घटिया किस्म का गुड़ बेच रहे हैं प्रवासी, स्वास्थ्य के साथ किया जा रहा खिलवाड़

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Jan, 2018 10:25 AM

poor sells jaggery

वर्तमान दौर में पंजाब के किसान कई प्रकार की समस्याओं से जूझ रहे हैं। सरकारी नीतियों एवं प्राकृतिक आपदा के भय को देखते हुए फसली विभिन्नता एवं सहायक व्यवसाय अपनाए जाने पर बल दिया जा रहा है। गन्ने की काश्त एवं गुड़ की पैदावार डूबती जा रही किसानी के लिए...

रूपनगर(विजय): वर्तमान दौर में पंजाब के किसान कई प्रकार की समस्याओं से जूझ रहे हैं। सरकारी नीतियों एवं प्राकृतिक आपदा के भय को देखते हुए फसली विभिन्नता एवं सहायक व्यवसाय अपनाए जाने पर बल दिया जा रहा है। गन्ने की काश्त एवं गुड़ की पैदावार डूबती जा रही किसानी के लिए लाभदायक हो सकती है। कृषि विशेषज्ञों द्वारा एक तर्क राज्य के किसानों को दिया गया तथा सरकार ने पंजाब में मीठा इंकलाब लाने हेतु किसानों को प्रोत्साहित किया परंतु इसके बावजूद मीठा इंकलाब किसानों के लिए जहर बन गया। करोड़ों रुपए की अदायगी तथा गन्ने की सही कीमत न मिलने के कारण किसानों में निराशा फैली हुई है। शूगर के बढ़ते रोग के कारण भी लोग गुड़ तथा शक्कर पाने के लिए जहां तत्पर होने के बावजूद किसान उनकी डिमांड पूरी नहीं कर पा रहे तथा न ही मीठे इंकलाब के आर्थिक पक्ष से हकदार बन सके। दूसरी तरफ प्रवासी लोग गुड़ के नाम पर घटिया स्तर के पदार्थ बेच कर मीठे इंकलाब के दुश्मन बने बैठे हैं। 

 

शूगर मिलों की अदायगी का दुखांत 
मीठे इंकलाब के तहत उत्साहित हुए किसानों का यह बहुत बड़ा दुखांत है कि शूगर मिलों द्वारा उन्हें गन्ने की अदायगी न तो समय पर की जाती है तथा न ही अन्य राज्यों के मुकाबले गन्ने का मूल्य दिया जाता है। राज्य की मिलें भी गत लंबे समय से 300 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से गन्ने की खरीद कर रही हैं तथा सरकार के भारी दबाव के चलते 10 रुपए प्रति क्विंटल मूल्य वृद्धि की गई है। प्रदेश के किसान संगठन रंगाराजन कमीशन की रिपोर्ट लागू करने के लिए सरकार पर दबाव बना रहे हैं परंतु शेष राज्यों के मुकाबले इस रिपोर्ट को अमलीजामा नहीं पहनाया गया। पंजाब की शूगर मिलों की मालिकी बहु-संख्यक सियासी पक्ष के पास होने के कारण किसान की आवाज तथा हक हमेशा सियासत की भेंट चढ़ते हैं। 


गुड़-शक्कर की विशेषताएं व जरूरतें 
मौजूदा दौर में शूगर जैसी बीमारियों से तंग आकर ’यादातर लोग गुड़-शक्कर का पुन: इस्तेमाल करने लग पड़े हैं। कभी समय था कि गांवों में 40 फीसदी किसान गन्ने की काश्त करते थे। खादें, कीटनाशक दवाइयों तथा अन्य रासायनिक वस्तुओं के बिना तैयार किया शुद्ध गुड़ वर्तमान दौर की मिठाइयों को मात देता था, परंतु जैसे ही किसानों का रुझान धान की फसल की तरफ बढ़ा तथा पंजाब में शूगर मिलें लगीं तो गन्ना बेलन बड़े पैमाने पर पंजाब में विलुप्त हो गए। आज दशकों के बाद पानी की समस्या तथा कृषि विभिन्नता की बात छिड़ी तो बढ़ रही डिमांड के मद्देनजर किसानों का उत्साह गन्ना उत्पादन की तरफ पुन: पैदा हुआ है। चिकित्सा माहिरों के अनुसार वे शूगर के बचाव से चीनी का सेवन छोड़ कर लोगों को गुड़ के प्रयोग की तरफ प्रेरित कर रहे हैं परंतु शुद्ध तथा मिलावट रहित शक्कर तथा गुड़ मिलना मुश्किल बना हुआ है, क्योंकि किसान चाहते हुए भी गन्ने की काश्त नहीं कर रहे। शूगर मिलों की अदायगी के साथ-साथ आवारा जंगली पशुओं द्वारा किया जा रहा फसलों का उजाड़ा भी इसका एक मुख्य कारण माना जा रहा है। इस कारण ही पंजाब में गुड़ 50 रुपए प्रति किलोग्राम तथा शक्कर 60 रुपए परचून में मिल रही है, जो पैदावार से ज्यादा खपत का बड़ा प्रमाण है। 


किसानों की मजबूरी का प्रवासी लोग उठा रहे लाभ 
पंजाब के किसानों द्वारा इस काश्त के प्रति रुझान घटाने तथा गुड़-शक्कर की जरूरत बढऩे का अधिक लाभ उन प्रवासी लोगों को हुआ है जो सड़कों के किनारे बेलन लगा कर शुद्ध गुड़ के स्थान पर लोगों को मिलावटी गुड़ व शक्कर बेचते हैं। भोले-भाले लोग इनके चंगुल में फंस कर जहां मीठे सोडे की मिलावट तथा अशुद्ध गुड़ व शक्कर खरीदते हैं, वहीं गुड़ बनाते समय ये प्रवासी मजदूर साफ-सफाई का ध्यान भी नहीं रखते। इसी तरह गन्ने का रस निकालने के समय कई दिन पूर्व पुराने गन्ने का प्रयोग करते हैं, जो काफी नुक्सानदायक होता है। 

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