सरकार के बाल-मजदूरी रोकने के दावे ठुस्स,नन्ही परी जान जोखिम में रेलवे ट्रैक पर खोज रही रोटी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Nov, 2017 11:36 AM

a little girl searching food on railway track

देश को आजाद हुए चाहे 72 वर्ष के लगभग हो गए हैं लेकिन जो हालात गरीबों के तब थे, वे अब भी बदस्तूर जारी हैं। इसे देख कर ऐसा प्रतीत नहीं होता कि हमारे देश को कभी आजादी मिली हो। इस समय दौरान आज तक कई सरकारें आईं और गईं, परंतु गरीबों की सुनवाई आज तक नहीं...

अमृतसर (जशन, सागर): देश को आजाद हुए चाहे 72 वर्ष के लगभग हो गए हैं लेकिन जो हालात गरीबों के तब थे, वे अब भी बदस्तूर जारी हैं। इसे देख कर ऐसा प्रतीत नहीं होता कि हमारे देश को कभी आजादी मिली हो। इस समय दौरान आज तक कई सरकारें आईं और गईं, परंतु गरीबों की सुनवाई आज तक नहीं है, जिससे उनके हालात जस के तस बने हुए हैं। हां, एक बात जरूर है कि जब भी चुनाव आते हैं तो सभी नेताओं को सबसे पहले इन गरीबों की ही याद आती है। तब यही नेता गरीबों से बहुत बड़े-बड़े वायदे करते हैं और घोषणाएं तक करते हैं कि हमारे राज में गरीबी हटाए जाएगी, परंतु सत्ता पर काबिज होते ही ये नेता गरीबी को हटाने की बजाए, इन गरीबों को ही हटा देने के लिए तत्पर हो जाते हैं।

गरीब आज भी दो वक्त की रोटी का लिए अपनी जान की परवाह किए बिना अपनी जान जोखिम में डाल देता है। फिर भी इतनी मेहनत के बाद उसे मात्र दो वक्त ही रोटी ही नसीब हो पाती है, चाहे वह औरत हो, मर्द हो,बजुर्ग हो, या फिर कोई गरीबी में पल रहा मासूम बच्चा हो। ऐसा ही एक नजारा आज रेलवे स्टेशन पर दिखाई दिया, जहां पर एक छोटी-सी नन्ही बच्ची पढऩे की बजाए, अपना व अपने परिवार का पेट पालने के लिए रेल ट्रैक पर कूड़ा बीनती दिखी।

यह सरकार की अनदेखी ही है कि जिस उम्र में उक्त बच्ची के हाथों में किताबें होनी चाहिए थीं, उसकी जगह वह तड़के सुबह की कड़ी ठंड में रेल ट्रैक पर अपनी जान जोखिम में डालकर कूड़ा व प्लास्टिक की खाली बोतलें एकत्रित करती दिखाई दी। दूसरा पहलू यह है कि एक तरफ तो सरकार बाल मजदूरी को रोकने के लिए बड़े-बड़े दावे करती नहीं थकती, वहीं उक्त नजारा देखकर इन दावों की सारी सच्चाई सामने आ जाती है। उस मासूम को यह तक पता नहीं है कि वह कितना बड़ा खतरा उठा कर अपने पेट के लिए दो जून की रोटी का इंतजाम कर रही है।

उक्त लड़की की आयु भी मात्र 5 वर्ष से ज्यादा नहीं थी। यह उम्र उसके पढऩे व खेलने-कूदने की है, परंतु वह अपने उन नाजुक व छोटे-छोटे नन्हे हाथों से लोगों द्वारा फैंकी गई खोली बोतलें इकट्ठा कर रही है। क्या सरकारी अधिकारियों को ये चीजे दिखाई नहीं देतीं, यह एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है?

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