Edited By Updated: 27 Mar, 2017 10:36 AM
जिले के सरहदी क्षेत्र में रावी दरिया के पानी को अवैध ढंग से रोकने के लिए बनाए गए अस्थाई पुल को प्रशासन ने बेशक 2 दिन पहले ध्वस्त कर दिया था परन्तु इससे माइनिंग माफिया के हौसले पस्त नहीं हुए।
पठानकोट/बमियाल(शारदा,राकेश, मनीष, आदित्य): जिले के सरहदी क्षेत्र में रावी दरिया के पानी को अवैध ढंग से रोकने के लिए बनाए गए अस्थाई पुल को प्रशासन ने बेशक 2 दिन पहले ध्वस्त कर दिया था परन्तु इससे माइनिंग माफिया के हौसले पस्त नहीं हुए। इस गोरखधंधे में लिप्त लोगों ने एक और अवैध पुल गांव गुगरां के करीब रावी दरिया पर बना लिया है। वर्णनीय है कि कांग्रेस सरकार के सत्ता में आते ही माइनिंग माफिया पर नकेल कसने व गुंडा टैक्स वसूलने के तिलिस्म को तोडने के लिए पिछले लम्बे समय से चल रहा बहादुरपुर के समीप बनाया गया अवैध पुल 2 दिन पहले तोड़ दिया गया था, परन्तु इसके 2 दिनों बाद ही नरोट जैमल सिंह क्षेत्र में पड़ते गांव गगरा के करीब उपरोक्त श्रेणी का ही अवैध पुल तैयार कर लिया गया है। इस स्थान पर भी बहादुरपुर की तरह रावी दरिया के पानी को अवैध रूप से रोककर पुल बनाया गया है।
यहां भी रॉ मैटीरियल लाने के लिए अवैध पुल का निर्माण किया गया। अगर इस पुल को सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखा जाए तो संवेदनशील व सीमांत क्षेत्र में होने के कारण अत्यंत खतरे का प्रतीक है। वर्णनीय है कि पिछले वर्षों दौरान हुए दीनानगर व पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमलों को अंजाम देने वाले हमलावरों के लिए सरहद से घुसपैठ करने के बाद आगे टारगेट तक पहुंचने के लिए ऐसे पुल ही सिल्क रूट साबित होते हैं। इस पुल के माध्यम से बिना किसी नाके पर जांच करवाए जम्मू-कश्मीर से पंजाब में प्रवेश करना तथा पंजाब के इलाके से भारत-पाकिस्तान सीमा की तरफ घुसना खासा आसान है।
क्रशर इंडस्ट्री तथा माइनिंग माफिया पिछले लंबे समय से सरकारी जमीनों का प्रयोग अपनी स्वार्थ सिद्धियों को पूरी करने के लिए करता आ रहा है। 6 माह पहले क्रशर इंडस्ट्री के साथ माइनिंग माफिया ने बहादुरपुर में रावी दरिया का पानी रोककर अवैध पुल बना लिया था परन्तु इसे लम्बे समय बाद ध्वस्त किए जाने के बाद अब गुगरां में एक और अवैध पुल अस्तित्व में आ गया है। जो इस बात का द्योतक है कि बेशक पंजाब सरकार माइनिंग माफिया के नैक्सस को तोडऩे के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही है परन्तु उसके हौंसले पिछले एक दशक से इतने हौसले बुलंद हो चुके हैं कि छोटी-मोटी प्रशासनिक अथवा सरकारी स्तर पर होने वाली कार्रवाई से उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता।