Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Jan, 2018 10:13 AM
वालंटियर फॉर सोशल जस्टिस फिल्लौर ने गुरदासपुर जिला प्रशासन द्वारा गठित कमेटी को साथ लेकर गुरदासपुर के नजदीकी गांव वरसोला में एक ईंट-भट्ठे पर बीते लगभग 25 साल से बंधुआ मजदूरी कर रहे 3 लोगों को मुक्त करवाने में सफलता प्राप्त की।
गुरदासपुर(विनोद): वालंटियर फॉर सोशल जस्टिस फिल्लौर ने गुरदासपुर जिला प्रशासन द्वारा गठित कमेटी को साथ लेकर गुरदासपुर के नजदीकी गांव वरसोला में एक ईंट-भट्ठे पर बीते लगभग 25 साल से बंधुआ मजदूरी कर रहे 3 लोगों को मुक्त करवाने में सफलता प्राप्त की।
इन लोगों को मुक्त करवाया गया उनमें मां-बाप तथा उनका बेटा शामिल था, जबकि जो टीम जिला प्रशासन ने इस संगठन की मदद के लिए गठित की थी उसमें नायब तहसीलदार, लेबर इंस्पैक्टर तथा गुरदासपुर सदर पुलिस स्टेशन इंचार्ज शामिल थे परंतु संगठन के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि जिला प्रशासन ने तो ईंट-भट्ठा मालिक के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की तथा न ही जिन लोगों को मुक्त करवाया गया उन्हें बंधुआ मजदूर घोषित किया है।
इस संबंधी वालटिंयर फॉर सोशल जस्टिस के प्रवक्ता योगेश कुमार एडवोकेट ने बताया कि संगठन को 5 अक्तूबर 2017 को एक शिकायत मिली थी जिसमें हरदीप धौलपुरिया नाम के व्यक्ति ने लिखा था कि उसे तथा उसके मां-बाप को वरसोला ब्रिक कम्पनी गांव वरसोला ने बंधुआ मजदूर बना रखा है तथा बीते लगभग 27 साल से उन्हें बंदी बनाया हुआ है। उसकी बहन के विवाह पर उसके माता-पिता को भी यहां से नहीं जाने दिया गया।
इस शिकायत को जिला मैजिस्ट्रेट गुरदासपुर को भेजा गया परंतु कोई कार्रवाई न होने के कारण संगठन की टीम 21 दिसम्बर 2017 को जिलाधीश से आकर मिली तथा उसके बाद सारी योजना बनाकर तथा टीम गठित कर बीते दिनों उक्त वरसोला ब्रिक वरसोला पर छापामारी कर हरदीप, उसके पिता मोहन लाल तथा उसकी माता को जिला प्रशासन द्वारा गठित टीम ने मुक्त करवाया।
उन्होंने आरोप लगाया कि टीम ने ईंट-भट्ठा मालिक को रिहा करवाए लोगों का सामान गुरदासपुर पहुंचाने के लिए टै्रक्टर देने को कहा। मालिक ने टै्रक्टर-ट्रॉली तो दे दी परंतु वह जिलाधीश कार्यालय के कुछ दूरी पर ही सामान फैंक कर वापस चला गया।
इस मौके पर मुक्त करवाए हरदीप धौलपुरिया ने आरोप लगाया कि उसकी 6 दिसम्बर को बी.सी.ए. की परीक्षा थी परंतु वह भी मालिक ने नहीं देने दी जिससे उसकी पढ़ाई खराब हो गई। उन्हें सारे परिवार को इकट्ठे कहीं नहीं जाने दिया जाता था। पीड़ित हरदीप ने बताया कि जब वर्ष 1992 में एक व्यक्ति ने 5 हजार रुपए एडवांस दिला कर उन्हें इस ईंट-भट्ठे पर काम दिलाया था तो मालिक ने वायदा किया था कि रहने के लिए जगह बनाकर दी जाएगी तथा बच्चों की शादी का खर्च भी किया जाएगा, परंतु जब समय आया तो कुछ नहीं दिया।
संगठन ने जिला प्रशासन पर कई आरोप लगाए
संगठन के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि अभी तक रिहा करवाए लोगों को बंधुआ मजदूर घोषित नहीं किया गया है तथा न ही ईंट-भट्ठा मालिक के विरुद्ध कार्रवाई की गई है। जबकि इस संबंधी मानव अधिकार कमीशन को रिपोर्ट भी नहीं भेजी गई है।