वातावरण संकट की चपेट में आया पंजाब

Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Nov, 2017 11:33 AM

punjab came under grip of crisis

पंजाब समेत उत्तरी भारत के कई राज्य आजकल गंभीर वातावरण संकट में से गुजर रहे हैं। धुंध के कारण जान-माल का नुक्सान हो रहा है। राजनीतिक तथा गैर-राजनीतिक गुट एक-दूसरे के खिलाफ शब्द रूपी तीर छोड़कर अपने आपको पाक साफ साबित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा...

बिलासपुर/निहाल सिंह वाला (जगसीर/बावा): पंजाब समेत उत्तरी भारत के कई राज्य आजकल गंभीर वातावरण संकट में से गुजर रहे हैं। धुंध के कारण जान-माल का नुक्सान हो रहा है। राजनीतिक तथा गैर-राजनीतिक गुट एक-दूसरे के खिलाफ शब्द रूपी तीर छोड़कर अपने आपको पाक साफ साबित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं लेकिन असलियत यह है कि इसके लिए सरकार समेत सभी गुट कसूरवार हैं।

धान की पराली को आग लगाने के मुद्दे पर विरोधी गुटों ने वोट राजनीति का खेल खेलते इसको राजनीतिक रंगत दी। उनकी सोच अनुसार यदि किसान पराली को आग लगाएंगे तो उनके दोनों हाथों में लड्डू हैं। यदि सरकार मूकदर्शक बनी तो वे अपने आपको लोगों के हमदर्द साबित करने में सफल हो जाएंगे। यदि सरकार ने किसानों पर केस दर्ज किए तो उनको सरकार के खिलाफ बयानबाजी के गोल दागकर हिमायत हासिल करने का सुनहरी अवसर मिल जाएगा।

50 प्रतिशत किसान नहीं चाहते थे आग लगाना
चाहे सत्तारूढ़ कुछ भी बहाने बनाकर अपने आपको निर्दोष साबित करने के स्रोत जुटाएं लेकिन इखलाकी तौर पर लोगों को साफ वातावरण प्रदान करने की मुख्य जिम्मेदारी सरकार की बनती है। सरकार को चाहिए था कि किसानों को आग न लगाने हेतु उत्साहित करने के लिए कुछ न कुछ मुआवजा देती तथा नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों को सही अर्थों में लागू करने के लिए संजीदगी दिखाती। किसान भाईचारे में से 50 प्रतिशत किसान धान की पराली को आग नहीं लगाना चाहते थे।

कानूनी निर्देशों की पालना करने के लिए वे मानसिक तौर पर तैयार भी थे लेकिन किसान जत्थेबंदियों की हल्लाशेरी तथा विरोधी दलों के थापड़े ने उनको इस रास्ते पर चलने में बड़ी भूमिका निभाई। रहती कसर सत्तारूढ़ नेताओं के बयानों ने पूरी कर दी कि किसानों पर केस दर्ज नहीं किए जाएंगे। दरअसल सत्तारूढ़ को किसान वोटों के खिसकने का डर सताने लगा था।

लोग पूछते हैं हमारा कसूर क्या है
वातावरण संकट से जूझ रहे बच्चे, बुजुर्ग तथा आम लोग पूछते हैं कि इसका खामियाजा हम क्यों भुगत रहे हैं। बीमारियों से जूझ रहे लोगों के अलावा बेजुबान पशु, पक्षी की कुरलाहट सवाल पूछती है कि आखिर हमारा कसूर क्या है। यह समस्या किसानों की या सरकार की हो सकती है लेकिन बाकी वर्गों को सजा क्यों दी जा रही है। क्या धुएं जैसी धुंध में यूं ही जानें गंवाने वालों के परिवारों का घाटा सरकार या दूसरे गुट पूरा कर सकेंगे। यह प्रश्न पंजाब के फिजा में गूंज रहे हैं। जो शायद हमारे गूंगे-बहरे नेताओं तथा प्रशासनिक अधिकारियों को नहीं सुन रहे तथा वे सब कुछ जानते हुए भी चुप हैं।
 

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