Edited By Updated: 20 Feb, 2017 02:16 PM
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डी.एस.जी.एम.सी.) के 26 फरवरी को होने जा रहे चुनाव में वार्ड-40 (जंगपुरा) में इस बार ऐतिहासिक जंग छिड़ी है।
नई दिल्लीः दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डी.एस.जी.एम.सी.) के 26 फरवरी को होने जा रहे चुनाव में वार्ड-40 (जंगपुरा) में इस बार ऐतिहासिक जंग छिड़ी है। इस वार्ड में 3 सियासी पार्टियों में टक्कर वर्तमान सदस्य एवं निर्दलीय उम्मीदवार के बीच है। जंगपुरा सीट के अंतर्गत 2 बड़े ऐतिहासिक गुरुद्वारे (श्री बाला साहिब और श्री दमदमा साहिब) आते हैं। यही कारण है कि यह सीट रोचक और सबसे अलग हो गई है। शिरोमणि अकाली दल (बादल) ने इस सीट से जत्थेदार कुलदीप सिंह भोगल को उतारा है जबकि शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली) ने पुराने दिग्गज शमशेर सिंह संधू को टिकट दिया है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी समर्थक पंथक सेवा दल ने हरपाल सिंह को मैदान में उतारा है। तीनों की भिड़ंत चौथे और आजाद उम्मीदवार तरविंद्र सिंह मारवाह से है। मारवाह पूर्व विधायक और जंगपुरा से वर्तमान में कमेटी के सदस्य भी हैं।
जंगपुरा (वार्ड नं. 40)
कुल मतदाता: 8511
दिल्ली के खास इलाके में माना जाता है। इसमें 2 बड़े ऐतिहासिक गुरुद्वारे श्री बाला साहिब एवं श्री दमदमा साहिब हैं। यहां रोजाना सैंकड़ों सिख संगत देश और विदेश से माथा टेकने आती है। इस वार्ड में इस बार 8511 मतदाता वोट डालेंगे। इसके लिए कुल 8 पोङ्क्षलग बूथ बनाए गए हैं। इस सीट पर 3 राजनीतिक एवं धार्मिक पाॢटयों के अलावा कुल 9 प्रत्याशी मैदान में हैं। वर्तमान सदस्य एवं आजाद उम्मीदवार तरविंद्र सिंह मारवाह का मुकाबला अकाली, सरना एवं पंथक सेवा दल के प्रत्याशियों से है।
जत्थेदार कुलदीप सिंह भोगल (अकाली दल)
हक में जाती बातें: कुलदीप सिंह भोगल 1977 से अकाली दल से जुड़े हैं। उनके दादा तारा सिंह के साथ जबकि पिता हरबंस सिंह जत्थेदार संतोष सिंह के साथ जुड़े रहे। उन्होंने बाला साहिब अस्पताल की जमीन को लेकर 12 साल तक लंबी लड़ाई लड़ी और दिल्ली कमेटी को अस्पताल दिलाया। इसके अलावा निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से गुरुद्वारा दमदमा साहिब जाने वाले पर्यटकों के लिए ई-रिक्शा, टूरिस्ट गाइड, अलग कमरे का इंतजाम करवाया है। भोगल के बेटे हरमीत सिंह भोगल श्री दमदमा साहिब के चेयरमैन भी हैं। भोगल ने 1984 दंगा पीड़ितों के लिए अखिल भारतीय दंगा पीड़ित राहत कमेटी बनाकर संगत के लिए अच्छा काम किया है।
विरोध में जाती बातें: पंजाब में पिछले वर्ष श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी, श्री अकाल तख्त साहिब को नजरअंदाज और इलाके में कमेटी की ओर से पूरी तरह से विकास न होना हैं।
तरविंद्र सिंह मारवाह (आजाद-केंद्रीय गुरु सिंह सभा)
हक में जाती बातें: मरवाहा वर्तमान में इसी वार्ड से कमेटी के सदस्य हैं। वह केंद्रीय गुरु सिंह सभा के अध्यक्ष भी हैं। 1998 से वह दिल्ली के विधायक रहे। तत्कालीन शीला दीक्षित सरकार में वह 2013 तक मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव भी रहे। इलाके में बड़ा नाम है और सियासी व कारोबारी तबके में जाने जाते हैं। 4 साल तक सदस्य होने के नाते वह लोगों के बीच रहे और काम करते रहे। पहले वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ते रहे हैं।
विरोध में जाती बातें: मरवाहा 4 वर्ष से सदस्य हैं, लिहाजा इनके विरोध के स्वर भी कई क्षेत्रों में उठ रहे हैं। जिन इलाकों में उन्होंने चुनाव के बाद ध्यान नहीं दिया, वहां लोग इनसे ज्यादा खफा हैं।
शमशेर सिंह संधू (शिरोमणि अकाली दल-दिल्ली)
हक में जाती बातें: शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली) की कार पर सवार हुए संधू 5वीं बार डी.एस.जी.एम.सी. का चुनाव लड़ रहे हैं। चारों चुनाव वह कनॉट प्लेस वार्ड से लड़े। पहली बार वह जंगपुरा सीट से उतरे हैं। संधू बंगला साहिब गुरुद्वारा सहित आधा दर्जन शिक्षण संस्थानों के चेयरमैन करीब 17 वर्ष तक रहे। गुरुद्वारा कमेटी में वर्ष 2002 में सीनियर वाइस प्रैजीडैंट भी बने थे। स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में संधू ने बहुत काम किया है। उनके दावों पर यकीन करें तो अकाली दल (ब) ने उन्हें अपने हक में करने के लिए पूरी पंजाब की सरकार उनके खिलाफ उतार दी।
विरोध में जाती बातें: संधू का पूरा राजनीतिक करियर वी.आई.पी. वार्ड कनॉट प्लेस से जुड़ा रहा। पहली बार उनकी चुनावी रणभूमि बदली गई है। वह वर्तमान में जिस वार्ड में चुनाव लड़ रहे हैं वहां रहते भी नहीं हैं। वर्तमान में वह ईस्ट ऑफ कैलाश के निवासी हैं। हालांकि 1965 से 1970 के बीच वह जंगपुरा में रह चुके हैं।
हरपाल सिंह (पंथक सेवा दल)
हक में जाती बातें: चाइनीज फूड का बिजनैस करने वाले हरपाल सिंह पहली बार किसी चुनावी संग्राम में उतरे हैं। युवा और शिक्षित परिवार से जुड़े हरपाल पंथक सेवा दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। उनके माता-पिता भारत सरकार में सेवारत रहे। हरपाल सिंह बदलाव की उम्मीद लेकर चुनाव महाभारत में ट्रैक्टर पर सवार हुए हैं। उनका सियासी कद सबसे कमजोर है लेकिन हौसला बुलंद है।
विरोध में जाती बातें: हरपाल सिंह पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। सियासत से उनका दूर-दूर का रिश्ता नहीं। उनकी पार्टी भी नई है और गुरुद्वारा का पहला चुनाव लड़ रही है।