Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Jan, 2018 12:13 PM
कभी सूखा तो कभी अत्याधिक वर्षा की दोहरी मार झेलने वाले जिले के नीम पहाड़ी धार ब्लॉक के किसानों की महीनों की मेहनत पर जंगली जानवरों के रूप में तिहरी मार पड़ रही है जिससे इस क्षेत्र का किसान वर्ग जिसके लिए आजीविका का एक मात्र साधन कृषि है, आर्थिक रूप...
पठानकोट/धारकलां(शारदा, पवन): कभी सूखा तो कभी अत्याधिक वर्षा की दोहरी मार झेलने वाले जिले के नीम पहाड़ी धार ब्लॉक के किसानों की महीनों की मेहनत पर जंगली जानवरों के रूप में तिहरी मार पड़ रही है जिससे इस क्षेत्र का किसान वर्ग जिसके लिए आजीविका का एक मात्र साधन कृषि है, आर्थिक रूप से कंगाल होकर बदहाली के आलम में दिन काटने को विवश है। आलम यह है कि विषम परिस्थितियों में किसानों के लिए अपने परिवार के लिए 2 वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी दूभर हो गया है। अर्धपर्वतीय क्षेत्र में किसानी करना किसान व जमींदार परिवारों के लिए लोहे के चने चबाने तुल्य है।
सनद रहे कि पहले ही इस नीम पहाड़ी इलाके में सूबे के मैदानी भागों की तुलना में कम खेती होती है क्योंकि यहां सिंचाई के लिए एक मात्र साधन वर्षा पर निर्भरता है। वहीं वर्षा भी अपने समय पर नहीं होती है। होती है तो कृषि के लिए पर्याप्त नहीं है, वहीं कई बार फसलों की बुआई होने के बाद अधिक वर्षा होती है। ऐसे में किसानों के लिए मुसीबत खड़ी हो जाती है।
वहीं जंगली जानवरों के रूप में पड़ रही मार से किसान वर्ग अब कंगाल होने लगा है। जो झुंडों के रूप में खड़ी फसलों को नुक्सान करते हैं तो कभी बुआई गई फसलों के बीज उखाड़कर फसल को पैदा होने से पहले ही तबाह कर देते हैं। किसानों के अनुसार जंगली बंदर खेतों में खड़ी 50 प्रतिशत फसल हुड़दंग मचाकर तबाह कर देते हैं, वहीं 25 प्रतिशत अन्य जंगली जानवरों की भेंट चढ़ जाती है तथा महीनों की मेहनत के बाद किसानों के हिस्से आती है सिर्फ 25 प्रतिशत फसल की पैदावार है जोकि लागत मूल्य भी पूरा नहीं कर पाती है।
बढ़ती लागत व कम होती आय के बीच इस क्षेत्र के किसानों के लिए सामंजस्य स्थापित करना टेढ़ी खीर बन गया है। अब चूंकि इस इलाके लिए अधिकांश परिवारों के लिए खेती ही जीवन व आजीविका का साधन है, ऐसे में क्षेत्र की जनता करे तो क्या करे, वहीं किसानों के लिए खेती करना मरता क्या न करता की स्थिति के समान बनी हुई है।
1 चौथाई फसल पाना भी किसानों के लिए जान हथेली पर लेने जैसा
किसानों का मानना है कि जंगली जानवरों द्वारा जो तबाह करने के बाद एक चौथाई फसल बचती है कि उसे पाने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ती है क्योंकि हमला करने वाले जानवरों को खेतों से भगाने के लिए नाना प्रकार के हथकंडे अपनाने पड़ते हैं परन्तु कई बार जंगली जानवर झुंडों के रूप में किसानों पर ही हमला बोल देते हैं जो कई बार जानलेवा सिद्ध होता है। वहीं कई बार जंगली जानवर महिलाओं व बच्चों पर भी हमला बोल देते हैं। इससे स्थिति भयावह बनी हुई है तथा किसान वर्ग की परेशानियां दिनों-दिन दोगुनी होती जा रही है।