Edited By Updated: 20 Jan, 2017 12:15 PM
20वीं शताब्दीके 8वें दशक में मैंने पंजाब के बारे में 2 बेहद उदास पंक्तियां लिखी थीं पर कुछ सालों बाद उन्हीं उदास पंक्तियों में से कुछ नए पौधों जैसे शब्द निकल आए।
20वीं शताब्दीके 8वें दशक में मैंने पंजाब के बारे में 2 बेहद उदास पंक्तियां लिखी थीं पर कुछ सालों बाद उन्हीं उदास पंक्तियों में से कुछ नए पौधों जैसे शब्द निकल आए। वह कविता मेरे नए काव्य संग्रह में ‘चन्न सूरज दी वहंगी’ में शामिल है। अपनी वह कविता मैं आपके साथ सांझी करता हूं मातम, ङ्क्षहसा, खौफ, बेबसी ते अन्याय एह ने अज्ज कल दे पंज दरियावां दे नां
जो हुंदे सन सतलुज, ब्यास, रावी, जेहलम ते चनां पर जो इक्क दिन होणगे राग, शायरी, हुस्न, मोहब्बत ते नयां मेरे दरियावां दे नां।
मेरे पंजाब में राग, शायरी, हुस्न, मोहब्बत व न्याय भरे व्यवहार के दरिया बहें, यह मेरा स्वप्न है। मेरे स्वप्न स्रोत इस धरती की विरासत में ही हैं। पंजाब की धरती पर कई काव्य ग्रंथ रचे गए। मेरे सपनों के पंजाब में पंजाबियों को जोडऩे वाली उनकी सांझी मां बोली पंजाबी की कद्र सभी पंजाबियों के दिलों में है। बस यही मेरा अरमान है। आज के पंजाबी परिवार पंजाबी भाषा के प्यार से दूर हो चुके हैं। पंजाब की धरती पर बने स्कूलों में ही पंजाबी भाषा को धिक्कारा जा रहा है। इस धरती के बच्चों को पंजाबी बोलने पर जुर्माना होता है जबकि शिक्षाविदों के अनुसार अंग्रेजी भाषा सीखने का सही रास्ता भी मां बोली के कदमों से ही निकलता है। पंजाबी इस समय कई राज्यों व देशों में बसे हैं। वे पंजाब को अपने पूर्वजों की धरती केरूप में पूजनीय मानते हैं। इसका सुख मांगते हैं व इसे दुनिया में से सबसे सुंदर बनाने की दुआ करते हैं। सभी अपने-अपने ढंग से कोशिश भी कर रहे हैं। -लेखक सुरजीत पातर