Edited By Updated: 26 Feb, 2017 01:50 AM
सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डी.एस.जी.एम.सी.) के 26 फरवरी को होने जा रहे चुनावों के रिजल्ट भले ही ....
नई दिल्ली/चंडीगढ़: सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डी.एस.जी.एम.सी.) के 26 फरवरी को होने जा रहे चुनावों के रिजल्ट भले ही किसी भी दल के फायदे में हों, लेकिन इसका सीधा असर अप्रैल में होने जा रहे दिल्ली नगर निगम के चुनावों पर पड़ेगा। दिल्ली के 3 नगर निगमों की 272 सीटों पर चुनाव अप्रैल में संभावित हैं। तीनों निगमों पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सत्ता है। डी.एस.जी.एम.सी. के चुनाव रविवार को हैं। 46 वार्डों पर हो रहे चुनाव का रिजल्ट 1 मार्च को निकलेगा। वर्तमान में कमेटी पर अकाली दल की सत्ता है। अकाली दल की पंजाब में भाजपा की गठबंधन के साथ सरकार चल रही है।
दिल्ली में भी अकाली-भाजपा का गठबंधन है। डी.एस.जी.एम.सी. चुनाव में भाजपा सीधे तौर पर तो शामिल नहीं है, लेकिन उसके 2 पदाधिकारी चुनाव जरूर लड़ रहे हैं। हालांकि, दोनों प्रत्याशी धार्मिक तौर पर अकाली दल से जुड़े हैं। इस चुनाव में अगर शिअद (ब) की पराजय होती है, तो एक महीने बाद ही होने जा रहे नगर निगम चुनाव में गणित बिगड़ सकता है।
वर्तमान में भी दिल्ली नगर निगम में भाजपा और अकाली दल के चुने हुए सदस्य (पार्षद) हैं। अगले चुनाव में भी इसी तरह के प्रत्याशी मैदान में उतारे जाने की संभावना है इसलिए, अकाली दल-बादल के लिए गुरुद्वारा चुनाव जीतना बहुत जरूरी बन गया है। अकाली दल अगर चुनाव में जीत दर्ज करता है तो उसकी बड़ी जीत मानी जाएगी। साथ ही यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि उसने 4 वर्ष कमेटी में जो काम किया है, दिल्ली के सिखों ने उसे स्वीकार किया है। इसके अलावा निगम चुनाव में बाकी दलों पर दबाव भी बनाया जा सकता है। हालांकि, सिरसा द्वारा डेरा सच्चा सौदा का समर्थन लेना एक ‘जिन्न’ की तरह अकाली दल के पीछे पड़ा हुआ है।
शिअद के लिए जरूरी है सत्ता में वापसी
डी.एस.जी.एम.सी. पर काबिज शिरोमणि अकाली दल-बादल को चुनाव जीतना बहुत जरूरी है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मंजीत सिंह जी.के. एवं कमेटी महासचिव मनजिंद्र सिंह सिरसा का भविष्य भी यह चुनाव तय करेगा। पंजाब में चूंकि, अकाली दल की सरकार की वापसी कम मानी जा रही है, इसलिए अगर अकाली दल यहां से भी बाहर हो जाता है तो पार्टी का रास्ता फिलहाल कुछ सालों के लिए रुक जाएगा। साथ ही जी.के. और सिरसा का सियासी सफर भी कमजोर हो सकता है। पंजाब के बदले सियासी हालात को देखते हुए ही अकाली दल की दिल्ली इकाई ने कमेटी चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है।
‘आप’ ने कदम वापस खींचे
डी.एस.जी.एम.सी. में पहली बार उतरे पंथक सेवा दल ने कुल 38 प्रत्याशी उतारे हैं। यह धार्मिक दल दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (आप) से संबंधित धार्मिक दल की कमान पार्टी के कालका जी से विधायक अवतार सिंह कालका के हाथ है जो पंथक सेवा दल के कन्वीनर भी। इस दल ने चुनाव में ज्यादातर नए कैंडीडेट उतारे हैं। लिहाजा, उनका राजनीतिक अनुभव भी कम है। जिस कारण सीटें बहुत ज्यादा आने की संभावना नहीं है। चूंकि, इस दल के पीछे ‘आप’ खड़ी है, इसलिए अगर हार होती है तो इसका असर सीधे निगम चुनाव और पार्टी पर पड़ेगा। इसी को देखते हुए चुनाव के ऐन वक्त पर ‘आप’ ने एक विज्ञप्ति जारी कर अपने कदम वापस खींच लिए।
सत्ता नहीं मिली तो कमजोर हो सकता है सरना दल
4 साल से विपक्ष में बैठे शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली) के प्रमुख परमजीत सिंह सरना के लिए यह चुनाव बहुत अहम है। यह चुनाव इनकी पार्टी का भविष्य भी तय करेगा। यही कारण है कि सरना दल ने पूरी ताकत झोंक दी है। सरना दल वैसे तो किसी भी राजनीतिक दल से सीधे तौर पर नहीं जुड़ा है, लेकिन कांग्रेस पार्टी के नेताओं से दल के अध्यक्ष से करीबी संबंध रहे हैं। इसी संबंधों के बल पर यह कहा जाता है कि उनका समर्थन कांग्रेस पार्टी कर रही है। लेकिन, ऐसा है नहीं। सरना बंधुओं का दिल्ली और सिख राजनीति में अपना खुद का वर्चस्व है।