Edited By Punjab Kesari,Updated: 30 Dec, 2017 05:16 PM
भारत में विदेशी व्यापार को बढ़ाने के लिए ड्यूटी फ्री देश भारतीय उद्योगपतियों के लिए बड़ी समस्या बन चुके हैं।
अमृतसर(इन्द्रजीत): भारत में विदेशी व्यापार को बढ़ाने के लिए ड्यूटी फ्री देश भारतीय उद्योगपतियों के लिए बड़ी समस्या बन चुके हैं। केन्द्र सरकार द्वारा आयात-निर्यात को और अधिक तेज बनाने के प्रयास में जिन देशों को कस्टम ड्यूटी से मुक्त किया गया था और जिनसे यह आशा थी कि इन देशों में भारतीय उद्योगपतियों को निर्यात के लिए समुचित अवसर मिलेंगे, किन्तु ड्यूटी फ्री होने के बाद कुछ समय तक तो भारत का निर्यात बढ़ा किन्तु समय बदलते ही ड्यूटी फ्री बनाए गए साऊथ एशियाई देश न केवल चीन के मोहरे बन गए, बल्कि उन देशों के माध्यम से ड्यूटी फ्री का लाभ
लेकर अपने माल की खेपें भेजनी शुरू कर दी हैं, जिससे न केवल भारतीय उद्योगपतियों का माल निर्यात होने से रुका अपितु अपने देश की मंडियों में भी उन्हें ड्रैगन का भारी प्रहार झेलना पड़ रहा है।
चाइनीज माल के पोर्ट बने साऊथ एशियाई देश
वर्तमान समय में चीन के माल को भारत में निर्यात करने में ये देश लगे हुए हैं किन्तु वास्तविकता है कि इनके पास अपनी कोई स्थाई मैन्यूफैक्चिरिंग हब नहीं है और चाइनीज माल अपने देशों से भारत की मंडियों में धकेल कर भारतीय उद्योगपति और उत्पादों पर उल्टा प्रहार कर रहे हैं। इन देशों को भारत में माल भेजने के लिए किसी प्रकार की कस्टम ड्यूटी आदि की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए माल की कास्ट कम हो जाती है। दूसरी तरफ चीन यदि भारत में सीधे तौर पर माल भेजता है तो उसे पूरी कस्टम ड्यूटी देनी पड़ती है।
ड्रैगन ले रहा चारों तरफ से लाभ
इस पूरे प्रकरण में सबसे अधिक फायदा चीन को हो रहा है, क्योंकि चीन अपने क्षेत्र से इन देशों को माल की खेपें परोस रहा है और ये देश भारत में माल अपने नाम के साथ भेज रहे हैं। चीन जो माल भेजता है उस पर मेड इन चाइना की मोहर नहीं होती, इसलिए साऊथ एशियाई देश अपने लेबल पर रॉ माल भी भारत को भेज देते हैं, इसमें चीन को दोहरा लाभ होता है। एक तो निर्यातक की ड्यूटी बच जाती है, दूसरा चीन का बदनाम माल एशियाई देशों के सिरे चढ़ जाता है। तीसरा चीन घटिया क्वालिटी का माल बेचकर ऊंचा दाम ले जाता है। चौथे भारत के निर्यातक उद्योगपतियों का रास्ता यह देश रोक लेते हैं।
चीन ने और घटाए उत्पादों के रेट
एक ओर भारत में जी.एस.टी. लागू करके हर उत्पाद की कीमत बढ़ गई है और 12 से 28 प्रतिशत की मार लोग झेल रहे है, जबकि चाइनीज से आने वाला माल अधिकतर 28 प्रतिशत की रेंज में होता है। बड़ी बात है कि पहले समय में जब आने वाले माल पर कस्टम पड़ती थी तो कुल माल पर वेट लगाया जाता है, किन्तु वर्तमान समय में इन देशों में माल आने पर कस्टम ड्यूटी नहीं पड़ती और माल की कीमत पहले ही भारतीय उत्पादों के मुकाबले चार गुणा कम है।
यदि भारतीय वस्तु पर 100 रुपए के माल पर 28 प्रतिशत जी.एस.टी. पड़ता है तो चाइनीज के आने वाले माल पर जिसकी पहले ही कीमत 40 रुपए ही मात्र 10 रुपए के करीब टैक्स पड़ता है। इस तरह भारतीय माल की कीमत जी.एस.टी. के साथ रॉ-मैटीरियल पर पहले ही बढ़ चुकी है, किन्तु चीन से आने वाले माल के रेट और घट गए है जो आने वाले समय में भारतीय उद्योग के लिए सार्थक नहीं रहेंगे।
कस्टम विभाग को नहीं जानकारी
भारतीय उद्योगपतियों को सबसे बड़ी मुश्किल कस्टम विभाग से भी है, क्योंकि अधिकतर जानकार लोगों का कहना है कि कस्टम विभाग के अधिकारियों को केवल माल पर टैक्स संबंधी धाराओं की तो जानकारी है, किन्तु जमीनी स्तर पर माल की कीमत का आकलन करने के लिए उपयुक्त जानकारी नहीं है।
यही कारण है कि दूसरे देशों से आने वाले माल का मूल्य वास्तविक मूल्य से चार गुणा कम बनाकर भी बिल भेज दिया जाए तो कस्टम विभाग के अधिकारियों को इसका पता नहीं चलता और 75 प्रतिशत लोकल टैक्स से निर्यातक बच जाता है। इन सब चीजों से विदेश से आने वाले माल पर टैक्स की धाराएं लोकल माल से भी कई गुणा कम पड़ती हैं जबकि आवश्यकता है कि बाहर से आने वाला माल कस्टम ड्यूटी के माध्यम से ही आना चाहिए, ताकि विदेशी घुसपैठ से बचना आसान हो सके।
दूसरी बार माल आने पर बदल जाता है रूप
चाइनीज का माल आने पर कस्टम विभाग के लिए एक बड़ी मुश्किल यह भी है कि 2-3 बार तो नई आने वाली चीज की कीमत का आकलन नहीं हो पाता किन्तु इस कला में दक्ष चीनी अभियंता माल के स्वरूप को इस प्रकार से प्रस्तुत करते हैं कि दूसरी बार माल की खेप आने के उपरांत उसका रूप ही बदल जाता है, किन्तु मार्कीट में उसके मायने अलग होते हैं। इन से अनभिज्ञ कस्टम विभाग कोड्यूटी रहित माल की कीमत का आकलन करने में और भी मुश्किलें आती हैं।
आयात-निर्यात की बनी है चेन
चाइनीज माल को एशियाई देशों के माध्यम से भारत में भेजने के लिए पूरी चेन बनी हुई है और भारत मेें माल मंगवाने वाले इस पूरे सिस्टम को संभाल रहे हैं। जानकार लोगों के अनुसार चीनी के माल को भारत में लाने के लिए दक्षिणी एशियाई देशों के बीच उनके कार्यालय स्थापित हैं, जबकि उनकी शाखाएं भारत और चीन में भी स्थित हैं। पूरे विश्व सहित भारत की मंडियों के रेट पर इनकी निगाह रहती है। जैसे ही कोई उद्योग आगे बढऩे की कोशिश करता है तो उसे चीन से आने वाले माल की कड़ी प्रतिस्पर्धा से गुजरना पड़ता है।