विधानसभा चुनाव: राजनीतिक उलझन,सभी दलों को अपनों से खतरा

Edited By Updated: 23 Nov, 2016 09:33 AM

punjab politics 2017

चुनावी माहौल में कांग्रेस, अकाली दल, भाजपा और ‘आप’ में भीतरघात का खतरा बना हुआ है।

जालंधर (राकेश बहल): चुनावी माहौल में कांग्रेस, अकाली दल, भाजपा और ‘आप’ में भीतरघात का खतरा बना हुआ है। आप और अकाली दल द्वारा प्रत्याशियों का ऐलान करने के बाद कई हलकों में बगावत के हालात बन गए हैं जबकि कांग्रेस और भाजपा को सबसे ज्यादा खतरा अपनों से ही है। भाजपा में तो इस समय गुटबाजी चरम पर है। 

‘आप’ को अपनों से खतरा
2014 के लोकसभा चुनाव में 24 प्रतिशत वोट लेकर 4 सीटें जीतने वाली ‘आप’ को सबसे ज्यादा खतरा अपनों से है। पंजाब में आप को स्थापित करने वाले कई नेता जिनमें 2 सांसद डॉ. धर्मवीर गांधी जिन्हें लोकसभा चुनाव में 3,65,671 वोट मिले थे तथा हरविंदर सिंह खालसा जिन्हें 3,67,293 वोट मिले थे अब पार्टी से दूर जा चुके हैं। इनका अपने हलकों में काफी प्रभाव माना जाता है। इसी तरह पार्टी के पूर्व संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर, जिन्होंने गुरदासपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ 1,73,376 वोट हासिल किए थे ने भी अपनी पार्टी बना ली है। छोटेपुर की पार्टी ने भी आप की तर्ज पर 117 सीटों पर चुनाव लडऩे का फैसला किया है।

‘आप’ को कई नेता कह चुके हैं गुडबॉय
अमृतसर से चुनाव लडऩे वाले डॉ. दलजीत सिंह, खडूर साहिब से चुनाव लडऩे वाले भाई बलदीप सिंह, जालंधर से चुनाव लडऩे वाली ज्योति मान, भटिंडा से चुनाव लडऩे वाले जस्सी जसराज भी अब आप के साथ नहीं हैं। आप द्वारा सीटों की घोषणा करने के बाद आप में शामिल हुए कई लोग जिनमें पूर्व ओङ्क्षलपियन सुरेन्द्र सिंह सोढी भी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। 

टिकट न मिलने से दुखी हैं पुराने नेता
कई सीटों पर टिकट नहीं मिलने से दुखी पुराने नेता कांग्रेस या सुच्चा सिंह छोटेपुर की पार्टी में जाने की तैयारी में हैं। बैंस भाइयों के आप के साथ आने के बाद लुधियाना में बगावत के हालात हैं। आने वाले दिनों में यह लड़ाई बढऩे की संभावना है।

कांग्रेस में अंतर कलह
कांग्रेस में इस समय तूफान से पहले की शांति है। दूसरे दलों के नेताओं को शामिल करने के मुद्दे को लेकर प्रदेश अध्यक्ष कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के खिलाफ सांसद प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दूलो खुलकर बोल रहे हैं। 


कांग्रेस में टिकट के लिए लॉबिंग
कांग्रेस में दूसरे दलों के नेताओं को शामिल करने के मामले को लेकर कैप्टन अमरेन्द्र सिंह, प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दूलो में ठन गई है। जहां कैप्टन अपने समर्थकों को टिकटें दिलाने के प्रयास कर रहे हैं, वही दूसरे नेता हाईकमान पर अपने समर्थकों को टिकटें देने के लिए लॉङ्क्षबग कर रहे हैं। 

पार्टी में बागियों की एंट्री से हो सकती है बगावत
अकाली दल के जो नेता कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं अगर कांग्रेस उन्हें टिकट देती है जैसे फिल्लौर जो बीते दिनों कांग्रेस में शामिल हुए हैं करतापुर से टिकट मांग रहे हैं। ऐसे में यहां से टिकट के दावेदार माने जा रहे सांसद संतोख चौधरी का परिवार नाराज हो सकता है। इसी तरह से परगट सिंह कांग्रेस में शामिल होते हैं तो कांग्रेस के जालंधर कैंट सीट से दावेदार जगबीर सिंह बराड़ की नाराजगी कांग्रेस को उठानी पड़ सकती है। 

कई सीटों पर दर्जनों दावेदार
राज्य में सत्ता वापसी की संभावनाओं के 
चलते इस बार कांग्रेस में कई सीटों पर दर्जन भर लोगों ने आवेदन किया हुआ है। कांग्रेस हाईकमान को इस बात का डर है कि 2012 के चुनाव की 
तरह इस बार भी कांग्रेस को भारी बगावत का 
सामना करना पड़ सकता है। 


अकाली दल के अब तक गिरे हैं 5 विकेट

अकाली दल से बाघापुराना हलके के विधायक महेशइंद्र सिंह निहाल सिंह वाला ने भी अकाली दल छोड़ दी है। अकाली दल के अब तक 5 विकेट गिर चुके हैं। इससे पहले इंद्रबीर बुलारिया, परगट सिंह, सरवण सिंह फिल्लौर, अविनाश चंद्र भी विधायक पद से इस्तीफा दे चुके हैं। एस.जी.पी.सी. के पूर्व प्रधान स्व. गुरचरण सिंह टोहरा का परिवार भी अकाली दल छोड़ आप में शामिल हो चुका है। आप ने टोहरा की बेटी कुलदीप कौर टोहरा को प्रत्याशी भी घोषित कर दिया है। इसी तरह कांग्रेस छोड़ अकाली दल में आने वाले कांग्रेस के पूर्व एम.पी. स्व. गालिब का परिवार भी कांग्रेस में वापस शामिल चुका है।  

कई नेता हैं कांग्रेस के संपर्क में
कुछ अकाली नेता कांग्रेस के संपर्क में हैं। चुनाव आचार संहिता की घोषणा के बाद अकाली दल के कुछ और नेता पार्टी छोड़़ सकते हैं। सरवण सिंह फिल्लौर ने यहां तक कहा है कि मैं दोआबा में कोई अकाली रहने नहीं दूंगा। मतलब साफ है वह अब दोआबा में अकाली दल मे सेंध लगाने की कोशिश करेंगे। अकाली दल ने अभी 25 सीटों का ऐलान करना है। सूत्रों का कहना है कि जिनकी सीटें कटेंगी वे या तो कांग्रेस में जाएंगे या आप में। 

भाजपा में भी हालात ठीक नहीं 
भाजपा में इस समय सभी बड़े नेता एक-दूसरे के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। इन नेताओं का ध्यान चुनाव जीतने की रणनीति में कम अपने विरोधियों की 
टिकटें कटवाने में ज्यादा है। भाजपा में दलित नेता एकजुट होकर चुनाव लडऩे की जगह एक-दूसरे के खिलाफ लॉङ्क्षबग करने में जुटे हैं। यही हाल ब्राह्मण, बनिया, जाट और खत्री नेताओं का भी है। सूत्रों का कहना है कि बीते दिनों जालंधर में रैली में गुटबाजी चरम सीमा पर रही। राज्य भाजपा पर काबिज गुट ने पूरा प्रयास किया कि दूसरे गुट को हावी न होने दिया जाए। रैली को लेकर भाजपा हाईकमान की जो अपेक्षाएं थीं वे पूरी नहीं हो। 

प्रत्याशियों के ऐलान के बाद हो सकती है बगावत
हाईकमान गुटबाजी से नाराज है। नवजोत सिंह सिद्धू के भाजपा को छोडऩे का नुक्सान हालांकि भाजपा को ज्यादा नहीं हुआ है लेकिन भाजपा कैडर इससे ज्यादा खुश नहीं है। भाजपा में भी कांग्रेस की तरह ही तूफान से पहले की शांति है। जैसे ही प्रत्याशियों का ऐलान होगा भाजपा में बड़े स्तर पर बगावत के आसार बन सकते हैं। 

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