Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Dec, 2017 11:12 AM
जिले की ऐतिहासिक धरोहरें लंबे समय से रख-रखाव के अभाव व सुध न लिए जाने से अब धीरे-धीरे अपना-अपना अस्तित्व खोने लगी हैं। अगर यही स्थिति रही तो आगामी कुछ वर्षों के बीच यह जिला अपनी ऐतिहासिक स्थलों से महरूम हो जाएगा।
पठानकोट/शाहपुरकंडी(शारदा, सौरभ): जिले की ऐतिहासिक धरोहरें लंबे समय से रख-रखाव के अभाव व सुध न लिए जाने से अब धीरे-धीरे अपना-अपना अस्तित्व खोने लगी हैं। अगर यही स्थिति रही तो आगामी कुछ वर्षों के बीच यह जिला अपनी ऐतिहासिक स्थलों से महरूम हो जाएगा।
नगर से करीब 10-11 किलोमीटर दूरी पर रावी दरिया से सटे शाहपुरकंडी में स्थित ऐतिहासिक किला भी शामिल है जो कि पंजाब के टेल एंड पर बसा है। इसे राजा जसपाल ने 1518 ईस्वी में बनाया था। 1848 में राजपूत योद्धा राम सिंह पठानिया ने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए नूरपुर व आस-पास महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर नजर रखने के लिए यहां अपना आश्रय बनाया था तथा अंग्रेजी सल्तनत से जीवन भर लोहा लेते हुए अंतत: शहादत पाई थी। इस ऐतिहासिक किले में कई मंदिर भी हैं। बाद में रणजीत सागर डैम बनने के बाद इस किले में रैस्ट हाऊस भी बनाया गया।
जानकारी के अनुसार जब उक्त किला अस्तित्व में आया था तो उस समय यहां से एक नहर लाहौर (पाकिस्तान) तक जाती थी। यहां शालीमार गार्डन की सिंचाई इस नहर से की जाती थी। यह किला राजा जसवाल के बाद महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य का भी हिस्सा बना। यहां से अंग्रेजों के साथ लड़ाई लड़ी गई, परन्तु अंग्रेजों के भारत छोडऩे के बाद से इसका समय पर उचित रख-रखाव न होने से अब मृत्यु शैय्या पर पड़ा हुआ है। किले का 3 चौथाई भाग ध्वस्त हो चुका है तथा कुछ ही भाग या प्रवेश द्वार से इसका अस्तित्व नजर आता है। कई संगठनों ने इस ऐतिहासिक किले के संरक्षण की मांग उठाई है।