Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Nov, 2017 12:27 PM
आपके बच्चों को क्या मोबाइल की लत है, क्योंकि यह लत धीरे-धीरे एक बीमारी का रूप लेती जा रही है और वह बीमारी वाटसएपिटिस है। देश के कई अस्पतालों में इस बीमारी के कारण कई युवा भर्ती हैं क्योंकि उन्हें मोबाइल व सोशल मीडिया की लत अत्यधिक है।
बरनाला/संगरूर (विवेक सिंधवानी,गोयल): आपके बच्चों को क्या मोबाइल की लत है, क्योंकि यह लत धीरे-धीरे एक बीमारी का रूप लेती जा रही है और वह बीमारी वाटसएपिटिस है। देश के कई अस्पतालों में इस बीमारी के कारण कई युवा भर्ती हैं क्योंकि उन्हें मोबाइल व सोशल मीडिया की लत अत्यधिक है। 6 से 10 वर्ष के बच्चे लगातार अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं क्योंकि सुबह आंख खुलते ही बच्चों को मोबाइल देखने की लत चुकी है और यह लत धीरे-धीरे विकराल रूप लेती जा रही है। इस बीमारी से कलाई, गर्दन व उंगलियों में दर्द शुरू हो जाता है व सूजन शुरू हो जाती है।
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
मनोचिकित्सक डा. दमनजीत कौर ने बताया कि डिपार्टमैंट आफ हैल्थ एंड ह्यूमन सर्विसिस के अनुसार 2010 से 2016 के बीच डिप्रैशन का शिकार हुए किशोरों की संख्या में 60 प्रतिशत तक इजाफा हुआ है। डिपार्टमैंट ने 2016 के सर्वे में बताया है कि करीब 13 फीसदी किशोरों को एक बार डिप्रैशन की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ा है। 2010 का यह आंकड़ा 8 फीसदी है। 10 से 19 वर्ष के बच्चों द्वारा आत्महत्याओं में भी वृद्धि हुई है। सैंटर फार डिसीज कंट्रोल एंड प्रीवैंशन के मुताबिक कम उम्र की लड़कियों में आत्महत्या की दर पिछले 40 वर्षों में सबसे ज्यादा स्तर पर है जबकि 1990 और 2000 के दशक में किशोरों के डिप्रैशन और आत्महत्या की दर या तो स्थिर रही या फिर इसमें कमी आई थी।
क्या कहना है खेलों को प्रोत्साहन देने वालों का
जिमखाना क्लब सुनाम के पूर्व प्रधान सुमित बंदलिश ने कहा कि मोबाइल फोन जरूरत से अधिक अब स्टेटस सिंबल बन चुका है। बच्चे एक दूसरे को देखकर अपने माता-पिता से महंगे और नए माडलों के मोबाइलों की डिमांड करते हैं। कई बार डिमांड न पूरी होने के कारण उनके द्वारा कई अनुचित कदम उठाए जाते हैं। माता-पिता को भी चाहिए कि वे बच्चों का ख्याल रखें व बच्चों को उन लोगों से दूर रखें जो बच्चों को स्टेटस सिंबल के नाम पर भ्रमित करते हैं।
मोबाइल फोन ने डाला बच्चों के मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव
पंजाब पोल्ट्री फार्म एसो. के प्रांतीय अध्यक्ष राजेश गर्ग बब्बू संगरूर ने कहा कि मोबाइल फोन ने बच्चों को बिल्कुल नकारा बना कर रख दिया है। उछल-कूद, गुल्ली डंडा, कंचे, पतंग, क्रिकेट व अन्य खेलों के बारे में न तो वे जानते हैं और न ही खेलना चाहते हैं। जिनसे उनका शारीरिक विकास नहीं हो रहा है। पहले समय में बच्चे अपने रिश्तेदारों के पास जाया करते थे और रिश्तों की अहमियत की समझ थी व आज मोबाइल के युग में व्यस्त होने के कारण बच्चे रिश्तों की परिभाषा भूलते हुए सभी रिश्तेदारों को अंकल व आंटी के नाम से ही पुकारते हैं।
क्या कहते हैं बुद्धिजीवी
युवराज प्लास्टिक के डायरैक्टर लक्ष्मण दास बांसल ने कहा कि बच्चों को मोबाइल से दूर रखना चाहिए क्योंकि बच्चे इसके प्रयोग से डिप्रैशन व वाट्सएपिटिस बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं। मोबाइल फोन लोगों की सुविधा के लिए हैं लेकिन दिन-प्रतिदिन दुविधा का रूप धारण कर रहे हैं। जहां इनकी पढ़ाई का नुक्सान हो रहा है वहीं बच्चों के शारीरिक विकास में रुकावट पेश आती है।