Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Aug, 2017 08:44 AM
पंजाब की पहचान माना जाने वाला वन वृक्ष खत्म होने की कगार पर है।
चंडीगढ़/भटिंडा(अश्वनी कुमार): पंजाब की पहचान माना जाने वाला वन वृक्ष खत्म होने की कगार पर है। यह वह वृक्ष है जो पंजाब के इतिहास में लेखक और कवियों द्वारा अपनी रचनाओं में इस्तेमाल किया जाता रहा है। यहां तक कि यह वृक्ष पंजाब के सरकारी तंत्र में प्रतीक चिन्ह (लोगो) के तौर पर भी इस्तेमाल होता रहा है लेकिन अब इसका डी.एन.ए. इस कद्र बिगड़ रहा है कि भविष्य में लुप्त होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। यह चौंकाने वाले तथ्य भटिंडा की सैंट्रल यूनिवॢसटी ऑफ पंजाब (सी.यू.) के वैज्ञानिकों की ओर से वन वृक्ष पर किए अध्ययन में सामने आए हैं। विश्वस्तर पर पहला मौका है, जब वन वृक्ष के डी.एन.ए. संबंधी स्टडी की गई है।
सी.यू. की स्टडी में सामने आया कि हरित क्रांति के कारण राज्य में बड़े स्तर पर कटाई के बाद बचे वन वृक्ष छोटे-छोटे टापू यानी मानवजनित द्वीप (एंथ्रोपॉजैनिक आईलैंड) में विभाजित हो गए। इसके चलते इनके बीच पोलीनेशन (परागण) नहीं हो पा रहा। नतीजा, भटिंडा में पाए जाने वाले वन वृक्षों का संगरूर के वृक्षों से संपर्क नहीं रहा जिससे डी.एन.ए. में बदलाव हो रहा है। इसी बदलाव का ही नतीजा है कि मौजूदा समय में राज्य के कई मानवजनित द्वीपों पर वन वृक्षों में फल (पीलू) तक पैदा नहीं हो रहे हैं। यही कारण हे कि बीज नहीं होने के कारण नई पौध तैयार नहीं हो पा रही हैं। पंजाबी लोक संस्कृति में पीलू के स्वाद को बड़े ही अच्छे तरीके से व्यक्त किया गया है। मसलन, वे तू राहियां जांदिया, भुखण-भाणियां मांदिया, आ झट कू सां ले, मेरियां पीलू खा ले, मेरी छांवे बे ले।
सैंट्रल यूनिवर्सिटी भटिंडा की पहचान रहा है वन वृक्ष
वन वृक्ष भटिंडा सैंट्रल यूनिवर्सिटी की पहचान रहा है। केंद्र सरकार ने जब भटिंडा में सैंट्रल यूनिवर्सिटी स्थापित करने को मंजूरी दी थी उस समय वन वृक्ष को उसके प्रतीक चिन्ह (लोगो) में जगह दी गई। हैरत की बात है कि सी.यू. की पहचान होने के बावजूद राज्य सरकार ने वृक्षों के संरक्षण की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। बाद में सी.यू. ने भी लोगो में बदलाव करते हुए वृक्ष रूपी पहचान से किनारा कर लिया। हालांकि शोध के क्षेत्र में अब सी.यू. ने वृक्ष को तवज्जो दी है। संभव है कि अब जो नतीजे सामने आ रहे हैं, उससे सरकार की नींद टूटे और वृक्षों के संरक्षण की पहल हो सके।
गर्म और खुश्क इलाकों में ही पाए जाते हैं यह वृक्ष
यह वृक्ष गर्म व खुश्क इलाकों में ही पाए जाते हैं। भारत में इनका दायरा पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक फैला हुआ था लेकिन अब काफी कम संख्या रह गई है। इसलिए संकट ग्रस्त वृक्ष की श्रेणी में रखा गया है। वन वृक्ष का आयुर्वैदिक दवाओं में भी इस्तेमाल होता है। मार्च-अप्रैल माह में वन वृक्ष फूलों से लद जाता है और जून तक यह पक जाते हैं। पंजाब में ज्यादा दायरा मालवा क्षेत्र में फैला हुआ था। यह सेम, खारे और रेतीली जमीन पर आसानी से पैदा हो जाते हैं व मिट्टी की कटान रोकने में सहायक होते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य सरकार सेमग्रस्त इलाकों में अक्सर सफेदे के पेड़ लगाने को तवज्जो देती है। ऐसे में अगर इन्हें लगाने पर बल दिया जाता तो बेहतर होता। पंजाब में धार्मिक आस्था के लिहाज से भी महत्व रखते हैं। कहा जाता है कि गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब (मुक्तसर) में लगे वन वृक्ष पर श्री गुरु गोङ्क्षबद सिंह ने अपना घोड़ा बांधा था। पंजाब के कई अन्य गुरुद्वारा साहिब में भी यह वृक्ष लहलहाते थे।
जैनेटिक बदलाव से वन वृक्ष से गायब हो रहे फल-फूल
हमारे स्तर पर विश्व में पहली बार वन वृक्ष के डी.एन.ए. बारकोड डाटा को समझने की कोशिश की गई है। अध्ययन में सामने आया है कि पंजाब में हरित क्रांति ने इन वृक्षों पर विपरीत प्रभाव डाले हैं। जो बचे हैं, वह मानवजनित टापुओं तक सीमित होकर रह गए हैं। इसकी वजह से जैनेटिक बदलाव आ रहा है। बेशक बदलाव काफी धीरे हो रहे हैं लेकिन जिस तरह से वृक्ष पर फल और फूल गायब हो रहे हैं, वह गंभीर ङ्क्षचता का विषय है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अगर वन वृक्षों के संरक्षण की दिशा में ठोस पहल न हुई तो भविष्य में यह इस क्षेत्र से गायब हो सकते हैं।
-डॉ. फैलिक्स बास्ट, सैंटर फॉर प्लांट साइंसिस, सैंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब, भटिंडा