Edited By Punjab Kesari,Updated: 06 Feb, 2018 11:35 AM
महाराजा फरीदकोट हरिंद्र सिंह बराड़ (दिवंगत) की 20 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति विवाद मामले में चंडीगढ़ जिला अदालत ने अहम फैसला देते हुए इस संपत्ति का हकदार दिवंगत महाराजा की बेटियों महारानी अमृत कौर और महारानी दीपइंद्र कौर को बताया है।
चंडीगढ़ (संदीप): महाराजा फरीदकोट हरिंद्र सिंह बराड़ (दिवंगत) की 20 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति विवाद मामले में चंडीगढ़ जिला अदालत ने अहम फैसला देते हुए इस संपत्ति का हकदार दिवंगत महाराजा की बेटियों महारानी अमृत कौर और महारानी दीपइंद्र कौर को बताया है।
अदालत ने 25 जुलाई, 2013 के फैसले को उचित करार देते हुए उक्त फैसले को चुनौती देने वाली महरावल खेवाजी ट्रस्ट सहित अन्य पाॢटयों की याचिकाओं को रद्द कर दिया है। ऐसे में हजारों करोड़ रुपए की संपत्ति के आधे-आधे हिस्से की हकदार दोनों महारानियां होंगी।
वर्ष 2013 का फैसला भी दोनों महारानियों के हक में आया था। सी.जे.एम. कोर्ट के आदेशों को ट्रस्ट ने एडिशनल सैशन कोर्ट में चुनौती दी थी। ट्रस्ट के अलावा महाराजा हरिंद्र सिंह बराड़ के छोटे भाई के बेटे भरत इंद्र सिंह भी संपत्ति विवाद में पार्टी बन
गए थे। इससे पहले सी.जे.एम. कोर्ट ने ट्रस्ट द्वारा पेश की गई वसीयत को अमान्य माना था जिसे एडिशनल सैशन कोर्ट ने भी माना है। उस वसीयत में महाराजा हरिंद्र सिंह बराड़ द्वारा संपत्ति को कथित रूप से ट्रस्ट के नाम किया गया था।
जानकारी के मुताबिक महाराजा फरीदकोट की चंडीगढ़, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश में करोड़ों की संपत्ति है जिसमें मनीमाजरा का किला, एक होटल साइट मुख्य रूप से शामिल हैं।
गौरतलब है कि 25 जुलाई, 2013 को सी.जे.एम. ने महाराजा फरीदकोट की 20 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति का मालिकाना हक उनकी बड़ी बेटी राजकुमारी अमृत कौर और दूसरी बेटी महारानी दीपइंद्र कौर को दिया था। निचली अदालत ने महाराजा की 1982 की वसीयत को अवैध ठहराया था।
इस वसीयत में कथित रूप से महाराजा ने महरावल खेवाजी ट्रस्ट बनाकर संपत्ति इसके नाम कर दी थी। ट्रस्ट ने इस फैसले को चुनौती दी थी। वहीं ट्रस्ट ने कहा था कि अदालत ने 1952 में बनी वसीयत पर गौर नहीं किया जिसमें महाराजा ने बड़ी बेटी अमृत कौर को संपत्ति से बेदखल कर दिया था। इसके बाद महाराजा के छोटे भाई के बेटे भरत इंद्र सिंह ने भी निचली अदालत के फैसले के खिलाफ एडिशनल सैशन कोर्ट में अपील दायर की थी जिसमें कहा गया था कि पुरुष सदस्य होने के नाते वह संपत्ति के हकदार हैं।