Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Nov, 2017 09:39 AM
रेत के बने महल की तरह एक के ऊपर एक दफन हुई 6 बड़े लैंटरों वाली फैक्टरी की इमारत से हमारी कोशिशें लगातार जारी हैं कि अधिक से अधिक इंसानी जिंदगियों को महफूज रूप से दबे हुए मलबे से बाहर निकाला जा सके।जिसके लिए हमारी टीमें गत सोमवार से ही फैक्टरी में...
लुधियाना(खुराना): रेत के बने महल की तरह एक के ऊपर एक दफन हुई 6 बड़े लैंटरों वाली फैक्टरी की इमारत से हमारी कोशिशें लगातार जारी हैं कि अधिक से अधिक इंसानी जिंदगियों को महफूज रूप से दबे हुए मलबे से बाहर निकाला जा सके।जिसके लिए हमारी टीमें गत सोमवार से ही फैक्टरी में अग्निकांड से एक के बाद एक हुए कई धमाकों के बाद जमींदोज हुई बहुमंजिला इमारत के मलबे को हटाने की कड़ी मेहनत कर रही हैं लेकिन इसमें सबसे बड़ी समस्या इमारत का नक्शा मौजूद न होने से है,
क्योंकि अगर हादसाग्रस्त इमारत का नक्शा हमारे हाथों में होता तो हमें इस बात की जानकारी आसानी से मिल सकती थी कि बिल्डिंग के अंदर की पिक्चर क्या है और इन परिस्थितियों से कैसे निपटा जा सकता है। उपरोक्त विचार एन.डी.आर.एफ. (नैशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स) के कमांडैंट रवि कुमार व सैकेंड कमांडैंट शशि चंद्र ने ‘पंजाब केसरी’ संवाददाता से विशेष बातचीत के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि बावजूद इसके एन.डी.आर.एफ. की 3 विभिन्न टीमों के अधिकारी व कर्मचारी बाखूबी पिछले करीब 60 घंटों से हादसाग्रस्त फैक्टरी से मलबा हटाने के लिए दिन-रात एक करने में लगे हुए हैं, जिसमें 13 इंसानी जिंदगियां मौत के आगोश में समा जाने के बाद अभी भी कई कीमती जानें दबे होने की आशंका बनी हुई है और हमारी टीम के जवान उन्हें सकुशल उनके परिवारों से मिलवाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि एन.डी.आर.एफ. के जवान जब स्टॉप पर पहुंचते हैं तो वे अपनी काबलियत के दम पर कई अन्य रास्ते निकाल लेते हैं लेकिन अगर बिल्डिंग का नक्शा होता तो इस सच्चाई का आसानी से पता चल पाता कि इमारत का कौन-सा हिस्सा ब्लॉक है और कौन-सा ओपन है लेकिन फिर भी हमारी टीमें प्रत्येक प्रकार की परिस्थितियों से निपटने के लिए तैयार हैं।
कैमिकल व आग की लपटें रैस्क्यू ऑप्रेशन में बनी बाधा
बिल्डिंग में मौजूद कैमिकल पदार्थ व थम-थमकर उठ रही आग की लपटें राहत कार्यों में जरूर बाधा बन रही हैं, जिसे देखते हुए आशंका व्यक्त की जा रही है कि शायद मलबे के नीचे कैमिकल ड्रम या कैन होने से एक बार फिर से कुछ जोरदार धमाके हो सकते हैं, के जवाब में अधिकारियों ने कहा कि एन.डी.आर.एफ. के जवान हर तकलीफदायक पिक्चर का सामना करने के लिए टे्रंड हैं लेकिन इस बात का ख्याल मौके पर जुटी लोगों की भीड़ को खासतौर पर करना चाहिए, क्योंकि हम नहीं चाहते कि हादसे में कोई और इंसानी जिंदगी खतरे का सामना करे।
करीब आधा दर्जन स्थानों पर चलाया जा चुका है बचाव ऑप्रेशन
इस दौरान टीम के कुछ अन्य अधिकारियों ने बताया कि उन्होंने गत समय के दौरान बिहार, चेन्नई, उत्तराखंड के केदारनाथ आदि में आए फ्लड के साथ ही नेपाल में आए भूकम्प के दौरान उक्त घटना स्थलों पर भी रैस्क्यू ऑप्रेशन की कमांड संभाली है, जहां हादसे में फंसे कई लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया है। उन्होंने बताया कि इसके लिए टीम के जवानों को विशेष ट्रेनिंग मुहैया करवाई जाती है, जिसके चलते वे प्रत्येक परिस्थिति का सामना करने में सक्षम होते हैं।
बिना थके-रुके कर रहे काम
नैशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स के जवानों ने बताया कि वे हादसे के 60 घंटे बीत जाने के बाद भी लगातार बिना थके व रुके काम कर रहे हैं ताकि हादसे के कारण मलबे में फंसे बाकी लोगों को जिंदा बाहर निकाला जा सके। उन्होंने बताया कि उनकी एक टीम में 45 जवान शामिल रहते हैं अर्थात & टीमों के 1&5 जवान बचाव कार्यों में लगे हुए हैं, जोकि पूरे जुनून से भरे हुए हैं और 24 घंटे की कड़ी मेहनत के दौरान मुश्किल 2 घंटे ही आराम कर पाते हैं।