Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Oct, 2017 11:00 AM
फसलों के वैकल्पिक चक्र में उलझे किसान की गत वर्ष हुई आलुओं की बम्पर फसल ने अब तक किसानों का जहां दीवाला निकाल दिया है, वहीं सरकार द्वारा किसानों की गेहूं व धान की फसल के वैकल्पिक रूप में देने पर भी सवालिया निशान लगा दिया है।
सुल्तानपुर लोधी (धीर): फसलों के वैकल्पिक चक्र में उलझे किसान की गत वर्ष हुई आलुओं की बम्पर फसल ने अब तक किसानों का जहां दीवाला निकाल दिया है, वहीं सरकार द्वारा किसानों की गेहूं व धान की फसल के वैकल्पिक रूप में देने पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। नोटबंदी के बाद अब तक आलुओं की फसल न बिकने से परेशान कई किसानों की तो आर्थिक हालत बहुत ही बुरी हो चुकी है और ऊपर से अब कोल्ड स्टोर मालिकों द्वारा भी स्टोरेज के रेट बढ़ा देने से किसानों को कोल्ड स्टोर में रखी फसल को स्टोर में छोडऩे पर बिना पैसों से मजबूर होना पड़ रहा है।
नोटबंदी ने सबसे पहले किया बेड़ा गर्क
मोदी सरकार की नवम्बर 2016 में की नोटबंदी ने सबसे अधिक किसानों को आलुओं की फसल बेचने से वंचित किया है। नोटबंदी के चलते व्यापारियों द्वारा आलू खरीदने से हाथ खींचने के कारण किसानों को मजबूरीवश आलुओं को कोल्ड स्टोर में रखना पड़ा, जिसका खामियाजा आज तक किसान भुगत रहे हैं।
आलुओं की खेती करने वाले किसान रणजीत सिंह, फकीर सिंह व जगजीत सिंह आदि ने बताया कि आलुओं की खेती करने के लिए किसान को खादों, दवाइयों व अन्य खर्च करने के लिए 50 से 60 हजार रुपए एकड़ खर्च करना पड़ता है, लेकिन अभी तक पिछले वर्ष की ही फसल बिकने का नाम नहीं ले रही है तो आगे बीजी हुई फसल के भाव से और क्या उम्मीद की जा सकती है। इतनी बड़ी समस्या पहले कभी भी नहीं आई जो अब आ रही है। नोटबंदी के खेल ने बाकी व्यापारियों का तो जो खेल बिगाड़ा था, लेकिन आलुओं की फसल का बेड़ा गर्क करके रख दिया है। हालत यह है कि कोई भी व्यापारी आलू खरीदने को तैयार ही नहीं है।
कोल्ड स्टोर मालिकों ने बढ़ाया किराया
पहले ही आलुओं की कोई खरीद न होने से परेशान किसानों को उस समय और जबरदस्त धक्का लगा जब कोल्ड स्टोर मालिकों ने भी स्टोरेज करने का रेट 55 से बढ़ाकर एकदम दोगुना 100 रुपए कर दिए। इस तरफ न तो केंद्र और न ही प्रदेश सरकार का कोई ध्यान है। किसानों ने बताया कि किसान को एक आलू की बोरी पर सभी खर्च सहित 150 रुपए से ऊपर खर्च आ रहा है व बाजार में व्यापारी सिर्फ 70 रुपए किं्वटल के हिसाब से भी खरीदने को तैयार नहीं हैं। ऊपर से कोल्ड स्टोर मालिकों ने भी रेट बढ़ा दिए हैं, जिससे अब किसानों के पास कोल्ड स्टोर में पड़ा आलू छोडऩे के बिना कोई और चारा नहीं है।
सड़कों पर आलू बिखरेगा
नई फसल आने पर पहले किसानों द्वारा कोल्ड स्टोरों में पड़े आलू की फसल का भाव न मिलने से आलू न उठाने कारण कोल्ड स्टोर मालिकों को स्टोर खाली करने के लिए आलुओं को सड़क पर फैंकने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। 90 प्रतिशत से भी अधिक कोल्ड स्टोरों में आलुओं की फसल ने किसान की हालत बेहद पतली कर दी है।
क्या कहना है किसानों का
आलुओं के भाव न मिलने से परेशान किसानों राजिन्द्र सिंह नसीरेवाल, गुरप्रीत सिंह, गज्जन सिंह, मुख्तियार सिंह, शेर सिंह, नरिन्द्र सिंह, बलविन्द्र सिंह, जसविन्द्र सिंह, सुरिन्द्र सिंह, सुखविन्द्र सिंह व मुख्तियार सिंह भगतपुर आदि का कहना है कि किसानों की इस दुर्दशा के लिए मोदी सरकार जिम्मेदार है, जो फसलों के स्वामीनाथन रिपोर्ट के मुताबिक भाव रखकर दिए वचन से मुकर रही है, जिस कारण आज किसान अपनी ही फसल को बेचने के लिए तरस रहा है। अगर जल्द केंद्र व प्रदेश सरकार ने किसानों के बारे में न सोचा तो मजबूर होकर किसान आत्महत्या करने को मजबूर होंगे।