Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Jan, 2018 08:50 AM
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारे देकर सरकारों द्वारा भले ही समाज में बेटियों को आगे लाने की कोशिश जा रही है पर इसके बावजूद लोग अपनी बेटियों को स्कूल में पढऩे को भेजने से कतराते हैं। बीते दिनों एम.एच.आर.डी. द्वारा संसद में पेश किए गए डाटे के मुताबिक...
जालंधर(सुमित दुग्गल): बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारे देकर सरकारों द्वारा भले ही समाज में बेटियों को आगे लाने की कोशिश जा रही है पर इसके बावजूद लोग अपनी बेटियों को स्कूल में पढऩे को भेजने से कतराते हैं। बीते दिनों एम.एच.आर.डी. द्वारा संसद में पेश किए गए डाटे के मुताबिक प्राइमरी स्तर की लड़कियों की ग्रास एनरोलमैंट रेशो में 5 फीसदी से भी ज्यादा की कमी दर्ज की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2014-15 में लड़कियों की ग्रास एनरोलमैंट रेशो 101.13 फीसदी थी जो 2016-17 तक कम होते-होते 96.35 फीसदी तक आ पहुंची।
देश में केरला और कर्नाटका ही ग्रास एनरोलमैंट रेशो में सुधार कर पाए हैं। केंद्र व राज्यों की सरकारों द्वारा मिलकर चलाई जा रही स्कीमों व विद्यार्थियों को उपलब्ध करवाई जाती सुविधाओं के बावजूद लड़कियों की ग्रास एनरोलमैंट रेशो में कमी आना चिंता का विषय है। ग्रास एनरोलमैंट रेशो में कमी का मुख्य कारण लड़कियों की सुरक्षा को लेकर अभिभावकों का चिंतित होना है।
हालांकि स्त्री व बाल विकास मंत्रालय ने एम. एच.आर.डी. के साथ मिलकर स्कूलों में लड़कियों की सुरक्षा को लेकर कई कदम उठाए हैं पर इनके बावजूद सामने आई कुछ घटनाओं के बाद अभिभावकों में चिंता होना स्वाभाविक है। अगर स्कूल में अच्छा माहौल और पढ़ाई का वातावरण बनाने में सरकारें कामयाब हो जाएं तो इस मुहिम को भी बल मिल सकता है।