टिकटें व हलके बदलने से कांग्रेस को फायदा, अकाली-भाजपा को नुक्सान

Edited By Updated: 13 Mar, 2017 01:15 PM

advantage of congress shortage of tickets and light loss of akali bjp

पंजाब विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) तो पहली बार उतरी थी जिसने नए चेहरों के अलावा दूसरी पाॢटयों से आए नेताओं को मौका दिया जबकि अकाली-भाजपा व कांग्रेस ने पहले से चुनाव लड़ते आ रहे अपने कई नेताओं को टिकट न देने सहित कइयों के हलके भी बदल दिए...

जालंधरः पंजाब विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) तो पहली बार उतरी थी जिसने नए चेहरों के अलावा दूसरी पाॢटयों से आए नेताओं को मौका दिया जबकि अकाली-भाजपा व कांग्रेस ने पहले से चुनाव लड़ते आ रहे अपने कई नेताओं को टिकट न देने सहित कइयों के हलके भी बदल दिए थे। यह फार्मूला पिछली बार सुखबीर बादल ने अपनाया था। उसका इस बार कांग्रेस ने अनुसरण किया लेकिन इसका कांग्रेस को तो कहीं फायदा हुआ परन्तु अकाली-भाजपा को काफी नुक्सान हुआ है।  
‘आप’ के 3 सी.एम. पद के दावेदार चुनाव हारे
आम आदमी पार्टी अपने दावों के उलट सरकार बनाने के नजदीक भी नहीं पहुंच पाई। लोगों में व्यापक चर्चा के मुकाबले उसको नाममात्र सीटें ही मिली हैं। यहां तक कि ‘आप’ द्वारा सी.एम. के चेहरे बनाकर सुखबीर बादल के खिलाफ उतारे गए भगवंत मान, सी.एम. बादल के विरुद्ध लडऩे वाले जरनैल सिंह, पंजाब कन्वीनर गुरप्रीत घुग्गी हार गए हैं जबकि एक अन्य सी.एम. पद के उम्मीदवार एच.एस. फूलका को दाखा हलके से जीत मिली है। 

कुनबे की सियासत
देश की राजनीति में परिवारवाद का मुद्दा रहा है क्योंकि पहले ये हालात सिर्फ कांग्रेस में थे। अब सब पाॢटयों में कुनबे की सियासत का बोलबाला है क्योंकि कई नेता अपने परिवार के किसी मैंबर या रिश्तेदार को सियासी विरासत सौंप रहे हैं। कई जगह नेता खुद चुनाव लडऩे या किसी पद पर रहते हुए अपने परिजनों को भी चुनाव लड़वाने लगे हैं। इस कारण चुनावों से परिवारवाद का मुद्दा गायब होने लगा है। फिर भी आम आदमी पार्टी ने एक परिवार में एक ही टिकट देने की बात करके यह मुद्दा छेडऩे की कोशिश की लेकिन उसने बैंस ब्रदर्ज को चुनाव लड़वाने के लिए उनके साथ समझौता करके यह दावा फीका कर दिया जबकि कांग्रेस में एक परिवार को एक टिकट देने के दावे पर कैप्टन कायम रहे जिस कारण कई नेताओं के पहले से लड़ते आ रहे रिश्तेदार चुनाव नहीं लड़ पाए या फिर कई नेताओं ने अपनी सीट पर परिवार के मैंबरों को लड़वाया। इनमें से कई कुनबे की सियासत को आगे बढ़ाने में कामयाब हो गए हैं जबकि कइयों को कामयाबी नहीं मिली है।

5 सीटों पर रिश्तेदारों में हुई लड़ाई
इन चुनावों में एक रोचक पहलू यह भी रहा कि कई जगह सगे रिश्तेदार एक-दूसरे के सामने चुनाव लड़ रहे थे। ये सब कांग्रेसी थे जिनमें बटाला से अश्विनी सेखड़ी को हार का सामना करना पड़ा। उनके खिलाफ उनके भाई इंद्र सेखड़ी खड़े हुए थे जबकि मालेरकोटला से रजिया सुल्ताना के खिलाफ उनके भाई अरशद डाली, नवांशहर से अंगद सैनी के खिलाफ चाचा चरणजीत चन्नी, डेरा बाबा नानक से सुखजिंद्र रंधावा के खिलाफ उनके भतीजे दीपइंद्र रंधावा चुनाव मैदान में थे। इसी तरह सुनाम में पूर्व विधायक भगवान दास अरोड़ा के बेटे अमन अरोड़ा ने कांग्रेस छोड़क र आम आदमी पार्टी ज्वाइन की थी। यहां से कांग्रेस की टिकट मांग रहे अमन के जीजा राजिंद्र दीपा ने भी आजाद तौर पर चुनाव लड़ा। 

इन बागियों ने डुबोई लुटिया
इन चुनावों में अकाली-भाजपा या कांग्रेस ने जिन नेताओं की टिकटें काटीं या जिनको नए सिरे से मांग करने पर टिकट नहीं मिली उनमें से काफी नेता तो दूसरी पाॢटयों में चले गए और कइयों ने आजाद तौर पर मोर्चा खोला। इन नेताओं की वजह से कई जगह पार्टियों को हार का सामना करने को मजबूर होना पड़ा। इनमें ज्यादा कांग्रेस के हैं, वर्ना पार्टी की जीत इससे भी बड़ी होती। 

हलका   उम्मीदवार    किस पार्टी के बागी 
लुधियाना उत्तरी मदन लाल बग्गा   शिअद
सुजानपुर  नरेश पुरी   कांग्रेस 
नकोदर  गुरबिंद्र अटवाल   कांग्रेस
बंगा   त्रिलोचन सिंह   कांग्रेस 
लहरागागा   शाम सिंह    कांग्रेस 
सुनाम  राजिंद्र दीपा  कांग्रेस 
बरनाला   गुरकीमत सिंह  कांग्रेस 
महल कलां  गोबिंद सिंह कांझला   शिअद
घनौर   अनूपइंद्र कौर संधू     शिअद
भदौड़    राजिंद्र कौर मीमसा  कांग्रेस

‘आप’ को सत्ता से दूर रखने में कामयाब हुईं नई पार्टियां

पंजाब में पिछले चुनावों में पी.पी.पी. का गठन वैसे तो मनप्रीत बादल के अकाली दल से अलग होकर हुआ था जिसे लेकर कहा जा रहा था कि पी.पी.पी. का नुक्सान अकाली दल को होगा लेकिन हुआ इसके उलट। जब कांग्रेस को कई सीटों पर मिली हार की वजह पी.पी.पी. उम्मीदवार बने तो अकाली दल को दूसरी बार सरकार बनाने का मौका मिला। अब इस रोल में अपना पंजाब पार्टी, स्वराज पार्टी आदि रहीं जिनका जन्म आम आदमी पार्टी से अलग होने के कारण हुआ है। तृणमूल कांग्रेस ने भी उम्मीदवार खड़े किए जिसे लेकर कहा जाता था कि इन पार्टियों को अकाली दल व कांग्रेस की सपोर्ट है ताकि ‘आप’ को सत्ता से दूर रखा जाए परन्तु यह बात काफी हद तक सही साबित होती नजर आ रही है।

 
   

     

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