुद को विकास पुरुष मानकर चल रहे हैं, गत दिवस एक जनसभा के दौरान अपने संबोधन में कहते सुनाई दिए कि कुछ लोग नोटबंदी पर तरह-तरह की अफवाहें फैला रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि इस तरह की अफवाहों के चलते उन्हें ही ऐसी सजा मिल जाए।

 

135 उम्मीदवारों से की बात, 53 प्रतिशत ने कहा हो रही भारी परेशानी
नोटबंदी ने पंजाब विधानसभा चुनावों का ‘इलैक्शन मैनेजमैंट’ बिगाड़ दिया है। सैंकड़ों प्रत्याशियों के लिए छोटे से छोटे खर्च भी परेशानी बनकर उभर रहे हैं और उन्हें कैश की कमी के चलते प्रतिदिन कोई न कोई दिक्कत झेलनी पड़ रही है। कहीं उधारी तो कहीं पर्ची सिस्टम से रोजमर्रा के खर्चों को निपटाया जा रहा है। हालांकि चुनाव आयोग ने प्रत्येक प्रत्याशी के लिए चुनावी खर्च 28 लाख रुपए निर्धारित किया है लेकिन बैंकों में पैसों की निकासी को लेकर तय किए गए मापदंडों के चलते प्रत्याशियों की ‘टैंशन’ दोगुनी हो गई है। 


‘इलैक्शन प्लान’ के तहत प्रत्याशी चाह कर भी मनचाहा पैसा खर्च नहीं कर पा रहे हैं और प्रत्येक जरूरत पर उन्हें पार्टी वर्करों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक चुनावों के दौरान ‘कैश डोनेशन’ पर अधिक निर्भर रहना पड़ता है और इसी से चुनावों के खर्चे निकाले जाते हैं। यही वजह है कि राजनीतिक दल चुनावों से पूर्व आप्रवासी भारतीयों (एन.आर.आइज) से संपर्क साधते हैं और बाकायदा ऐसे देशों में राजनीतिक हस्तियों को भेजकर डोनेशन कैंपेन चलाए जाते हैं। 


वर्ष 2017 के चुनावों के चलते राजनीतिक दलों ने डोनेशन तो इक_ी की लेकिन बैंकों की कड़ी रिस्ट्रक्शन के चलते यह पैसा इलैक्शन मैनेजमैंट में खर्च नहीं हो पा रहा। उधर, पंजाब के  पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रत्याशी कैप्टन अमरेंद्र सिंह भी प्रत्याशियों को हो रही परेशानी को उठा चुके हैं। पिछले दिनों उन्होंने प्रत्याशियों को छूट देने और कैश की लिमिट को 4 लाख रुपए करने की मांग की।       

 

मेरे बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है: जोशी
दूसरी तरफ जोशी का कहना है कि उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है। उन्होंने यही कहा था कि कुछ लोग नोटबंदी का गलत प्रचार कर रहे हैं, जबकि नोटबंदी का मसला करीब 80 से 90 फीसदी हल हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नोटबंदी पर किया गया फैसला तो एक बड़ा ऐतिहासिक फैसला है, जिसे वह खुद भी बहुत सही मानते हैं, इसलिए नोटबंदी के इस ऐतिहासिक फैसले पर वे किंतु-परंतु कैसे कर सकते हैं?


 

2012 के चुनाव पर 300 करोड़ से ज्यादा का खर्च 
चुनाव विशेषज्ञों के मुताबिक 2012 के चुनावों में 300 करोड़ रुपए से ज्यादा के  खर्च का अनुमान है। यह खर्चा चुनावी रैलियों से लेकर हर छोटे-बड़े चुनाव प्रबंध में किया गया। नेताओं के आने-जाने पर ही करोड़ों रुपए का खर्चा हुआ था। उधर, पंजाब की आम जनता का कहना है कि इस बार लग ही नहीं रहा कि राज्य में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। नोटबंदी के चलते चुनावों की रंगत खत्म हो गई है।   

 

कार्ड स्वैपिंग और ऑनलाइन ट्रांजैक्शन बढ़ी 
राजनीतिक दलों की इलैक्शन डील कर रही मैनेजमैंटों का कहना है कि चुनावों में नोटबंदी के साइड इफैक्ट देखने को मिल रहे हैं। छोटे खर्चों के लिए भी कार्ड स्वैपिंग, पेटीएम और ऑनलाइन ट्रांजैक्शन ज्यादा हो रही है। आगामी दिनों की मांगों को पूरा करने के लिए एडवांस बुकिंग से ऑर्डर देने पड़ रहे हैं। 


प्रत्याशियों ने बताई तंगी
इस मुद्दे पर ‘पंजाब केसरी’ की टीम ने सूबे के 135 प्रत्याशियों से बात की तो उन्होंने नोटबंदी से हो रही परेशानी को खुलकर बयान किया। अधिकतर प्रत्याशियों का कहना था कि बैंक द्वारा निर्धारित की गई लिमिट से परेशानी बढ़ रही है। 24,000 की लिमिट होने से बैंकों से पैसा नहीं निकाल पा रहे हैं। माइक, चाय, शामियाने, गाडिय़ों की व्यवस्था के लिए भी लोग कैश मांग रहे हैं। उधारी तेजी से बढ़ रही है जिसे चुकाने में वक्त लगेगा। इसके अलावा कई बंदोबस्तों को पूरा करने के लिए रिश्तेदारों से उधार करना पड़ रहा है। ए.टी.एम. में फिर से लाइनें लगनी शुरू हो गई हैं। 
53 प्रतिशत ने कहा नोटबंदी से परेशानी हो रही है
30 प्रतिशत ने कहा पे.टी.एम. व अन्य ऑनलाइन ट्रांजैक्शन का सहारा ले रहे
20 प्रतिशत ने कहा कि नोटबंदी से कोई परेशानी नहीं हो रही


चैक का पड़ रहा चक्कर
नोटबंदी के पीछे एक वजह पी.एम. मोदी ने टैक्स चोरी को रोकने की भी बताई थी जिसके तहत ई पेमैंट या चैक के जरिए भुगतान करने की बात कही गई थी। अब चुनावों में उम्मीदवारों को 20 हजार से ऊपर का खर्च चैक के रूप में करने को कहा गया है। इस चक्कर में उम्मीदवार अपने खाते में से सिर्फ उसी काम के लिए चैक से पेमैंट दे रहा है जो उसने पक्के खर्च में दिखानी होती है। हालांकि उम्मीदवारों के पैसे जो दूसरों के खाते में जमा हैं, उसके भी चैक उनके पास हैं और कई जगह फंड के रूप में चैक मिल रहे हैं। अगर उम्मीदवार किसी सामान की पेमैंट के लिए चैकों का प्रयोग करता है तो आगे चैक लेने वाला टैक्स या बिल के चक्कर में आनाकानी कर रहा है। 


वोट से ज्यादा फंड की डिमांड  
नोटबंदी के दौर में आए चुनावों में जो रोचक तस्वीर देखने को मिल रही है उसका एक पहलू यह भी है कि कई उम्मीदवार तो वोट की जगह फंड की डिमांड ज्यादा कर रहे हैं। कई जगह देखने को मिला कि जो उम्मीदवार हर किसी को अपने दोस्त, रिश्तेदार या बिजनैस सर्कल से वोटों के लिए संपर्क करने को कहता था, अब उसकी सिफारिश फंड दिलवाने के लिए हो रही है। 


डोर-टू-डोर प्रचार पर जोर
चुनावों में नोटबंदी का असर यह भी है कि रैलियों या मीटिंगों की जगह डोर-टू-डोर प्रचार पर जोर है क्योंकि रैली या मीटिंग करवाने वाले ज्यादातर लोगों द्वारा उम्मीदवार पर ही खर्च का बोझ डाला जाता है। साथ ही चुनाव आयोग की वीडियोग्राफी टीमें भी खर्च जोडऩे के लिए हर समय उम्मीदवार के पीछे लगी रहती हैं। इसका हवाला देते हुए उम्मीदवारों द्वारा डोर-टू-डोर प्रचार को पहल दी जा रही है। अगर कहीं मीटिंग करनी भी पड़ जाए तो बड़े आयोजन के रूप में टैंट, कुसिंयां लगाने की जगह घर या फैक्टरी के अंदर ही इसका प्रबंध हो रहा है। 

 

20,000 से ऊपर की पेमैंट चैक से करने का प्रावधान है। प्रत्याशी पेटीएम व ऑनलाइन ट्रांजैैक्शन के जरिए खर्चों की अदायगी कर सकते हैं। चुनाव आयोग ने वित्त विभाग से मामला उठाया है और इस पर वित्त विभाग की तरफ से जल्द ही कोई निर्णय लिया जाएगा। - वी.के. सिंह, सी.ई.ओ. पंजाब 

 

नहीं खुल रहे ज्यादा आफिस
चुनावों में आम तौर पर हर उम्मीदवार का आफिस नजर आता था लेकिन इस बार आफिस एकाध ही है क्योंकि अगर आफिस खुलेंगे तो उन सब का खर्च उम्मीदवार के खाते में जुड़ेगा। इसी तरह जो लोग आफिस में बैठेंगे, उनके खर्च भी उम्मीदवार को देने पडेंग़े। यहां तक कि जो उम्मीदवारों के आफिस बने हुए हैं, उनमें बनने वाला खाना भी पहले के मुकाबले सादा ही है। 

 

ये जरूरतें बनीं टैंशन 
1. ड्राइवर का वेतन प्रतिदिन 500
2. ढाडी जत्था                   3100
3. डी.जे.                         4000
4. ऑर्कैस्ट्रा                     12,000
6. लोकल सिंगर               20,000
7. स्टिल कैमरा                1500
8. वीडियो  कैमरा              1500
9. स्टेज के लिए फूल          2000

 

ये भी हैं रोज की जरूरतें 
पैट्रोल
हार, सिरोपे
भोजन व आवास 
होटलों का खर्चा
पम्फलैट, बैनर, स्टिकर
चाय, कॉफी

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