Edited By Punjab Kesari,Updated: 06 Nov, 2017 05:00 PM
गर निगम में वित्तीय संकट के चलते अधिकारियों का हाल बेहाल हुआ पड़ा है। वेतन देने के लिए निगम का गल्ला खाली पड़ा है, ऊपर से निगम की करोड़ों रूपए की देनदारी बकाया है। निगम का दीवालिया होने जैसा हाल है।
अमृतसर(रमन): नगर निगम में वित्तीय संकट के चलते अधिकारियों का हाल बेहाल हुआ पड़ा है। वेतन देने के लिए निगम का गल्ला खाली पड़ा है, ऊपर से निगम की करोड़ों रूपए की देनदारी बकाया है। निगम का दीवालिया होने जैसा हाल है। निगम में अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों तक को सितम्बर माह से वेतन नहीं नसीब हुआ है। निगम कर्मचारी रोज अकाऊंट अफसर के दफ्तर के चक्कर पर चक्कर काट रहे हैं परन्तु उन्हें निराशा ही मिल रही है। निगम कर्मियों का हर माह साढ़े 14 करोड़ रूपए बनता है।
अपने खर्चे पूरे करने में बुरी तरह से विफल साबित निगम के लिए विकास पर पैसे खर्च करना तो दूर की बात है, नतीजा गुरु नगरी का सारा विकास पंजाब व केंद्र सरकार से आने वाली ग्रांटों पर ही निर्भर होकर रह गया है। विभिन्न विभागों से होने वाली रिकवरी मात्र अनिवार्य खर्चे ही पूरे कर पा रही है। ऐसे में शहर के विकास के लिए ग्रांटें लानी होंगी।
आगामी दिनों में निगम के हालात और खराब होते दिखाई दे रहे हैं। अधिकारियों को सरकार से ही उम्मीद है कि उन्हें फंड जारी हों या फिर आमदनी का कोई साधन बने। निगम की 70 करोड़ के करीब देनदारी बकाया है। पहले निगम में हर माह वैट आता था जिससे निगम हर माह वेतन देता था लेकिन 2 माह से जी.एस.टी. लागू होने पर वैट भी नहीं आया। 2 माह का वैट 16 करोड़ रूपए के लगभग बनता है। पिछले साल के मुताबिक एक्साइज ड्यूटी भी 6 करोड़ रूपए कम आई जिससे निगम अधिकारियों को हाथ-पैर की पड़ गई है कि वे कर्मचारियों को वेतन कहां से दें।
निगम कमिश्नर ने बैठकें कर अधिकारियों एवं कर्मचारियों को रिकवरी को लेकर सख्ती से आदेश दिए हैं लेकिन अधिकारियों-कर्मचारियों को भी 2 माह से वेतन नसीब नहीं हुआ। इसी को लेकर अधिकारी भी बोल रहे हैं कि बिना वेतन भूखे पेट कैसे होगी रिकवरी। कर्मचारियों ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कई कर्मचारियों के चैक वापिस हो रहे है जिससे कर्मचारी कर्ज उठाने के लिए मजबूर हैं। 2 माह से सीवरमैनों को वेतन नहीं मिला। निगम कर्मचारी हर त्यौहार काला मनाने को मजबूर हैं।
लाला की दुकान बना नगर निगम
यूनियन के कुछ सदस्यों ने बताया कि नगर निगम किसी लाला की दुकान बन कर रह गया है। आज निगम का दीवाला निकल चुका है। निगम के पास मुलाजिमों को देने के लिए वेतन नहीं है। बिजली के बिल साल भर पैंडिंग चलते हैं, जब कनैक्शन कटने लगता है तो उसे अदा किया जाता है। निगम के खर्चे अकाऊंट डिपार्टमैंट के लिए आफत बन गए हैं। आज कल लाला की दुकान जैसा हाल मुलाजिमों का हो गया है।
लाला की दुकान में किसी भी कर्मचारी का वेतन एक माह या 15 दिन रख कर दिया जाता है, वैसे ही निगम में मुलाजिमों को एक माह का वेतन रख कर दिया जा रहा है।
नगर निगम द्वारा मैकेनिकल स्वीपिंग कम्पनी एवं सॉलिड वेस्ट मैनेजमैंट कम्पनी की भी रकम पैंङ्क्षडग पड़ी हुई है जिससे उन्हें हर बार अधिकारियों से एक ही उत्तर मिलता है कि सरकार से बात की जाएगी, निगम के पास तो कुछ नहीं है। यही हाल ठेकेदारों का है। निगम में ठेकेदारों ने किए कामों के काफी पैसे लेने हैं, जिससे निगम के पास लेनदारी कम देनदारी ज्यादा हो गई है।