Edited By Updated: 17 Oct, 2016 12:17 PM
महानगर में सौ फीसदी वाटर सप्लाई सुविधा देने बारे करीब डेढ़ दशक पहले दिखाए गए सपने पर एक बार फिर ग्रहण लगता नजर आ रहा है
लुधियाना (हितेश): महानगर में सौ फीसदी वाटर सप्लाई सुविधा देने बारे करीब डेढ़ दशक पहले दिखाए गए सपने पर एक बार फिर ग्रहण लगता नजर आ रहा है, क्योंकि पहले तो यह योजना मंजूरी के चक्कर में लटकी रही और अब काम शुरू हुआ तो केन्द्र से आई ग्रांट पर राज्य सरकार कुंडली मारकर बैठ गई है।
केन्द्र में 10 साल तक यू.पी.ए. की सरकार रहने के दौरान अकाली-भाजपा ने हमेशा असहयोग व पक्षपात का आरोप लगाया जबकि असलियत में राज्य सरकार द्वारा या तो केन्द्र की स्कीमों की शर्तें पूरी नहीं की गई या फिर उनके द्वारा भेजी गई ग्रांटों में बनता हिस्सा नहीं डाला गया। जो हालात मोदी की अगुवाई में एन.डी.ए. सरकार बनने पर भी नहीं बदले, क्योंकि केन्द्र ने घोषणाओं के मुताबिक मदद तो क्या करनी थी, दुरुपयोग की आशंका के चलते पहले आई ग्रांटों का हिसाब मांग लिया। अब सिर्फ पुरानी स्कीमों को ही सिरे चढ़ाने के लिए पैसा दिया गया है। इससे संबंधित योजना सौ फीसदी वाटर सप्लाई सुविधा देने की भी है। जिसका दावा करके नगर निगम अफसरों ने अवार्ड तो वर्ष 2002 में ही हासिल कर लिए और फिर डिक्लेयर एरिया में ही सरकारी वाटर सप्लाई देने की बात कह दी। इसके बाद से ही यह टारगेट हासिल करने की कवायद चल रही है। उसके तहत पहले जे.एन.एन.यू.आर.एम. के तहत 105 का प्रोजैक्ट केन्द्र को भेजकर सुखबीर बादल ने 2013 में नींव पत्थर भी रख दिया लेकिन सरकार बदलने कारण ग्रांट नहीं आई।
इस प्रोजैक्ट को अब अटल मिशन के तहत शामिल करके 92.70 करोड़ की मंजूरी दी गई है। जिसे लेकर पहले तो सीवरेज बोर्ड व नगर निगम में इस बात को लेकर पेंच फंस गया कि काम कौन करेगा? जो जिम्मेदारी निगम को मिली तो डी.पी.आर. बनाने में काफी समय लग गया और फिर अलाटमैंट की स्टेज पर पहुंचने ही एतराज लगने के कारण टैंडर दोबारा लगाने पड़े। इस चक्कर में उन सड़कों का निर्माण रुका रहा, जहां पहले वाटर सप्लाई की लाइनें बिछाई जानी है। यह काम सुखबीर बादल कुछ महीने पहले फिर नींव पत्थर रखने के बाद शुरू तो हो गया है लेकिन सिरे चढऩे की उम्मीद कम ही नजर आ रही है। क्योंकि निगम ने भले ही 70 करोड़ से 327 किलोमीटर वाटर सप्लाई लाइन बिछाने, 32 ट्यूबवैल लगाने व 45 हजार घरों को कनैक्शन देने के टैंडर लगाए हैं जबकि केन्द्र ने 92.70 करोड़ की लागत वाली पूरी योजना के मुताबिक बनता 33 फीसदी हिस्सा राज्य सरकार को भेज दिया है। जबकि राज्य सरकार ने अपना बनता 47 फीसदी शेयर व निगम ने अपने हिस्से के 20 फीसदी नहीं डाले। जबकि केन्द्र से आई ग्रांट में से भी अब तक 14.50 करोड़ ही आए हैं और उसमें से 30 किलोमीटर लाइन डालने सहित 1200 कनैक्शन दिए जा चुके हैं। जिन पर केन्द्र से आया पैसा खर्च होने के बाद आगे का काम पूरा करने के लिए पैसे का प्रबंध करने बारे निगम अफसरों के पास कोई जवाब नहीं है। यह हालात उस समय हैं, जब प्रोजैक्ट पूरा करने की डैड लाइन तेजी से निकल रही है और अभी 28 टंकियां बनाने के टैंडर लगने रहते हैं।