थानों में धूल फांक रही हैं ‘दुल्हनों की हसरतें’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Dec, 2017 01:05 PM

the dust in the police stations is   bride  s eyes

बठिंडा ही नहीं पूरे पंजाब में तलाक की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। पति-पत्नी में झगड़े के कारण पिछले एक दशक में देशभर में तलाक दर में 4 गुना वृद्धि देखने को मिल रही है। इन्हीं मामलों के चलते बङ्क्षठडा के महिला थाने में दुल्हनों की हसरतों का सारा सामान...

बठिंडा(विजय, आजाद): बठिंडा ही नहीं पूरे पंजाब में तलाक की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। पति-पत्नी में झगड़े के कारण पिछले एक दशक में देशभर में तलाक दर में 4 गुना वृद्धि देखने को मिल रही है। इन्हीं मामलों के चलते बङ्क्षठडा के महिला थाने में दुल्हनों की हसरतों का सारा सामान वर्षों से धूल फांक रहा है। 

थाने के अंदर विभिन्न विवाह से संबंधित दहेज का सामान बड़े स्तर पर पड़ा सड़ रहा है, क्योंकि मुकद्दमे में दहेज को ही मुख्य आधार बनाया जाता है। जब तक तलाक के मामले निपटते नहीं हैं तब तक उक्त सामान थाने में ही रखा जाता है। किसी दुर्लभ मामले में निपटारा होने के बाद इसे संबंधित लोगों के हवाले किया जाता है लेकिन अधिकांश में जब तक किसी केस में फैसले आते हैं तब तक उक्त सारा सामान कबाड़ बन चुका होता है। पुलिस प्रशासन के पास इतनी जगह नहीं है जहां उक्त सामान को सुरक्षित रखा जा सके जिस कारण अधिकांश सामान खराब हो जाता है। यह सामान बारिश आदि में भी बाहर ही पड़ा रहता है। उक्त सामान हर मां-बाप अपनी बेटी को बड़े चाव से तथा कई बार बेहद तंग होकर देता है।

विवाद बढ़ते ही थाने में ले आया जाता है सामान
शादी-विवाह के मामलों में विवाद बढ़ते ही दहेज में दिया गया सामान उठाकर थानों में लाया जाता है। बङ्क्षठडा के महिला थाने में इस प्रकार के सामान के अंबार लगे हुए हैं। दुल्हनों की पेटियां, संदूक, पंखे, कूलर, अलमारियां, गद्दे व यहां तक कि दहेज में दिए गए मोटरसाइकिल या कारें आदि भी थाने में खड़े सड़ रहे हैं। उक्त दोनों पक्षों को कौंसङ्क्षलग के लिए थानों में बुलाया जाता है लेकिन जब तक केस नहीं निपटता तब तक वे अपना सामान नहीं ले जा सकते। विवाहित लड़कियां थानों में आकर अपने बयान दर्ज करवा जाती हैं व हसरत भरी निगाहों से उक्त सामान को निहार जाती हैं लेकिन अधिकांश मामलों में ये सामान उनके काम नहीं आ पाता। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि वे सामान संबंधित लोगों को देना चाहते हैं लेकिन इसके लिए कानूनी प्रक्रिया जरूरी है। 

2 संस्कृतियों के बीच टकराव से कमजोर हुई रिश्तों की नींव
बङ्क्षठडा में खेती-किसानी के काम ज्यादा होते थे। पूरा परिवार खेती के काम पर निर्भर रहता था जिस कारण लोग संयुक्त परिवार में रहना पसंद करते थे लेकिन अब ऐसा नही है। अब समय बदल गया है। आज बदलते समय के साथ ही हमारे जीवनशैली में भी काफी बदलाव आया है जिस कारण लोगों की जिम्मेदारी बदल गई है। भारतीय समाज त्याग पर विश्वास करने वाला समाज था लेकिन उपभोग का समाज बन गया है। उपभोग की प्रवृत्ति ने इंसान को व्यक्तिगत स्वार्थ तक सीमित कर दिया है। 2 संस्कृतियों के बीच टकराव ने रिश्तों की डोर कमजोर की है। इससे बङ्क्षठडा भी अछूता नहीं बचा हुआ है जिस कारण से इस तरह की दिक्कतें आना स्वाभाविक है। 

अनजानी खुशी की तलाश में भटक रहे हैं युवा
अब प्यार और विवाह की परिभाषा बदल गई है। अधिकांश दंपति आपसी संबंधों की गर्माहट को भूलकर एक अनजानी खुशी की तलाश में भटक रहे हैं। कई बार तो विवाह के कुछ समय बाद ही पति-पत्नी के बीच मनमुटाव शुरू हो जाता है। ऐसे किस्से सामने आते हैं कि लगता है विवाह का मकसद पत्नी को नीचा दिखाना या फिर पैसा हड़पना था। पहले बात ढंक दी जाती थी, पर अब वह असंभव है। यही वजह है कि अब शादी के नाम पर पढ़ी-लिखी युवतियों के मन में अनजाना भय भी घर करने लगा है। परिचित और करीबी रिश्तेदार भी पहले की तरह रिश्ते कराने में कतराने लगे हैं। शादी 2 परिवारों का संबंध न रहकर लेन-देन का व्यवसाय बन जाए और परस्पर प्रेम और विश्वास का स्थान शक और अहं ले ले तो हर चीज पैसे से तौली जाने लगती है और तब बिखरन बढ़ती है। 

आर्थिक-सामाजिक बदलाव कारण बढ़े तलाक के मामले
आॢथक उदारीकरण के बाद सामाजिक नैतिक मूल्यों में आए बदलाव के कारण महिलाओं की सोच बदली है। अपने अधिकारों के प्रति भी वे जागरूक हुई हैं। अब महिलाएं भी समाज में समानता और प्रतिष्ठा से जिंदगी गुजारना चाहती हैं। पति के परमेश्वर और 7 जन्म एक साथ जीने-मरने पर विश्वास में कमी आई है। अपने स्वतंत्र अस्तित्व, करियर और गरिमा को बनाए रखने के प्रति वे सजग हैं। पर इसका अर्थ यह कतई नहीं कि वे पति के साथ रहना नहीं चाहतीं।

वे दाम्पत्य तो चाहती हैं, पर अत्याचार सहकर नहीं। ऐसा तभी संभव हो सकता है जब रिश्ते की बुनियाद एक-दूसरे के प्रति प्रेम व विश्वास पर बना हो लेकिन बढ़ते भौतिकवाद, समाज में व्याप्त लड़के-लड़कियों के भेदभाव, आसमान छूती महत्वाकांक्षाओं और तनावपूर्ण पेशेवर जिंदगी ने मनुष्य को स्वार्थी और आत्म केंद्रित बना दिया है। पति-पत्नी की एक-दूसरे से उम्मीदें बढ़ गई हैं। जब उन्हें लगता है कि उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हो रहीं तो वे धैर्य रखने व एक-दूसरे को समझने की बजाय तलाक लेना बेहतर समझते हैं। 

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