Edited By Updated: 23 May, 2017 03:39 PM
गुरदासपुर लोकसभा सीट पर भले ही अभी उपचुनाव की घोषणा नहीं हुई हो, लेकिन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह के लिए यह बड़ी चुनौती बनना शुरू हो गई है।
चंडीगढ़ः गुरदासपुर लोकसभा सीट पर भले ही अभी उपचुनाव की घोषणा नहीं हुई हो, लेकिन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह के लिए यह बड़ी चुनौती बनना शुरू हो गई है। इस सीट के प्रत्याशी को लेकर पेचीदगियां भी बढ़ने लगी हैं क्योंकि इस सीट पर राज्यसभा सदस्य प्रताप सिंह बाजवा अपनी पत्नी को टिकट दिलवाना चाहते हैं, तो विधायक हिंदू सीट होने के कारण किसी हिंदू प्रत्याशी या पूर्व केंद्रीय मंत्री परनीत कौर को चुनाव मैदान में उतारने की बात कर रहे हैं।
गुरदासपुर उपचुनाव कैप्टन के मुख्यमंत्री बनने के बाद पहला चुनाव होगा। कैप्टन की परेशानी का मुख्य कारण पूर्व प्रदेश प्रधान व राज्यसभा सदस्य प्रताप सिंह बाजवा की ओर से अपनी पत्नी चरणजीत कौर बाजवा के लिए टिकट मांगना है। भले ही दोनों के संबंध कभी मधुर न रहे हों, लेकिन कैप्टन किसी भी सूरत में बाजवा को नाराज नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें डर है कि सरकार में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी होने पर बाजवा उनके विरुद्ध झंडा बुलंद कर सकते हैं और राज्यसभा में होने के कारण उन्हें इसका लाभ 'दिल्ली दरबार' में मिल सकता है। चूंकि बाजवा राहुल के करीबियों में से एक हैं।
दूसरा पहलू यह भी है कि जिस समय बाजवा के हाथ में प्रदेश की कमान थी और कैप्टन 'साइड लाइन' थे, उस समय बाजवा के धुर विरोधी 'माझा एक्सप्रेस' के नाम से पहचाने जाने वाले तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा और सुखजिंदर सिंह रंधावा ने बाजवा के खिलाफ झंडा बुलंद किया और कैप्टन को मजबूती प्रदान की। 'माझा एक्सप्रेस' बाजवा की पत्नी को टिकट देने के खिलाफ हैं।
वहीं, माझा के अधिकांश विधायक भी बाजवा के खिलाफ हैं। विधायक हिंदू सीट होने के कारण किसी हिंदू प्रत्याशी की मांग कर रहे हैं। बटाला से विधानसभा चुनाव हारे अश्विनी सेखड़ी भी इस सीट से अपना दावा कर रहे हैं, जबकि पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार भी हिंदू उम्मीदवार के दावेदार हैं, लेकिन विधायकों का कहना हैं कि भाजपा किसी सेलिब्रिटी को यहां से उतारने की तैयारी में है। संभव है स्वर्गीय विनोद खन्ना की पत्नी कविता को ही टिकट मिल जाए। ऐसे में कांग्रेस को भी किसी सेलिब्रिटी या फिर पूर्व केंद्रीय मंत्री परनीत कौर को मैदान में उतारना पड़े। वहीं, परनीत कौर पटियाला छोडऩा नहीं चाहती। क्योंकि दो साल के लिए वह किसी अन्य हलके में नहीं फंसना चाहतीं।