अकालियों के दोनों हाथों में ‘लड्डू: विधानसभा में ‘आप’ का साथ और सरकार में कांग्रेस का

Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Jun, 2017 11:49 AM

akali dal punjab

पंजाब की सत्ता पर 10 साल राज करने के बाद बेशक पंजाब में भाजपा तो कमजोर हुई है परंतु अकाली दल की अब भी बल्ले-बल्ले है।

पटियाला (राजेश) : पंजाब की सत्ता पर 10 साल राज करने के बाद बेशक पंजाब में भाजपा तो कमजोर हुई है परंतु अकाली दल की अब भी बल्ले-बल्ले है। गुजरे विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद बेशक अकाली दल को विपक्ष की कुर्सी भी नहीं मिली परंतु इसके बावजूद भी अकालियों के दोनों हाथों में ‘लड्डू’ हैं। पहले बजट सैशन में जिस तरह ‘आप’ और अकाली दल ने एक-दूसरे का साथ दिया, उस कारण दोनों की पुरानी कड़वाहट खत्म हुई है। 

चुनावों में लाभ कांग्रेस को मिला
विधानसभा चुनाव से पहले आप ने मुख्य निशाना अकाली दल पर रखा हुआ था और अकाली दल को इस कदर बदनाम किया था कि चुनावों में उसका लाभ कांग्रेस को मिल गया। दूसरी तरफ 10 साल के वनवास के बाद सत्ता में आए कै. अमरेन्द्र सिंह का रूप पूरी तरह बदला हुआ है। साल 2002 में सरकार बनाने के बाद जिस तरह कै. अमरेन्द्र सिंह ने एक्शन में आकर बादल परिवार के खिलाफ आमदन से अधिक जायदाद बनाने और भ्रष्टाचार के केस दर्ज करके उनको जेल भेज दिया था, उस तरह का एक्शन इस बार गायब है। इसके अलावा उस समय की बादल सरकार द्वारा लगाए गए पी.पी.एस.सी. के चेयरमैन और एस.एस. बोर्ड के सदस्यों के अलावा और कई मंत्रियों और अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज किए गए थे। इनके कारण ही कैप्टन सुर्खियों में आए थे। इस बार कैप्टन की कार्रवाइयों से ऐसा लगता है जैसेबादल और कैप्टन परिवार का चुनावों से पहले ही समझौता हो चुका हो। 

बादल ने प्रैस कान्फ्रैंस कर उड़ार्इ बजट की धज्जियां
बादल परिवार के कट्टर विरोधी स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू और वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल दोनों ही बादल सरकार की फाइलें खोलने के हक में हैं परंतु अमरेन्द्र सिंह ने इस मामले पर ब्रेक लगाई हुई है। यही कारण है कि कैप्टन ने बजट से एक दिन पहले प्रैस कान्फ्रैंस करके राहतों का पिटारा खोल कर मनप्रीत बादल के बजट की ‘फूंक’ निकाल दी थी। इसके अलावा बजट वाले दिन वह विधानसभा से ही गैर-हाजिर रहे। विधानसभा दौरान जब विधायक सुखजिंद्र सिंह रंधावा ने अकालियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की तो कैप्टन ने दो टूक जवाब दिया कि वह सिर्फ  दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे, किसी भी अकाली को तंग नहीं किया जाएगा। सैशन खत्म होने के बाद पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने जिस तरह प्रैस कान्फ्रैंस करके बजट की धज्जियां उड़ाईं, उससे स्पष्ट है कि यह सारा डाटा सरकार की तरफ से ही उपलब्ध करवाया हो क्योंकि इतनी जानकारी सरकारी स्तर पर ही मिल सकती है। 

बादलों के नजदीकी अफसरों को दिए जा रहे अहम पोस्ट
इसके अलावा पिछले 3 महीनों के दौरान कैप्टन सरकार की तरफ से जो आई.ए.एस., आई.पी.एस. और पी.सी.एस. अफसरों की बदलियां और पोस्टिंग की गई हैं, उन पर बादल परिवार का सीधा प्रभाव देखने को मिलता है। बादलों के नजदीकी अफसर धीरे-धीरे करके अहम पोस्टों पर नियुक्त किए जा रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के प्रिंसीपल सैक्रेटरी रहे एस.के. संधू को फिर से हायर एजुकेशन विभाग का एडिशनल चीफ सैक्रेटरी (ए.सी.एस.) लगा दिया गया है। हायर एजुकेशन विभाग के ए.सी.एस. बनने के बाद संधू के पास पंजाबी यूनिवर्सिटी और गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर का पद भी आ जाएगा। इसी तरह अकालियों के राज में 8 साल तक पंजाब वेयर हाऊसिंग निगम के एम.डी. रहे अरविंद्र सिंह बैंस को पहले पटियाला डिवीजन का कमिश्रर और अब रजिस्ट्रार को-आप्रेटिव सोसायटीज जैसे अहम पदों पर बिठा दिया है। बादलों के राज में तैनात रहे एक दर्जन के लगभग डिप्टी कमिश्रर आज भी डी.सी. की कुर्सी के मजे ले रहे हैं। 

सुरेश कुमार की ‘कृपा’ से अकालियों के चहेते अफसर ले रहे हैं अहम पोस्टें
सूत्रों के अनुसार कैप्टन के चीफ प्रिंसीपल सैक्रेटरी सुरेश कुमार की कृपा के साथ अकाली दल के साथ जुड़े रहे अफसर आनंद ले रहे हैं। कैप्टन की पुरानी सरकार के समय सुरेश कुमार उनके प्रिंसीपल सैक्रेटरी थे। 10 साल के अकाली दल के राज दौरान उनको कभी सिंचाई विभाग का प्रिंसीपल सैक्रेटरी और कभी वाटर सप्लाई सैनीटेशन विभाग का प्रिंसीपल सैक्रेटरी लगा कर रखा गया। अब रिटायरमैंट के बाद कैप्टन ने सुरेश कुमार को चीफ सैक्रेटरी की अपेक्षा भी अधिक पावरें देकर अपना चीफ प्रिंसीपल सैक्रेटरी नियुक्त कर लिया है। यही कारण है कि बादल के नजदीकी अफसरों को अब सुरेश कुमार फायदा पहुंचा रहे हैं। बेशक इसलिए कांग्रेस के लगभग 3 दर्जन एम.एल.ए. बेहद दुखी हैं। सूत्रों के अनुसार लगभग 40 एम.एल.ए. सुरेश कुमार के खिलाफ बगावत करने की तैयारी कर चुके हैं। विधायक इस बात से दुखी हैं कि एक रिटायर्ड आई.ए.एस. अफसर को इतनी तवज्जो दी जा रही है कि वह कांग्रेसी विधायकों की परवाह नहीं कर रहा है। सरकार के 100 दिनों में ही कांग्रेसियों का सरकार से मोह भंग होना शुरू हो गया है। 2002 वाली कैप्टन सरकार में बगावत 2 साल बाद हुई थी जबकि इस बार सुरेश कुमार के कारण बगावत 6 या 8 महीनों में ही होने की संभावना बनती दिखाई दे रही है। 

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