एक नारी की पुकार मुझे नहीं चाहिए एक दिन का सम्मान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Mar, 2018 03:21 PM

women s day

पूरा देश आज महिला दिवस मना रहा है लेकिन एक अबला नारी चीख-चीख कर यही कह रही है मुझे एक नहीं हर दिन सम्मान चाहिए। दर्द की चीख आज भी सुनाई देती है जब गली,मोहल्ले या फिर किसी घर में मुझे पीटा जाता है।

जालंधर(सोनिया गोस्वामी):  पूरा देश आज महिला दिवस मना रहा है लेकिन एक अबला नारी चीख-चीख कर यही कह रही है मुझे एक नहीं हर दिन सम्मान चाहिए। दर्द की चीख आज भी सुनाई देती है जब गली,मोहल्ले या फिर किसी घर में मुझे पीटा जाता है। सबला की दुहाई देने वाले उस वक्त आगे नहीं आते जब मेरी इज्जत से खिलवाड़ हो रहा होता है। मुझे एक दिन का सम्मान दिया जा रहा है  लेकिन कल फिर मैं लुट जाऊंगी। ये बोल हैं उस महिला के जो हर दिन अपनो से ही बेइज्जत हो रही है हालांकि बहुत सी देश की महिलाओं ने परचम लहराया है लेकिन एक आम महिला अभी भी जिल्लत भरे जीवन से नहीं उठ पा रही। हर दिन सामने आ रहे रेप के मामले दिल को झिंझोड़ कर रख देते हैं। अपने ही घर में बाप,भाई बच्चियों की इज्जत से खेल रहे हैं वे अपने घर में सुरक्षित नहीं है। दहेज के नाम बहू-बेटियों को मारा जा रहा है। पति द्वारा नशा कर मारपीट की शिकार हो रही महिला मौत को गले लगाने तक मजबूर हो रही है। लेकिन कोई कानून उनकी सुरक्षा नहीं कर पा रहा तो मैं सबला कैसे हुई। 

 

 

लोगों के घर को साफ करती हैं लेकिन खुद हो जाती हैं बेदाग

नौकरानी बहुत छोटा सा शब्द है। हमारे बच्चे की आया। हमारे घर में काम करने वाली बाई। इन्हीं नामों से हम उसे सम्बोधित करते हैं। पूरे घर की जिम्मेदारी हम उसे देते हैं लेकिन आजकल नौकरानियों के शारीरिक शोषण के काफी मामले सामने आ रहे हैं। जब वे इसके लिए शिकायत करतीं हैं तो उलटा उन्हीं पर घर में पैसे चोरी करने जैसे आरोप लगा दिए जाते हैं। वो अपनी इज्जत दाव पर लगने के बावजूद चूप होकर रह जाती है। क्या सरकार के पास है कोई ऐसा कानून की उस अबला की लुटी इज्जत वापस आ सके। 


 

लोगों का घर बन जाए इसके लिए बच्चे को गोद में उठा करती हैं मजदूरी

कोई समय था जब महिला को पर्दे में रहना पड़ता था,उस समय जागरूकता की कमी जरुर थी लेकिन महिला को पूरा सम्मान दिया जाता था। रोड पर काम करते आप ने महिलाओं को देखा होगा जो लोगों के घर बनाने के लिए मजदूरी करती है और साथ में अपने बच्चे को बांधे रखती हैं। पूरा दिन धूप में काम करने के बाद उन्हें जो मजदूरी मिलती है उसी से अपने घर का गुजारा करती हैं। 

 

 

नौकरी करने वाली महिलाओं का हो रहा शोषण

किसी भी अदारे में काम करने वाली महिला दफ्तर के साथ-साथ अपने घर की जिम्मेदारियों को बाखूबी निभाती हैं लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनके काम में कमी की बजाए बढ़ौत्तरी होती जाती है। कारण दफ्तर वालों को अगर घर की मजबूरी बताती है तो वे समझने की बजाए उस पर और प्रेशर डालना शुरु कर देते हैं। घर वालों को लगता है कि ऑफिस में क्या करके आई है वहां बैठने का ही काम है तो शाम को आकर सारा काम देख लेगी। उम्र के साथ-साथ तो सरकार ने रिटायरमैंट का प्रावधान दिया हुआ है लेकिन घर की जिम्मेदारी से उसे कभी मुक्ति नहीं मिलती।  सरकार को चाहिए महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण की बजाए उसकी सुरक्षा के लिए कदम बढ़ाए। सख्त कानून बनाए जाए क्योंकि आरक्षण का फायदा उससे तब ही मिल पाएगा जब वे उसे लेने में सक्षम होगी।

 
 


 

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