Edited By Updated: 29 Dec, 2016 08:50 AM
लोकसभा चुनाव-2014 में पंजाब से 4 और दिल्ली विधानसभा चुनाव में रिकार्ड 67 सीटें जीतने के बाद देश के राजनीतिक मानचित्र पर आई आम आदमी पार्टी के ग्राफ में पिछले कुछ माह में गिरावट दर्ज हुई है
चंडीगढ़ (एच.सी. शर्मा): लोकसभा चुनाव-2014 में पंजाब से 4 और दिल्ली विधानसभा चुनाव में रिकार्ड 67 सीटें जीतने के बाद देश के राजनीतिक मानचित्र पर आई आम आदमी पार्टी के ग्राफ में पिछले कुछ माह में गिरावट दर्ज हुई है, लेकिन पंजाब की सत्ता की दौड़ से पार्टी बाहर नहीं मानी जा सकती। क्योंकि चुनाव प्रचार को लेकर पार्टी की रणनीति और परंपरागत राजनीतिक दलों से बिल्कुल अलग तरीका होने के साथ-साथ जमीनी स्तर पर अधिक प्रभावी प्रतीत हो रहा है। इसके अलावा पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के दिल्ली से संचालित ‘इलैक्शन वार रूम’ व आई.टी. सैल की सक्रियता भी अहम भूमिका निभा रही है।
पॉजिनिैगेटिव प्वाइंट्स
नोटबंदी व सॢजकल स्ट्राइक पर केजरीवाल का स्टैंड,एस.वाई.एल. पर चुप्पी,स्थानीय नेताओं की प्रभावहीनता, पंजाबी बनाम बाहरी,टिकट आबंटन विवाद, मुख्यमंत्री चेहरे की कमी,वालंटियरों में उम्मीदवारी की उम्मीद।टव प्वाइंट्स
डैडिकेटिड एंड हाईटैक चुनाव प्रचार,नया प्रयोग,केजरीवाल द्वारा स्वयं कमान संभालना,दिल्ली वाले पर्दे के पीछे, आई.टी. विंग का राष्ट्रीय स्तर पर गठन व इसका प्रयोग।
चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद लगेगा जोर
राज्य में पार्टी की लोकप्रियता में आई गिरावट को फिर से पटरी पर लाने के लिए पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने स्वयं चुनाव प्रचार की कमान संभाल ली है। हालांकि इस कड़ी में केजरीवाल पिछले महीनों में राज्य के कई दौरे कर चुके हैं,लेकिन चुनाव आचार संहिता लागू होते ही केजरीवाल मतदान तक पंजाब में डेरा लगाने वाले हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार केजरीवाल की रिहायश के लिए फगवाड़ा के नजदीक गोराया में बंगले का प्रबंध भी किया जा चुका है। इसके अलावा उस समय अन्य राज्यों से पार्टी के समॢपत वालंटियर की राज्य में चुनाव प्रचार व प्रबंधन के लिए न सिर्फ पहचान की जा चुकी है, बल्कि उनकी चुनाव क्षेत्र के अनुसार ड्यूटियां भी लगाई जा चुकी हैं।
इसलिए गिरी छवि
नि:संदेह पार्टी व इसके नेताओं की कारगुजारी से इसकी लोकप्रियता में पिछले कुछ महीनों से गिरावट दर्ज की गई है। दिल्ली विधानसभा के पार्टी विधायकों की इस कारगुजारी व मुख्यमंत्री केजरीवाल द्वारा लगभग हर मामले में उप-राज्यपाल नसीब जंग से विवाद व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हर समय कोसते रहने की केजरीवाल की आदत से भी पार्टी की लोकप्रियता को धक्का लगा है। पंजाब में यह गिरावट पार्टी सांसदों धर्मवीर गांधी व हरिंद्र खालसा के निलंबन व वर्षों तक अंतिम फैसला न लेने से ही शुरू हो गई थी जिसे प्रदेश संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर को पद से हटाने के बाद चरम तक पहुंचा दिया। नोटबंदी पर अभी तक जनता का विश्वसनीयता का पात्र बने हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले व सॢजकल स्ट्राइक पर केजरीवाल के स्टैंड को भी जनता ने गंभीरता से नहीं लिया। इसके अलावा पंजाब में एस.वाई.एल. मुद्दे पर केजरीवाल की चुप्पी ने न सिर्फ राज्य में विरोधी दलों को केजरीवाल पर हमला करने को मौका दिया, बल्कि जनता में भी गलत संदेश गया।
ये है पार्टी की ताकत
भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन से अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी से लोगों विशेष कर पंजाब के मतदाताओं ने इस कद्र विश्वास जताया था कि लोकसभा चुनाव में इस पार्टी को जो 4 सीटें मिली थीं, वे सभी पंजाब से थीं। परंपरागत दलों से निराश मतदाताओं के लिए यह एक नया विकल्प नजर आया। इस पार्टी को मिले जन-समर्थन का यह मुख्य आधार था। इसके अलावा पार्टी का हाईटैक चुनाव प्रचार, दिल्ली स्थित इलैक्शन वार रूम व आई.टी. सैल की सक्रियता, समय रहते उम्मीदवारों की घोषणा, चुनाव प्रचार को लेकर दिल्ली से भेजे गए पर्यवेक्षकों का उम्मीदवार के दावों का ऑडिट व उम्मीदवार से पहले पार्टी के लिए समॢपत वालंटियरों का घर-घर जाकर फीडबैक लेना व चुनाव प्रचार को लेकर उम्मीदवार के लिए लक्ष्य निर्धारण पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूती प्रदान कर रहे हैं।