दूसरों के घरों में रोशनी करने वाले खुद अंधकार में

Edited By Updated: 24 Oct, 2016 01:10 PM

diwali festival

दीपावली के नजदीक आते ही मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ जाती है। स्टील व प्लास्टिक के बर्तनों और चाइनीज लडिय़ों के प्रचलन के चलते परम्परागत मिट्टी

नाभा (गोयल): दीपावली के नजदीक आते ही मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ जाती है। स्टील व प्लास्टिक के बर्तनों और चाइनीज लडिय़ों के प्रचलन के चलते परम्परागत मिट्टी के बर्तनों व दीयों का प्रचलन काफी कम हो गया है जिसके चलते कुम्हार आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। इन दिनों दिन-रात एक करने के बावजूद उन्हें अपने हाथों से बनाए उत्पाद बेचना तथा अपने परिवार का गुजर-बसर करना मुश्किल हो गया है। 


इससे लगता है कि दूसरों के घरों में रोशनी करने वाले खुद अंधकार में जीवन बसर करने को मजबूर हैं।  दीपावली का उत्सव कुम्हार अपने लिए शुभ मानते हैं और इस उत्सव के दौरान सख्त मेहनत करते हैं ताकि वे अच्छा लाभ कमा सकें  लेकिन आधुनिकता व चाइनीज परिवेश के कारण उनके परम्परागत धंधे पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। नाभा में मिट्टी के दीये बनाने का काम करने वाले कुम्हारों ने बताया कि वे तथा उनके पूर्वज सदियों से मिट्टी से विभिन्न प्रकार के दीयों का निर्माण करते आए हैं लेकिन मिट्टी की कलाकारी करने वालों को मेहनत का पूरा पैसा एवं सम्मान नहीं मिल पाता है। 

 

उन्होंने बताया कि आज के दौर में उन्हे महंगे दामों पर मिट्टी खरीदनी पड़ती है और फिर मिट्टी से कंकर अलग करना, गूंथकर तैयार करने में सारा परिवार हाथ बंटाता है। इसके बाद चाक पर चढ़ाकर करवे, दीये व विभिन्न प्रकार के मिट्टी के उत्पाद बनाए जाते हैं और फिर बर्तनों को रेहडिय़ों व सिर पर रखकर गलियों में घूमते हुए बेचकर वह अपनी आजीविका कमा रहे हैं।

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