Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Mar, 2018 01:54 PM
करीब 4 वर्षों से विवादों में चल रहे महिंद्रा स्विमिंग पूल पर आधिकारिक तौर पर कब्जा किसका होगा, इसकी सुनवाई 6 मार्च को डिप्टी कमिश्नर द्वारा की जानी है। कागजों में महिंद्रा कॉलेज के नाम पर चल रहे इस पूल पर खेल विभाग ने अपना दावा किया है। लेकिन कॉलेज...
पटियाला(प्रतिभा): करीब 4 वर्षों से विवादों में चल रहे महिंद्रा स्विमिंग पूल पर आधिकारिक तौर पर कब्जा किसका होगा, इसकी सुनवाई 6 मार्च को डिप्टी कमिश्नर द्वारा की जानी है। कागजों में महिंद्रा कॉलेज के नाम पर चल रहे इस पूल पर खेल विभाग ने अपना दावा किया है। लेकिन कॉलेज अथॉरिटी का कहना है कि यह पूल शुरू से लेकर अब तक कॉलेज का ही है और खेल विभाग के अस्तित्व में आने के काफी समय के बाद इस पूल को प्रयोग करने का एक फैसला हुआ था।
उसके बाद से पूल खेल विभाग प्रयोग कर रहा है। अब इस पूल पर वह जबरन कब्जा किया जा रहा है और कॉलेज की स्विमिंग टीम व अन्य छात्र, जिनकी गिनती 100 से ऊपर है, को यह पूल प्रयोग नहीं करने दिया जा रहा है। इस कारण इस मामले ने विवाद का रूप धारण कर लिया है। हालांकि 4 साल में पूल की दावेदारी को लेकर कई घटनाएं भी हो चुकी हैं, पर अभी तक जिला प्रशासन इसका हल निकालने में असफल रहा है।
1955 में बना पूल मङ्क्षहद्रा कॉलेज के नाम पर चल रहा
महिंद्रा पूल 1955 में बना था, तब से कागजों में इसका खर्च और मैंटीनैंस वगैरह सब मङ्क्षहद्रा कॉलेज के नाम पर ही चल रहा है। हालांकि अगर असल फर्द की बात करें तो महिंद्रा कॉलेज और महिंद्रा पूल दोनों ही सरकार के नाम पर हैं। पी.डब्ल्यू.डी. विभाग के नाम पर इन दोनों जगहों की फर्द है। पर 2014-15 में शुरू हुए इस विवाद में कॉलेज अथॉरिटी और खेल विभाग को जिला प्रशासन द्वारा संबंधित डॉक्यूमैंट्स इकट्ठा करने को कहा गया था और कॉलेज अथॉरिटी ने जो डॉक्यूमैंट्स इकट्ठे किए, उसमें 1922 का एक नक्शा भी शामिल है। इसमें पूल की जमीन समेत समानिया गेट का सारा एरिया व काफी जगह मङ्क्षहद्रा कॉलेज के नाम पर है। हालांकि अब इन जगहों पर रिहायशी और कमर्शियल निर्माण हो चुका है।
अब फीस लेकर सिखाते हैं खेल विभाग वाले
खेल विभाग अथॉरिटी यहां हर साल 100 से ज्यादा बच्चों को स्विमिंग फीस लेकर सिखाते हैं। यह फीस 300 से 600 रुपए महीना है। हालांकि खेल विभाग का कहना है कि पूल की मैंटीनैंस, पानी वगैरह आदि खर्चों पर फीस से इकट्ठे हुए पैसे जाते हैं। मङ्क्षहद्रा कॉलेज अथॉरिटी का कहना है कि यह प्रोफैशनल तौर पर ट्रेङ्क्षनग दे रहे हैं जबकि उन्होंने कॉलेज की टीमों और स्टूडैंट्स को फ्री में ट्रेङ्क्षनग देनी है। अब कॉलेज के पास फंड्स हैं और कोच भी नियुक्त कर चुके हैं। हालांकि जब यह विवाद शुरू हुआ तब कॉलेज के कोच पर अटैक भी हुए। इस वक्त पूल बंद चल रहा है और उस पर खेल विभाग ने अपना ताला लगाया है। इसके बाद कॉलेज ने भी उसी ताले के ऊपर ताला लगा दिया है। अब इसका फैसला होना बाकी है कि इस पूल का क्या होगा।
एन.आई.एस. के डिप्लोमा स्टूडैंट्स को दी जाती थी ट्रेनिंंग
खेल विभाग के पास आने से पहले यह पूल एन.आई.एस. के पास था। एन.आई.एस. यहां अपने डिप्लोमा खिलाडिय़ों को ट्रेङ्क्षनग करवाते थे। इसके लिए एन.आई.एस. का एक कोच यहां नियुक्त था। उसके बाद 1990 के बाद यह पूल खेल विभाग द्वारा प्रिंसीपल महिंद्रा कॉलेज से अपील करने के बाद दे दिया गया, क्योंकि उस वक्त कॉलेज के पास न तो पूल को ठीक करवाने के लिए फंड थे और न ही कोच हुआ करता था। जब 2002 में यहां नैशनल गेम्स करवाई गईं तो सरकार के फंड से इसे खिलाडिय़ों हेतु वार्मअप पूल के तौर पर तैयार किया गया। उसके बाद से जो भी काम यहां खेल विभाग ने करवाए, वे सभी मङ्क्षहद्रा कॉलेज से लिखित में मंजूरी लेने के बाद हुए हैं।
पूल की विजीलैंस जांच होनी चाहिए: प्रिंसीपल
मङ्क्षहद्रा कॉलेज प्रिंसीपल डा. संगीता हांडा ने डी.सी. को लिखे एक लैटर में साफ किया है कि पूल का कमॢशयल प्रयोग खेल विभाग कर रहा है। जो फीस से पैसा कमाया जा रहा है, उसका क्या किया जा रहा है इसे लेकर विजीलैंस जांच होनी चाहिए। इसके अलावा अगर खेल विभाग इस पूल को यूज करना चाहता है तो अपने बच्चों के लिए एक सैशन सुबह या शाम का रख सकता है। बाकी जिला प्रशासन क्या फैसला लेता है, यह अभी देखना है। अप्रैल में पूल खोला जाएगा जोकि नवम्बर तक चलता है।
पूर्व प्रिंसीपल थिंद के समय हुआ था विवाद
बता दें कि 2014-15 के दौरान कॉलेज पिं्रसीपल डा. सुखबीर सिंह ङ्क्षथद के समय पूल को लेकर विवाद शुरू हुआ था। जब पिं्रसीपल ने पूल के सामने खाली जगह पर जिम बनाने का काम शुरू करवाया तो इससे खेल विभाग अथॉरिटी को परेशानी हुई और उन्होंने इसकी शिकायत तब के डी.सी. को कर दी। मामले में तनाव बढ़ता गया और डी.सी. ने जिम का काम रुकवा दिया जोकि अभी भी रुका हुआ है। उसके बाद से इस मामले में कोई भी संतुष्टिपूर्ण फैसला नहीं हो सका।