150 ग्राम नशीले पाऊडर का आरोपी बरी

Edited By Updated: 20 Jan, 2017 02:36 PM

150 gram intoxicating powder recovered

150 ग्राम नशीला पाऊडर बरामद किए जाने के मामले में अभियोजन पक्ष की कमजोर गवाहियों एवं कमजोर साक्ष्यों के कारण स्थानीय अतिरिक्त जिला एवं सैशन जज शिव मोहन गर्ग की अदालत ने एक आरोपी को बरी कर दिया है।

अमृतसर (महेन्द्र): 150 ग्राम नशीला पाऊडर बरामद किए जाने के मामले में अभियोजन पक्ष की कमजोर गवाहियों एवं कमजोर साक्ष्यों के कारण स्थानीय अतिरिक्त जिला एवं सैशन जज शिव मोहन गर्ग की अदालत ने एक आरोपी को बरी कर दिया है। बरी होने के बावजूद आरोपी को अपनी रिहाई के लिए 25 हजार रुपए का निजी जमानती मुचलका (बांड) भी भरना पड़ा।गौरतलब है कि 26 मई, 2014 को थाना ए-डिवीजन में तैनात ए.एस.आई. मनोहर सिंह के अनुसार उस दिन वह अपनी पुलिस पार्टी के साथ अपराधी तत्वों की तलाश के साथ-साथ वाहनों की चैकिंग करने के लिए कश्मीर एवेन्यू को जा रहे थे।

इस दौरान टी-प्वाइंट के नजदीक गुरुद्वारे के समीप रामतलाई निवासी कथित आरोपी जसपाल सिंह उर्फ जस्स पुत्र बलदेव सिंह को पुलिस पार्टी ने संंदेह के आधार पर काबू कर उसके कब्जे में से 150 ग्राम नशीला पाऊडर बरामद करने का दावा किया था। उसके खिलाफ थाना ए-डिवीजन में एन.डी.पी.एस. एक्ट की धारा 22-61-85 के तहत मुकद्दमा नंबर 181/2014 दर्ज किया गया था। 

बरी हुए आरोपी की मां की फरियाद पर अदालत ने दिखाई नर्मी
हालांकि अदालत ने इस मामले में कथित आरोपी को बरी भी कर दिया है, लेकिन इस फैसले के बावजूद अदालत ने आरोपी को रिहा करने के लिए उसे 25 हजार रुपए के निजी जमानती बांड भी भरवाए। हालांकि इससे पहले अदालत ने कथित आरोपी से जमानत प्रस्तुत करने को कहा था। इस पर आरोपी की मां का कहना था कि वह तंदूर में रोटियां लगाती है और बहुत ही गरीब है। उसके पास अपना कोई मकान तक नहीं है। इसके कारण वह अपने बेटे की जमानत करवाने के लिए जमानत का प्रबंध भी नहीं कर सकती।

अदालत ने आरोपी व उसकी मां की कमजोर आर्थिक स्थिति देख नर्मी बरतते हुए बरी होने वाले आरोपी से ही निजी जमानती बांड भरवाने का फैसला किया। उसका कारण यह बताया जाता है कि अगर सैशन कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सरकार (पुलिस विभाग) द्वारा हाई कोर्ट में अपील दायर की जाती है तो ऐसी हालत में बरी होने वाले आरोपी की हाई कोर्ट में पेशी यकीनी बनाने के लिए कुछ अदालतें यह कानूनी प्रक्रिया भी अपनाती हैं जिसका सी.आर.पी.सी. (क्रिमिनल प्रोसीजर कोड) में पहले से ही प्रावधान है। 
 

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