Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Nov, 2017 11:10 AM
भाजपा के गढ़ गुजरात में दो दशक बाद कांग्रेस इस बार फिर नए फार्मूले के साथ मैदान में उतर रही है। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इस बार माधव सिंह सोलंकी के 1980 के दशक में तैयार खाम फार्मूले की तर्ज पर इस बार क्षत्रिय, हरिजन (दलित) आदिवासी और पाटीदार...
नर्इ दिल्लीः भाजपा के गढ़ गुजरात में दो दशक बाद कांग्रेस इस बार फिर नए फार्मूले के साथ मैदान में उतर रही है। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इस बार माधव सिंह सोलंकी के 1980 के दशक में तैयार खाम फार्मूले की तर्ज पर इस बार क्षत्रिय, हरिजन (दलित) आदिवासी और पाटीदार (खाप) के दम पर मोदी-शाह के किले को भेदने की योजना बनाई है। यहां बता दें कि गुजरात में कांग्रेस दो दशकों से भी अधिक समय से सत्ता से बाहर है। इस बार कांगे्रस पिछले चुनावों से अलग रणनीति पर काम कर रही है। ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर को पिछले महीने पार्टीे में शामिल करने के बाद अब तीन अन्य समुदायों दलित, आदिवासियों और पटेलों को अपनी तरफ करने की कोशिशें कर रही है। इनमें से पटेल अब तक राज्य में भाजपा की कामयाबी की रीढ़ रहे हैं।
एक बदलाव ये भी है कि इस बार कांगे्रस एनसीपी से गठबंधन नहीं कर रही है। हालांकि दूसरे चरण में इसकी संभावना बन सकती है। कांगे्रस के नेताओं का मानना है कि ये नए जातीय समीकरण ‘खाप’ पूर्व सीएम माधव सिंह सोलंकी के ‘खाम’ से ही प्रेरित हैं। इसके तहत क्षत्रिय, दलित, आदिवासी और पाटीदारों पर ध्यान केंद्रित किया जाना है। गुजरात के चुनाव में पहली बार जातियों की लामबंदी दिख रही है। इसमें कई समदायों के नेता मजबूत सत्ताधारी दल को चुनौती दे रहे हैं। क्षत्रिय वोटों के अलावा कांग्रेस ओबीसी वोटों पर ज्यादा फोकस कर रही है। उनके साथ आए अल्पेश जिस समुदाय से आते हैं उसका राज्य के ओबीसी वोटों में बड़ा हिस्सा है। इस तरह उत्तरी गुजरात के क्षत्रिय-ओबीसी बेल्ट में कांगे्रस फायदे की स्थिति में दिख रही है। अनुसूचित जाति के वोटों के लिए पार्टी दलितों के लिए आवाज उठाने वाले जिग्नेश मेवाणी पर निर्भर है, जो लगातार दलितों के बीच भाजपा को वोट न देने के लिए अभियान चला रहे हैं। दो दशकों में दलित भाजपा के हिंदुत्व के प्रभाव में कांग्रेस से दूर हो गए थे। मेवाणी उनको फिर से कांगे्रस की तरफ मोड़ सकते हैं। इसके अलावा जदयू का शरद यादव वाला धड़ा कांग्रेस का नया सहयोगी है। ये बीटीपी(भारतीय ट्राइबल पार्टी) के नाम से भी जाना जाता है, जो सात सीटों पर चुनाव लड़ेगा।
राज्य में आदिवासियों के सबसे बडे कद के नेता छोटूभाई वासवा गुजरात में इसका चेहरा हैं। दक्षिण गुजरात, जहां काफी आदिवासी वोट हैं, वहां वासवा पर ही कांगे्रस निर्भर करेगी।वासवा खुद भी झगडिय़ा सीट से कांग्रेस व भाजपा के सामने त्रिकोणीय मुकाबले में लगातार छह बार जीत दर्ज कर चुके हैं। वासवा के साथ आने से इस सीट समेत कई इलाकों में उनके वोट कांग्रेस के खाते में आएंगे। कांग्रेस पाटीदारों के वोट को सबसे बड़े लाभ के रूप में देख रही है, जो ‘खाम’ फॉर्मूले के समय कांगे्रस के खिलाफ थे। हार्दिक पटेल द्वारा ‘पास’ संगठन बनाकर आरक्षण कोटा आंदोलन करने के बाद से पटेल समुदाय कांग्रेस और भाजपा के बीच बंटा दिख रहा है। हार्दिक ने भाजपा पर आरोप लगाए हैं कि पटेल समुदाय का राजनीतिक इस्तेमाल करके अब उनकी अनदेखी कर रही है। अपनी रैलियों में हार्दिक पटेलों से भाजपा के खिलाफ वोट देने की अपील करते रहे हैं। यहां तक कि वे पटेलों को सावधान करते हुए कहते हैं कि भाजपा राजनीतिक लाभ के लिए सांप्रदायिक दंगे करवा सकती है। ‘पास’ संगठन के संवैधानिक आरक्षण की मांगें मानने के बाद कांग्रेस चाहती है कि तीन दशकों में पहली बार सौराष्ट्र के इलाके में पाटीदार उसके साथ खड़े हों।
85 में मिली थीं कांग्रेस को 149 सीटें
कांगे्रस के प्रदेश अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी को आशा है कि अगर 1985 में ‘खाम’ फॉर्मूले से 182 में 149 सीटें आ सकती हैं तो इस बार ‘खाप’ फॉर्मूला भी कारगर होगा। नए समीकरण में मुसलमानों की जगह पाटीदारों ने ले ली है। इस बारे में पार्टी का कहना है कि ऐसा नहीं कि मुसलमान वोट उनको नहीं चाहिए। वे कहते हैं कि उनकी रणनीति सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को रोकना है और पार्टी पर मुसलमान समर्थक होने का लेबल नहीं चाहते। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता बदरुद्दीन शेक कहते हैं ‘हमारी प्रथमिकता चुनाव जीतना है। शायद पार्टी ये मान रही है कि मुसलमानों के पास कांग्रेस के अलावा कोई विकल्प नहीं है। एनसीपी से गठबंधन न होने का ठीकरा अशोक गहलौत उनपर ही फोड़ रहे हैं। पार्टी के मनीष दोषी कहते हैं ‘हम उनको 16 सीटें दे रहे थे, लेकिन वे पहले चरण में 48 उम्मीदवार उतार रहे हैं। ये हमें स्वीकार्य नहीं। अगर वे हमारी शर्तें मान लें तो दूसरे चरण में बात बन सकती है।’