भूमि अधिग्रहण के नाम पर अधिकारियों ने रेवडिय़ों की तरह बांटे चैक

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Dec, 2017 11:35 AM

land acquisition

बठिंडा-अमृतसर नैशनल हाईवे-15 में भूमि अधिग्रहण के नाम पर हो रहे भ्रष्टाचार की रिपोर्ट जांच के बाद ए.डी.सी. विनीत कुमार ने डिप्टी कमिश्नर के सुपुर्द की है।

फिरोजपुर (जैन): बठिंडा-अमृतसर नैशनल हाईवे-15 में भूमि अधिग्रहण के नाम पर हो रहे भ्रष्टाचार की रिपोर्ट जांच के बाद ए.डी.सी. विनीत कुमार ने डिप्टी कमिश्नर के सुपुर्द की है।

प्राथमिक जांच में अनेक चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं कि राजस्व विभाग के अधिकारियों ने लापरवाही से ड्यूटी करते हुए अनेकों किसानों को रेवडिय़ों की तरह चैक बांटते हुए सरकार को करीब 2.50 करोड़ रुपए का चूना लगाया है।

इस पूरे खेल में उपमंडल कार्यालय जीरा के अलावा तहसीलदार, पटवारी, कानूनगो, सुपरिंटैंडैंट, सरपंचों सहित कुछ बैंकों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। इतना कुछ होने के बावजूद उच्चाधिकारियों द्वारा किसी के खिलाफ अभी गंभीर एक्शन नहीं लिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक इस पूरे प्रकरण में 2 करोड़ 45 लाख 60 हजार एक सौ रुपए का घपला हुआ है। 

क्या है मामला

जानकारी के मुताबिक 11 अगस्त 2014 को नैशनल हाईवे अधिनियम 1956 के अधीन करीब 62 किलोमीटर लंबा हाईवे बनाने हेतू भूमि अधिग्रहण करने के लिए नोटीफिकेशन जारी किया गया था। जिन किसानों की भूमि हाईवे में आ रही थी, सरकार द्वारा राजस्व विभाग के अधिकारियों से उनकी पहचान कर उन्हें भूमि के मुताबिक राशि दी जा रही थी, जिस दौरान इस मामले में बड़ा घोटाला हुआ है।

मरने वालों को पेमैंट
असैसमैंट रजिस्टर में पाया गया कि गांव खड़ूर में फुम्मन सिंह व घुम्मण सिंह को जमीन अधिग्रहण के नाम पर करीब 4.51 लाख का चैक दिया गया और उनकी तस्दीक सरपंचों ने की। सरपंचों ने अपने वोटर कार्ड भी वैरीफिकेशन में लगाएं और जिन लोगों के पहचान पत्र लगाए गए उनमें एक ही नंबर बोल रहा था, जिस तरफ किसी भी अधिकारी ने ध्यान नहीं दिया। ऐसा ही मामला गांव गट्टी हरिके में भी उजागर हुआ। अधिकारियों ने जब सरपंचों से जवाब मांगा तो यह कहकर जिम्मेदारी से पीछा छुड़वाया कि उन्हें सरपंच बने कुछ दिन ही हुए थे और उन्होंने दस्तावेज देखकर अपने हस्ताक्षर कर दिए।   

बैंकों के साथ भी फ्रॉड
इतना ही नहीं बैंकों में जब चैक लगाए तो वहां भी किसी बैंक अधिकारी ने कोई दस्तावेज नहीं मांगा, जबकि नियमों के मुताबिक 50 हजार से ज्यादा की रकम जमा करवाने पर आधार कार्ड, पैन कार्ड या अन्य दस्तावेज अधिकारियों को दिखाना जरूरी होता है। कुछ लोगों ने जाली दस्तावेज लगाकर बैंक में खाते खुलवाए और किसी डॉक्युमैंट पर अंगूठा लगाया तो किसी पर हस्ताक्षर किए। पूरा मामला अधिकारियों की जांच के बाद उजागर हुआ।

असैस्मैंट रजिस्टर के पेज गायब
जांच में असैसमैंट रजिस्टर के जहां कुछ पेज गायब मिले, वहीं रजिस्टर को काफी हद तक हाथ से ही तैयार किया गया था और ज्यादा कटिंग पाई गई। रजिस्टर में दर्शाया गया कि अवार्ड, गैर-मुमकिन व कृषि लायक भूमि के रेट भी मेल नहीं खाते। रजिस्टर में विभिन्न लोगों की राइटिंग पाई गई। 

चैक लेने के बाद वापस भेजी रकम
रिपोर्ट में दर्ज है कि फुम्मन सिंह, घुम्मण सिंह, हरबंस सिंह आदि के मामले में जो रकम इन्हें चैक द्वारा दी गई थी, उसे 10 माह बाद वापस एन.एच.15 के खाते में जमा करवाया गया। इसके बावजूद शिनाख्त करने वाले सरपंचों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। 

डी.सी. ने दिए नोटिस
जांच में जिन अधिकारियों की कार्यप्रणाली संदिग्ध दिख रही है, डिप्टी कमिश्नर रामवीर ने उन्हें शो-कॉज नोटिस जारी किए हैं, जबकि ऐसे लोगों पर कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हो पाई है। उन्होंने कहा कि मामले की जांच चल रही है और एक्ट के मुताबिक ही कार्रवाई की जाएगी।

14 पेजों की रिपोर्ट सौंपी
अगस्त 2017 में फिर से सुर्खियों में आए उक्त घोटाले की जांच हेतु जिम्मेदारी ए.डी.सी. को सौंपी गई। 14 पेजों की सौंपी गई जांच रिपोर्ट में पाया गया कि 1989 में पहले ही नैशनल हाईवे के लिए जमीन एक्वॉयर किया गया था, पर राजस्व विभाग की अनियमितताओं के कारण एक्वायर हुई भूमि का इंतकाल व जमाबंदी पर अमल नहीं हुआ और जमींदारों को दोबारा उसी भूमि के रुपए दिए गए। उक्त मामले की जांच जिला राजस्व अधिकारी ने भी की और 1988 तक के रिकार्ड की जांच की।

अधिकतर राजस्व अधिकारियों से जब प्रशासनिक अधिकारियों ने जवाबदेही मांगी तो रिपोर्ट मुताबिक सभी का रटारटाया जवाब था कि उन्हें उपमंडल कार्यालय जीरा ने मात्र हस्ताक्षर करने की बात कही और उन्होंने कर दिए, जबकि मामले में उनका कोई लेना-देना नहीं है। वहीं गांव शीहां पाड़ी में कृषि लायक भूमि को कागजों में कमर्शियल दिखाकर मुआवजा दिया गया। खुलासा तब हुआ जब मौके पर जाकर स्थिति का जायजा लिया गया। वहीं, मौजगढ़ में भी ऐसा ही घपला हुआ। 

 


 

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