Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Nov, 2017 03:14 PM
सरकारी अस्पताल में दिव्यांग सर्टीफिकेट बनवाने के लिए दिव्यांगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कई-कई सप्ताह तक अस्पताल के लगातार चक्कर लगाने के बाद भी विशेष जरूरतों वालों के दिव्यांग सर्टीफिकेट नहीं बन रहे हैं।
संगरूर (बावा): सरकारी अस्पताल में दिव्यांग सर्टीफिकेट बनवाने के लिए दिव्यांगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कई-कई सप्ताह तक अस्पताल के लगातार चक्कर लगाने के बाद भी विशेष जरूरतों वालों के दिव्यांग सर्टीफिकेट नहीं बन रहे हैं। कारण यह है कि दिव्यांग सर्टीफिकेट बनवाने के लिए जिला स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले के अस्पतालों में सिर्फ एक दिन रखा गया है। जिले के अस्पताल मेंं दिन गुरुवार और कई अस्पतालों में मंगलवार का दिन तय किया हुआ है।
सर्टीफिकेट लेने के लिए डाक्टर पर निर्भर
अपनी एक टांग से दिव्यांग हुए गुरबख्श सिंह ने बताया कि वह कैंटर चालक का काम करता था इसी वर्ष अप्रैल मेंं उसका एक्सीडैंट हो गया जिस कारण वह लाठी के सहारे हो गया और इलाज चंडीगढ़ से करवा रहा है। उन्होंने बताया कि वह डाक्टर के पास सर्टीफिकेट बनाने गया तो डाक्टर ने उसे यह कहकर दिव्यांग सर्टीफिकेट देने से इंकार कर दिया कि यह टांग एक न एक दिन ठीक हो जाएगी। उसने बताया कि डाक्टर ने उसे अस्थायी दिव्यांग सर्टीफिकेट लेने की सलाह दे दी।
दिव्यांग होना किसी शाप से कम नहीं : कृष्णा देवी
गांव कुन्नरां की माता कृष्णा देवी (43) ने बताया कि उसे एक कान से बिल्कुल भी नहीं सुनाई देता। उसने कानों का इलाज करवाया परंतु ठीक नहीं हुई। उसने पहले लौंगोवाल अस्पताल से दिव्यांग सर्टीफिकेट बनाने के लिए फाइल तैयार करवाई तो लौंगोवाल अस्पताल मेंं से यह कहकर सुनाम अस्पताल भेज दिया कि यहां डाक्टर नहीं है। सुनाम अस्पताल मेंं 2 चक्कर लगाने उपरांत उनके द्वारा भी यह कहा गया कि वहां भी डाक्टर नहीं है इसलिए आप संगरूर बड़े अस्पताल चले जाओ। संगरूर अस्पताल के डाक्टर ने कान चैक करने के बाद पर्ची पर लिख दिया कि तुम्हारा दिव्यांग सर्टीफिकेट चंडीगढ़ के सैक्टर 32 के अस्पताल से बनेगा। अब महसूस होता है कि दिव्यांग होना किसी शाप से कम नहीं है।
परेशान होते हैं सर्टीफिकेट बनाने वाले प्रार्थी
संगरूर मेंं चाहे जिला सरकारी सिविल अस्पताल के अलावा 12 अन्य अस्पतालों मेंं दिव्यांग सर्टीफिकेट बनाए जाने की सुविधा है लेकिन जिला अस्पताल के अलावा बाकी सिविल अस्पतालों व हैल्थ सैंटरों मेंं डाक्टरों की बहुत कमी है, हर अस्पताल मेंं मैडीकल या सर्जीकल का माहिर डाक्टर तो मिल जाता है लेकिन हड्डियों, कानों, आंखों के डाक्टर बहुत कम हैं। सबसे बड़ी बात है कि जिले के बड़े अस्पताल मेंं भी मानसिक बीमारी आदि के सर्टीफिकेट बनाने के लिए कोई डाक्टर और उपकरण उपलब्ध नहीं हैं। छोटे सरकारी अस्पतालों से रैफर होकर आए दिव्यांग व्यक्ति को जिले के बड़े अस्पताल मेंं राहत नहीं मिलती है।