Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Feb, 2018 10:56 AM
स्कूल जाते बच्चों के कंधे पर बोझ बने स्कूल बैग की फिक्र मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एम.एच.आर.डी.) को इस कद्र हुई कि सरकार की दखलअंदाजी के बाद एन.सी.ई.आर.टी. पिछले 7 वर्षों में पहली बार अपनी किताबों के करीकुलम में बड़े स्तर पर बदलाव करने जा रही है।...
लुधियाना(विक्की): स्कूल जाते बच्चों के कंधे पर बोझ बने स्कूल बैग की फिक्र मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एम.एच.आर.डी.) को इस कद्र हुई कि सरकार की दखलअंदाजी के बाद एन.सी.ई.आर.टी. पिछले 7 वर्षों में पहली बार अपनी किताबों के करीकुलम में बड़े स्तर पर बदलाव करने जा रही है। इससे जहां करीकुलम में नवीनता देखने को मिलेगी, वहीं किताबें भी पहले की अपेक्षा पतली होने के कारण विद्यार्थी के कंधों पर बस्ते का बोझ भी कम होगा। हालांकि इसे लागू करने से पहले फिलहाल नई एजुकेशन पॉलिसी की घोषणा का इंतजार किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि यह पॉलिसी मार्च के अंत तक घोषित होने के बाद करीकुलम में घटाव व संशोधन का फार्मूला लागू होगा।
किताबों से हटेंगे रट्टे वाले कांसैप्ट
एन.सी.ई.आर.टी. की करीकुलम कमेटी ने पुरानी किताबों के रट्टे वाले कांसैप्ट भी बदलने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। इसके पहले चरण में बच्चों में क्रिएटिव और क्रिटिकल थिंकिंग को उत्साहित करने वाले सिलेबस को शामिल करने की योजना बनाई जा रही है। इसके लिए कमेटी ने देश भर से विशेषज्ञों से सुझाव भी मांगे हैं।
विशेषज्ञों ने तैयार किया लॄनग आऊटकम
जानकारी के मुताबिक विशेषज्ञों की टीम ने 8वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए अंग्रेजी, ङ्क्षहदी, गणित, सोशल साइंस, साइंस, एन्वायरमैंट स्टडीज, उर्दू विषयों का लॄनग आऊटकम तैयार किया है जिसको आधार बनाकर टीम ने क्लास वाइज कुछ ऐसे फालतू कांटैंट्स में संशोधन किया है जिसकी मौजूदा समय में विद्यार्थियों को उनकी समझ के मुताबिक फिलहाल पढऩे की जरूरत नहीं है।
10 किलो तक का भारी बैग कंधे पर उठाते हैं बच्चे
एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 8 से 13 वर्ष के बच्चे 5 से 10 किलो का स्कूल बैग अपने कंधों पर उठाते हैं। इसमें दर्जन से अधिक किताबें व कापियां होती हैं। इसके अलावा इसमें लंच बाक्स व पानी की बोतल रखने से इसका वजन और बढ़ जाता है। ऐसे में अधिक बोझ होने से विद्यार्थी को गर्दन व पीठ का दर्द की समस्या आ जाती है।
कई वर्कशाप में भारी बस्ते बारे हो चुकी चर्चा
जानकारों की मानें तो विद्यार्थियों में समस्याओं व चुनौतियों से निपटने की आदत पैदा करने और अनुभवों से सीखने वाले कांसैप्ट शामिल किए जा रहे हैं। पिछले दिनों आयोजित एक वर्कशाप में भी बच्चों के कंधों पर किताबों के बोझ को कम करने बारे चर्चा हुई। इससे पहले भी कई वर्कशाप में उक्त मुद्दे बारे चर्चा हो चुकी है। वर्कशाप में विशेषज्ञों ने राय दी कि मौजूदा समय में किताबों के करीकुलम में बदलाव की जरूरत है ताकि बच्चों पर मानसिक व शारीरिक तौर पर भारी टैक्स्ट बुक्स का बोझ न रहे।