वायु प्रदूषण से पंजाब में कैंसर के 15% मरीज बढ़े

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Nov, 2017 11:39 AM

air pollution

दिल्ली के साथ-साथ पंजाब में वायु प्रदूषण के चलते सांस लेना भी जोखिम भरा है क्योंकि यह आपको कैंसर का मरीज बना सकता है। चाहे धूम्रपान को ही हमेशा फेफड़ों के कैंसर का सबसे बड़ा कारण माना जाता रहा है लेकिन वायु प्रदूषण भी आपको इस बीमारी की चपेट में ला...

जालन्धर/लुधियाना (रत्ता, सहगल): दिल्ली के साथ-साथ पंजाब में वायु प्रदूषण के चलते सांस लेना भी जोखिम भरा है क्योंकि यह आपको कैंसर का मरीज बना सकता है। चाहे धूम्रपान को ही हमेशा फेफड़ों के कैंसर का सबसे बड़ा कारण माना जाता रहा है लेकिन वायु प्रदूषण भी आपको इस बीमारी की चपेट में ला सकता है। कैंसर विशेषज्ञों की मानें तो पंजाब में ही वायु प्रदूषण के कारण 15 प्रतिशत कैंसर के मरीज बढ़ गए हैं।वर्ष 2013 में इंटरनैशनल एजैंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आई.ए.आर.सी.) ने विशेषज्ञों का एक पैनल तैयार किया ताकि कैंसर और आऊटडोर पॉल्यूशन के बीच संबंधों बारेसबूतों की समीक्षा की जा सके। इस पैनल के मुताबिक इस दावे के पुख्ता सबूत हैं कि घरों के बाहर पी.एम. 2.5 स्तर का वायु प्रदूषण कैंसर का सबब बन सकता है। अन्य मैट्रो शहरों के मुकाबले दिल्ली में फेफड़ों के कैंसर का जोखिम सबसे ज्यादा है। इस बारे में मैक्स कैंसर सैंटर की कैंसर विशेषज्ञ डा. मीनू वालिया की राय जानी गई। 

वायु प्रदूषण क्या है?
जब कई तत्वों के मिलने से हवा दूषित हो जाए तो उसे वायु प्रदूषण कहते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपके आसपास प्रदूषण का स्रोत क्या है? साल का कौन-सा महीना है और यहां तक कि मौसम भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकता है। वायु प्रदूषण की वजह मानव जनित हो सकती है, जैसे वाहनों और कारखानों से निकलने वाला धुआं, वहीं कुदरती भी जैसे कि धूल आदि। वायु प्रदूषण को 2 हिस्सों में बांटा जाता है-आऊटडोर और इनडोर पॉल्यूशन। दोनों तरह के प्रदूषण से कैंसर का खतरा बढ़ता है।


क्या हो सकते हैं इसके खतरे ?
हवा में मौजूद धुआं और धूल-कण इतने छोटे होते हैं कि ये सांस के जरिए शरीर में जाकर श्वसन संबंधी कई रोग पैदा कर देते हैं और सर्दियों में जब धुएं के कण स्मॉग बना देते हैं तो ये और भी खतरनाक बन जाते हैं। सांस के रोगों के अलावा यह स्किन एलर्जी का कारण भी बन सकता है। दिल्ली में यह फेफड़ों के कैंसर के बढ़ते मामलों के लिए सबसे बड़े कारणों में शामिल है। सैंटर ऑफ साइंस एंड एन्वायरनमैंट द्वारा 2016 में करवाए गए एक सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड और ओजोन का स्तर ज्यादा है तथा यह और ज्यादा बढ़ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दशक के मध्य के बाद से दिल्ली में फेफड़ों के कैंसर के मामले 33.3 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं। 
 

कैंसर रजिस्ट्री में फेफड़ों के कैंसर के मरीज ज्यादा  
पी.जी.आई. द्वारा राज्य के 3 जिलों संगरूर, मानसा, मोहाली के साथ चंडीगढ़ में किए शोध अनुसार राज्य में फेफड़ों के कैंसर के काफी मरीज हैं। यह शोध चंडीगढ़ में 6 लाख लोगों,  मोहाली में 5 लाख लोगों, संगरूर में 9 लाख लोगों तथा मानसा में  4  लाख  लोगों  से अधिक जनसंख्या पर आधारित है। 
सेहत विभाग के सहायक निदेशक डा. जी.बी. सिंह का कहना है कि राज्य में स्थापित कैंसर रजिस्ट्री में सामने आए मरीजों में फेफड़ों के कैंसर के मरीजों की संख्या काफी अधिक है। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण से सांस की तकलीफ, दमा, ब्रोंकाइटिस तथा फेफड़ों में संक्रमण हो सकता है परंतु अगर यह समस्या निरंतर बनी रहे तो कैंसर में तबदील हो सकती है।


केस नहीं, किसानों को समझाने की जरूरत  
खेती विरासत मिशन नामक गैर-सरकारी संस्था में पर्यावरण प्रदूषण सेहत व खोज विभाग में डायरैक्टर के पद पर काम कर रहे डा. अमर सिंह आजाद का कहना है कि पिछले कुछ समय से वायु प्रदूषण पर ध्यान दिया जा रहा है। यह एक अ‘छा संकेत है, जबकि हवा के साथ पानी और मिट्टी भी प्रदूषित हो गई है। पराली जलाना एक एक्यूट समस्या है, जो कुछ दिनों के लिए पैदा होती है, जबकि वाहन, उद्योगों से भी सारा वर्ष प्रदूषण होता है। आज किसानों पर केस डाले जा रहे हैं मगर उन्हें समझाने और जागरूक करने पर गौर नहीं किया जा रहा।  


युवाओं में भी आएंगे फेफड़ों के कैंसर के मामले
प्रसिद्ध कैंसर रोग विशेषज्ञ डा. जगदेव सिंह सेखों ने कहा कि वायु प्रदूषण से फेफड़ों के कैंसर के मामलों में वृद्धि हो रही है। अगर यही आलम रहा तो आने वाले 5 से 10 सालों के बीच युवाओं में फेफड़ों के कैंसर के मामले आम होंगे। एक निजी अस्पताल में औंको साइंस विभाग के डायरैक्टर के पद पर कार्यरत डा. सेखों ने कहा कि आमतौर पर फेफड़ों का कैंसर मध्यम आयु वर्ग और वृद्धावस्था में अधिक देखने को मिलता है परंतु वायु प्रदूषण के कारण अब युवा भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। पिछले 15 वर्षों में फेफड़ों के कैंसर में काफी वृद्धि हुई है और लगभग 15 प्रतिशत मरीजों में इसका इजाफा हुआ।  गौरतलब है कि इनमें काफी संख्या ऐसे लोगों की है, जो नॉन स्मोकर हैंैं।


वायु प्रदूषण का सीधा असर लोगों की सेहत पर होगा : डा. विपन कौशल 
मोहनदेई कैंसर एंड सुपर स्पैशलिटी अस्पताल के डायरैक्टर व कैंसर विशेषज्ञ डा. विपन कौशल का मानना है कि वायु प्रदूषण की समस्या से दृढ़ निश्चय से निपटने की जरूरत है, क्योंकि इसका 100 प्रतिशत बुरा असर लोगों की सेहत पर हो रहा है। उन्होंने कहा कि दीपावली व पराली जलाने के दिनों के अलावा भी वायु प्रदूषण का स्तर कभी भी सामान्य नहीं रहा। अगर यही हाल आने वाले दिनों में भी बना रहा तो जल्द ही लोगों की रिपोट्र्स में इसका असर देखने को मिलेगा। 


बचाव के लिए यह भी अपनाएं
प्रदूषण की वजह से शरीर की रोगों से लडऩे की क्षमता कम होने लगती है। वहीं सर्दियों की शुरूआत में उत्पन्न स्मॉग से फेफड़ों को भारी नुक्सान पहुंचता है लेकिन जीवनशैली और खानपान में कुछ आवश्यक कदम उठाकर श्वसन प्रक्रिया को बेहतर बनाया जा सकता है।


अंगूर, आंवला और अनानास
अंगूर, आंवला और अनानास भी फेफड़ों से विषाक्त तत्व बाहर निकालते हैं। वायु प्रदूषण से बचने के लिए इनका उपयोग सेहत के लिए बहुत अ‘छा है। लंदन में हुए एक अध्ययन के मुताबिक पता चला है कि अस्थमा और फेफड़ों की परेशानी से जूझ रहे लोग पर्याप्त मात्रा में विटामिन-सी नहीं लेते हैं। इन लोगों के अस्पताल में भर्ती होने के ज्यादा चांस होते हैं। विटामिन-सी में एंटीऑक्सीडैंट गुण ’यादा होते हैं जो वायु प्रदूषण के असर को कम कर देते हैं। 

सेब की ताकत
फेफड़ों की सेहत को दुरुस्त रखना है तो हर रोज फल जरूर खाएं। एक शोध के मुताबिक फलों का नियमित सेवन श्वसन रोगों को कम करता है। यहां तक कि हफ्ते में &-4 दिन फल खाना भी दमे के लक्षणों को कम करता है। नियमित सेब खाएं। एक अध्ययन के अनुसार हफ्ते में 5 से अधिक सेब खाने वालों के फेफड़ों की क्षमता अधिक होती है। नियमित सेब खाने वाले लोगों को सांस लेने में परेशानी कम होती है। सेब में क्वेसेटिन और खेलिन नामक फ्लेवेनॉएड होते हैं जो श्वसन नलियों को खोलते हैं। 


अदरक की चाय
अदरक पुराने समय से ही आजमाया हुआ नुस्खा है। अदरक की चाय से अपने दिन की शुरूआत करें और शाम को काम से लौटने के बाद एक कप फिर पिएं। श्वसन  नलियों में मौजूद प्रदूषक तत्व बाहर निकल जाएंगे। घर से बाहर निकलते समय जीभ के नीचे लौंग रखने से भी फायदा मिलता है। इससे गले व श्वसन नली में बलगम नहीं जमता और श्वास से जुड़े संक्रमण से भी बचा जा सकता है। 


ब्रोकली खाएं
ब्रोकली का तना चबाना फेफड़ों को स्वस्थ रखता है। एक अध्ययन के मुताबिक पौधों में पाया जाने वाला तत्व सल्फोराफेन ब्रोकली में प्रचुर मात्रा में होता है जो शरीर में बैंजीन तत्व बाहर निकालने में मदद करता है। यह तत्व कैंसरकारक है और फेफड़ों को नुक्सान पहुंचाता है। ब्रोकली स्प्राऊट्स व ब्रोकली का सूप पीने से फेफड़ों से टॉक्सिक बाहर निकालने में मदद मिलती है।

लहसुन खाएं
सप्ताह में 2 बार कच्चा लहसुन  खाना फेफड़ों के कैंसर के जोखिम को कम करता है। कैंसर प्रिवैंशन रिसर्च जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन मुताबिक क"ाा लहसुन खाना सेहत के लिए फायदेमंद है। यदि आप धूम्रपान करते हैं या अधिक प्रदूषण वाले माहौल में रहते हैं तो इसका सेवन फेफड़े संबंधी रोगों की आशंका को कम करता है। 

ये कदम भी उठाए जा सकते हैं
-जब प्रदूषण का स्तर ’यादा हो तो खुले में कसरत करने से बचें। एक्सरसाइज मशीन का इस्तेमाल करें या जिम जाएं।
-ज्यादा ट्रैफिक वाले क्षेत्र के पास कसरत करने से बचें। 
- न खुद धूम्रपान करें और न ही दूसरों को घर के अंदर या सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने दें।
- ट्रैफिक में मास्क का इस्तेमाल करें
-जहां तक संभव हो सके सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करें या पैदल चलें।
- कम पैट्रोल-डीजल इस्तेमाल करने वाले वाहनों का उपयोग करें
- स्वच्छ हवा वाले क्षेत्र में योग करें
- पटाखे जलाने से बचें
-घरों में साफ हवा के लिए एयर प्यूरिफायर का इस्तेमाल करें
- पेड़-पौधे लगाएं, हवा को साफ करने में सबसे ज्यादा मददगार

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