Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Nov, 2017 09:39 AM
एक तरफ जहां केन्द्र सरकार की तरफ से नोटबंदी, जी.एस.टी. व बेनामी एक्ट 2016 जैसे नए-नए कानून लागू करके काले धन को पकडऩे का प्रयास किया जा रहा है और दावे किए गए हैं कि करोड़ों का काला धन ट्रेस हो चुका है तो दूसरी तरफ तहसीलों व सब-तहसीलों में हर रोज...
अमृतसर (नीरज): एक तरफ जहां केन्द्र सरकार की तरफ से नोटबंदी, जी.एस.टी. व बेनामी एक्ट 2016 जैसे नए-नए कानून लागू करके काले धन को पकडऩे का प्रयास किया जा रहा है और दावे किए गए हैं कि करोड़ों का काला धन ट्रेस हो चुका है तो दूसरी तरफ तहसीलों व सब-तहसीलों में हर रोज करोड़ों के इन्कम टैक्स की चोरी हो रही है तथा काले धन का सरेआम लेन-देन हो रहा है। यह करोड़ों की इन्कम टैक्स चोरी कोई अधिकारी नहीं कर रहे हैं बल्कि वे लोग कर रहे हैं जो जमीन-जायदाद की रजिस्ट्रियां करवा रहे हैं।
इसका मुख्य व बड़ा कारण यही है कि रजिस्ट्री सिर्फ कलैक्टर रेट पर की जा रही है जबकि कलैक्टर रेटों व मार्कीट वैल्यू के अनुसार रेटों में जमीन आसमान का अन्तर पाया जाता है। ज्यादातर लोग कलैक्टर रेट के अनुसार बनती रकम ही चैक या ड्राफ्ट के जरिए बेचने वाले को देते हैं और बाकी रकम कैश में दी जा रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि जमीन बेचने वाले व खरीदने वाले के बीच होने वाला सौदा यानी बयाना इन्कम टैक्स विभाग के हाथ नहीं लग पाता है, जैसे ही बयाने के अनुसार रजिस्ट्री हो जाती है वैसे ही बयाने को फाड़ दिया जाता है।
उदाहरण के तौर पर यदि किसी मकान का सौदा 50 लाख रुपए में तय हुआ है तो यह 50 लाख का सौदा सिर्फ बेचने वाले खरीदने वाले के बीच लिखे जाने वाले बयाने तक ही सीमित रहता है। सौदे की रजिस्ट्री 7 से 8 लाख रुपये के बीच यानी कलैक्टर रेट्स के अनुसार होती है और बाकी सारी रकम नकद दी जाती है यानी 7 लाख के कलैक्टर रेट का भुगतान चैक या ड्राफ्ट के जरिएकिया जाता है और बाकी सारी रकम नकद यानी काले धन से अदा की जाती है। यदि किसी रेड या सर्वे में विभाग को बयाने हाथ लग जाते हैं तो जरूर इस पर कार्रवाई की जाती है अन्यथा सारा गोलमाल एक कानूनी प्रक्रिया की आड़ में चलता रहता है। रीयल एस्टेट माहिरों के अनुसार सरकार की छत्रछाया में काला धन सरेआम इधर-उधर हो रहा है जिसको रोकने की जरूरत है।
सिर्फ बैंक केसों में ही होती है मार्कीट वैल्यू अनुसार रजिस्ट्री
जमीन-जायदाद की बिक्री में काले धन के लेन-देन की बात करें तो पता चलता है कि सिर्फ बैंक लोन के केसों में ही मार्कीट वैल्यू और बयाने के हिसाब से रजिस्ट्री करवाई जाती है यानी किसी व्यक्ति ने 30 लाख में मकान खरीदा है और उस पर लोन लिया है तो बैंक के हिसाब से 30 लाख रुपए की ही रजिस्ट्री करवाई जाती है। इसके अलावा बहुत कम लोग मार्कीट वैल्यू के हिसाब से रजिस्ट्री करवाते हैं जिनकी संख्या एक प्रतिशत भी नहीं है।
इन्कम टैक्स एक्ट 269 (एस.एस.) का सरेआम उल्लंघन
काले धन पर नकेल डालने के लिए वित्त मंत्रालय की तरफ से न सिर्फ बेनामी एक्ट बनाया गया है बल्कि इन्कम टैक्स कानून 269 (एस.एस.) भी बनाया गया है जिसमें जमीन जायदाद की बिक्री या खरीद करते समय 20 हजार रुपये से ज्यादा की कोई भी रकम का लेन देन नकद नहीं किया जा सकता है और चैक या बैंक ड्राफ्ट के जरिए ही लेन देन किया जा सकता है लेकिन तहसीलों में आमतौर पर हर रोज करोड़ों का लेन देन कैश में किया जा रहा है और 269 (एस.एस.) कानून का सरेआम उल्लंघन किया जा रहा है।
आमतौर पर देखा गया है कि बयाना राशि के एडवांस के बाद सौदे में तय की गई बाकी रकम का भुगतान तहसीलों में स्थित वसीका नवीसों के दफ्तर में ही कर दिया जाता है। जैसे ही रजिस्ट्री पर दोनों पाॢटयों के साइन होते हैं तो नकद भुगतान कर दिया जाता है। एक आर्थिक मामलों के जानकार ने बताया कि काले धन पर नकेल तभी डाली जा सकती है जब जमीन जायदाद की बिक्री में लेनदेन मार्कीट वैल्यू के हिसाब से रजिस्ट्री की जाए और इसका भुगतान चैक या ड्राफ्ट के जरिए किया जाए लेकिन बहुत बड़ा तंत्र जिसमें कई नेताओं की प्रापर्टी कारोबार में इनवैस्टमैंट होनेके कारण इस तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है और काले धन का लेन देन सरेआम हो रहा है।