70 स्वतंत्रता दिवस पर बुजुर्गों ने बयां किया बंटवारे का दर्द

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Aug, 2017 09:07 AM

70 independence day

आज हम 70 स्वतंत्रता दिवस मना रहे है। इस अवसर पर बुजुर्गों ने देश की आजादी के समय तथा भारत-पाक बटंवारे के दर्द को ताजा करते हुए अपनी यादें सांझी की।   गुरु बाजार के पास स्थित कटड़ा हरी सिंहनिवासी 82 वर्षीय बुजुर्ग दर्शन कुमार जोकि इलेक्ट्रीशियन की...

अमृतसर(ममता):आज हम 70 स्वतंत्रता दिवस मना रहे है। इस अवसर पर बुजुर्गों ने देश की आजादी के समय तथा भारत-पाक बटंवारे के दर्द को ताजा करते हुए अपनी यादें सांझी की।   गुरु बाजार के पास स्थित कटड़ा हरी सिंह निवासी 82 वर्षीय बुजुर्ग दर्शन कुमार जोकि इलेक्ट्रीशियन की दुकान चलाते हैं ने बताया कि उक्त बाजार का नाम जम्मू के राजा गुलाब सिंह के बेटे हरि सिंह नाम पर रखा गया था।

यह बाजार बाद में कपड़े की बड़ी मार्कीट के रूप में तबदील हो गया।वहां स्थित चौक में रात 12 बजे से सुबह 4 बजे निर्यात होने वाले कपड़े की पैकिंग होती थी। वहां से कपड़ा लाहौर,पेशावर,मरदान,काबुल तक जाता था लेकिन आजादी केबाद जहां कपड़े के व्यापार पर प्रभाव पड़ा । वहीं कपड़े की नई-नईकिस्मों के चलन ने भी इसे प्रभावित किया अब उक्त बाजार का चौक सूना पड़ा है और वहां पर लोग अपना अलग-अलग कारोबार करतेहैं।

अब नहीं रहा पहले वाला अमृतसर:
सेना में सेवानिवृत्त 104 वर्षीय बुजुर्ग भोला राम जिनका जन्म अमृतसर के कटड़ा आहलुवाला में 1913 में हुआ था, ने बताया कि जब से उन्होंने होश संभाली आहलुवाला कटड़ा में बड़े स्तर पर कपड़े का व्यापार होता था।  यहीं से ही लाहौर में निर्यात होता था। 1947 में जब हरमंदिर साहिब में मुसलमानों ने हमला कर इसे तोड़ने का प्रयास किया तो मास्टर तारा सिंह ने कटड़ा आहलुवाला के युवाओं को इसके बचाव के लिए इकट्ठा किया, जिनमें वह भी शामिल थे और हाथों में पिस्तौल लेकर उन्होंने न केवल मुस्लिम हमलावरों को वहां से भगाया बल्कि मास्टर तारा सिंह को भी उनके चंगुल से छुड़ाया। भोला राम जनरलमानिक शाह के समय सेना में भर्ती हुए थे ।

चीन के साथ लड़ाई के बाद उन्होंने सेना से सेवानिवृत्ति लेकर सेना के क्षेत्र में ही कैंटीन भी चलाई। उन्होंने ने बताया कि पुराने अमृतसर की बात ही अलग थी। उस समय किसी भी तरह से हिंदू, सिख, मुस्लिम का कोईविवाद नहीं था सभी मिलजुल कर रहते थे। एक दूसरे के सुख-दु:ख मेंकाम आते थे। शहर में चारों ओर रौनक होती थी, बाजारों की चहल पहल देखने ही वाली होती थी लेकिन अब पहले वाला न तो अमृतसर रहा और न ही वैसे लोग।

हिंदू सिख का कोई भेद नहीं था
इसी तरह टेलिफोन एक्सचेंज के पास स्थित चौक पासियां में पीढ़ी दर पीढ़ी वसीका नवीस का काम करते 72 वर्षीय प्रमोद कुमार ने बताया कि उनके बुजुर्गों के अनुसार पुराने समय में उक्त बाजार में रूई पेंजा,कोहलु व खराद होते थे जिनका कारोबार पाकिस्तान तक फैला हुआ था। उक्त इलाके को बाबा भाई सालो ने बसाया था जिनके नाम से उक्त स्थान पर पानी की बावड़ी के पास स्थित धर्मशालाको बाद में उनके समय दौरान ही गुरूद्वारा साहिब में तबदील कियागया।

उन्होंने अपनी दुकान पर भी बाबा भाई सालो की तस्वीर लगाईहुई थी और बताया कि उनके बुजुर्ग शुरू से ही बाबा जी को ही मानते थे। उनके अनुसार उस समय हिंदू सिख का भेद नहीं था सभी परस्पर मिलजुल कर रहते थे लेकिन आतंकवाद के दौर के बाद यह सारे भेदभाव सामने आए।

प्यार ज्यादा था तकरार नहीं
 76 वर्ष के शहीद भगत सिंह रोड निवासी कृष्ण कुमार नैयर ने बताया कि बंटवारे से पहले अमृतसर चाहे इतना विकसित नहीं हुआ था पर लोगों में मिलजुल के रहना
और प्यार ज्यादा था तकरार नहीं। उनकी मां हरबंस कौर की शादी एक हिन्दू परिवार में हुई थी और अब की तरह धर्म के नाम पर तलवारे नहीं चलती थी। बंटवारे के बाद अमृतसर विकसित तो बहुत हुआ है और गुरु नानक देव विश्वविद्यालय इसका साक्ष्य है पर विकास और उन्नति के लिए दौड़ते लोगों में अपनापन खो सा रहा है।

अमृतसरियों के साथ बदला स्वाद भी
चौक पासीयां में ही हलवाई काकाम करते करीब 70 वर्षीय महेंद्र पाल सैनी के अनुसार अमृतसर के साथ साथ अब अमृतसरियों का स्वाद भी बदल गया है। उनके अनुसार पहले लोग मेसू,पतीसा,बालूशाही,बेसन की बर्फी,खोए की बर्फी,कड़ाह पूड़ा बड़े चाव से खाते थे लेकिन अब नई पीढ़ी इस ओर मुंह ही नहीं करती। इसलिए उन्होंने भी अपने बच्चों को इस कारोबार में डालने की बजाय अन्य कामों में डाला है।
 

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