Edited By Updated: 10 Apr, 2017 08:58 AM
शिरोमणि अकाली दल के महासचिव और आनंदपुर साहिब से लोकसभा सदस्य प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने आज कहा है कि नवम्बर 1984 के सिख कत्लेआम को कनाडा के ओंटारियो सूबे की असैंबली द्वारा ‘सिख नस्लकुशी’ करार देने के प्रस्ताव की निंदा करके भारत सरकार ने एक बार...
चंडीगढ़ (पराशर): शिरोमणि अकाली दल के महासचिव और आनंदपुर साहिब से लोकसभा सदस्य प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने आज कहा है कि नवम्बर 1984 के सिख कत्लेआम को कनाडा के ओंटारियो सूबे की असैंबली द्वारा ‘सिख नस्लकुशी’ करार देने के प्रस्ताव की निंदा करके भारत सरकार ने एक बार फिर सिखों के जख्मों को कुरेदा है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को इस प्रस्ताव की ङ्क्षनदा करने और इसको वापस लेने की बेतुकी बातों के स्थान पर खुद पाॢलयामैंट में इस नस्लकुशी की ङ्क्षनदा का प्रस्ताव पास करके सिख भाईचारे की घायल भावनाओं पर मरहम लगानी चाहिए।
प्रो. चंदूमाजरा ने कहा कि गिनती में बहुत ही कम सिख भाईचारे के तकरीबन 3 हजार बेकसूर बुजुर्गों, बच्चों और औरतों को एक दिन में तरह-तरह की यातनाएं देकर दिन-दिहाड़े मौत के घाट उतार देना सिखों की नस्लकुशी करना ही था। उन्होंने कहा कि इस दिल दहला देने वाली घटना के दोषियों को अभी तक भी सजा नहीं मिली है और वे खुलेआम घूम रहे हैं। इस सारे घटनाक्रम के कारण ही सिख भाईचारे के देश के न्याय और कानून प्रबंधन में विश्वास को पहले ही ठेस लगी हुई है। केंद्र सरकार के इस स्टैंड से पीड़ित लोगों को और भी ठेस पहुंची है। अकाली नेता ने कहा कि भाजपा सहित उस समय देश की सभी प्रमुख विरोधी पाॢटयों के साथ-साथ अटल बिहारी वाजपेयी और चंद्रशेखर जैसे पूर्व प्रधानमंत्रियों ने भी इस घटना को नस्लकुशी ही कहा था।
उन्होंने केंद्र सरकार को याद दिलवाया कि देश के मौजूदा गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी 26 दिसम्बर, 2014 को नई दिल्ली में एक बस्ती में दिल्ली के सिख कत्लेआम की पीड़ित विधवाओं को मुआवजा राशि के चैक बांटते हुए इस कत्लेआम को नस्लकुशी करार दे चुके हैं। चंदूमाजरा ने कहा कि वह यह मामला कल लोकसभा में उठाएंगे और मांग करेंगे कि पाॢलयामैंट के दोनों सदनों में ऐसे प्रस्ताव पारित किए जाएं।